तवायफ़
अश्कों का समन्दर है अँखियों में मेरी
एक कागज की किश्ती कहाँ से चलेगी।
है ये बदनाम बस्ती हमारी सनम
इश्क की फिर कलियाँ कहाँ से खिलेगी।।
रोकड़े में खरीदे सभी प्यार आकर
प्यार की ज़िन्दगी पर कहाँ से मिलेगी।
मजबुरियों ने मुझको तवायफ़ बनाया
‘विनयचंद ‘ बीबी कहाँ से बनेगी।।
सुन्दर लेखन, उत्तम अभिव्यक्ति
धन्यवाद जी
बहुत ही संवेदनशील एवं यथार्थ रचना
बहुत बहुत धन्यवाद प्रज्ञा जी