“नज़रे झुक गई”

आजकल इनसानियत सियासत मे ग़ुम कही
आजकल देश एक पर लोग एक जुट नहीं
चुभ रही क्यूँ जीत अन्याय की
आज देश की यह हालत देख नज़रें झुक गयी
भुखमरी बढ़ रही किसान करे ख़ुदकुशी हर घड़ी जुर्म घास की तसकरी न्याय की आवाज़ क्रांति भी ग्रस्त पड़ी भ्रष्ट है यहाँ सब झूठी सनसनी
आज भी क्यूँ आम भेदभाव है
अन्धे है भक्त चले भेडचाल में लम्बी कतारें क्यूँ खोयें रोज़गार है
देश की यह हालत और सरकार बेजार है
समाचार आज मिथ्या से कम नही
रहस्य है सत्य का ख़बरें है छुप रही
हत्या यह तथ्यों की कबरें है ख़ुद रही
आज देश की यह हालत देख नज़रें झुक गयी
आज़ देश की या हालत देख नज़रें झुक गयी|

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