Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
Related Articles
शाम ढलती रही…
शाम ढ़लती गयी शम्अ जलती रही.. और तबीयत हमारी मचलती रही .. मेरी हालत की उनको ख़बर तक न थी उम्र आहिस्त करवट बदलती…
एक शाम के इंतज़ार में
कोई शाम ऐसी भी तो हो जब तुम लौट आओ घर को और कोई बहाना बाकी न हो मुदत्तों भागते रहे खुद से जो चाहा…
मदहोश शाम
ऐ ढलती शाम, ऐ लालिमा बड़ा ताज्जुब है मिजाज के ऐसा तू कभी रंगीन न था बला तो सही उनके दीदार के बाद तू इतना…
गोधूलि
ए ढलती गोधूलि के बेला मन को मोह लेती है हमारी ख्यालों में नयी उर्जा भर देती है हम इसी उर्जे के सहारे आने वाले…
तुम्हारे नाम कर रहा हूं
खयाल-ए-दिल, सभी जज़्बात फ़िर से आम कर रहा हूं, मैं इक ताज़ा गज़ल फ़िर से तुम्हारे नाम कर रहा हूं l तुम्हारे ही…
Responses