जय हो किसान
हल उठाने वाले देखो,
हल मांगने आ गए
समस्या का हल,
कुछ ना कुछ तो निकलेगा
आज नहीं तो कल निकलेगा
ट्रैक्टर लेकर खड़े किसान,
अपने हक पर अड़े किसान
ना सर्दी की फिक्र है,
इस कड़कती ठंड में
सड़कों पर है पड़े किसान
शक्ति तो उनकी सदा ही दिखती,
अब साथ-साथ सब खड़े किसान
छोड़कर अपने खेत-खलिहान
अब दिल्ली आ गए किसान
भारत मां की है ये शान,
जय हो कृषक जय हो किसान
_____✍️गीता
अतिसुन्दर
बहुत आभार पीयूष जी
कवि गीता जी की यह रचना समसामयिक यथार्थ पर आधारित है। इन दिनों जो घटित हो रहा है उस पर उनकी कवि दृष्टि निरंतर पड़ी हुई है, और बेबाकी से कविता के रूप में मुखरित हुई है। बिना किसान सभी कुछ अपूर्ण है। यदि अन्नदाता न हों तो देश व समाज कैसे जीवित रहेगा। लेकिन विडंबना यह है कि इस कड़ाके की ठंड में वे सड़कों पर हैं। अब हल धर से जुड़ी समस्याओं का हल होना ही चाहिए। बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
सही कह रहे हैं सर यह बिल्कुल यथार्थ चित्रण है ।आपकी दी हुई इतनी सुन्दर समीक्षा के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद सतीश जी
अभिवादन सर
अतिसुंदर भाव
अतिसुंदर अभिव्यक्ति
लड़े किसान बढ़े किसान
अपना पौरुष गढ़े किसान
सुन्दर समीक्षा हेतु आपका बहुत-बहुत धन्यवाद भाई जी🙏
जय हिन्द, जय किसान