जचता बहुत है वो मुझे पर

मैं फूल हूं, वो रंग है मेरा,
बेरंग उसके बिना मैं, कहीं जचूंगी नहीं,
और मेरा बस चले तो उसकी आंखो के सिवा में कहीं रहूंगी नहीं,
क्यूंकि जचता बहुत है वो मुझ पर।
इतना खूबसूरत है वो शक्स,
के उसके सिवा अब दिल में कोई सजेगा नहीं,
और उसे हटाकर कमबख्त मुझमें कुछ बचेगा नहीं,
क्यूंकि जचता बहुत है वो मुझ पर।
मेरी ख्वाहिशों का जहान है वो,
ख्वाबों का आसमान है वो,
खुशियों की सरजमीं पर,
मेरे बढ़ते कदमों के निशान है वो,
उसकी धड़कने मुझे सांसे देती है,
और मेरी एक मुस्कुराहट उसकी शामे बना देती है,
क्यूंकि जचता बहुत है वो मुझ पर।
सफर में हाथ थामे मंज़िलो तक चलता है वो,
मुझे सवेरा अदा करने के लिए हर शाम ढलता है वो,
कांटे तो उसकी राह में भी है बेशक,
मगर मेरे नाम से संभलता है वो,
सूरज की गर्मी में मेरी ठंडक के लिए पिघलता है वो,
बारिश की बूंदों से मेरी छतरी बन लड़ता है वो,
और सर्द हवाएं त्वचा पर कितने ही सख़्म क्यों ना दे दे,
मेरे पहलू में कंबल बन बिखरता है वो,
क्यूंकि जचता बहुत है वो मुझ पर।
मेरे लिए ऊपरवाले की नेमत है वो,
मेरी तकलीफों के लिए जेहमत है वो,
वक़्त की फिसलती रेत का ठहराव है वो,
कड़ी धूप में मेरी छाव है वो,
क्यूंकि जचता बहुत है वो मुझ पर।
मेरी खुशनसीबी का ठिकाना है वो,
मेरी ख्वाबों का आशियाना है वो,
मेरी कहानियों का फसाना है वो,
मैं किसी और का क्यों सोचू भला, मेरा तो सारा ज़माना है वो,
मैं अपने नाम में उसका नाम शान से जोड़ती हूं,
अपने अच्छे कर्मो को अक्सर सोचती हूं,
जिनका सिला है वो
जो मिला है वो,
उसकी आंखो में जसबा है, आसमान कदमों में रख दे मेरे,
पिता ओहदे से है तो मोहब्बत कैसे कम करे।
इसलिए जचता बहुत है वो मुझ पर।

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