जब हौसला हो, दृढ़ निश्चय हो..तब क्या डर तूफानों से
खुशियों के रंग फैलाओ
बिखरा दो तुम पुष्पों को
नए नवेले पंख लगाकर
सच कर दो तुम स्वप्नों को
चित चंचल है नयन बिछाए
देख रहा है अम्बर में
चाँद को शायद लाज़ आ गई
जा के चुप गया बादल में
घोर अँधेरा जो छाया है
मिटा दो तुम मुस्कानों से
जब हौसला हो, दृढ़ निश्चय हो
तब क्या दर तूफानों से..!!
तब क्या डर तूफानों से
बहुत सुंदर भाव अभिव्यक्ति है आपकी 👌👌
बहुत-बहुत धन्यवाद
बहुत खूब
धन्यवाद
बहुत ही स्तरीय रचना प्रस्तुति है।
आभार