नशा
तू होनहार था
तू सबसे होशियार था
सबका तू गुरुर था
अपनी प्यारी सी जिंदगी मे
सपना तूने भी कोई
देखा तो जरूर था
झुक गया गमों के आगे
दुनिया नाचे पैसे के आगे
तब तो तू मजबूर था
क्यों खोया लत मे ऐसा
बहाया पानी की तरहा माँ-बाप का पैसा
गुनाह करना भी तुझे मंजूर था
तुझपे नशे का ऐसा भी क्या सरूर था
छूटते जा रहे अपने
तोड़े क्यों तूने अपनों के ही सपने
ये करना क्या जरूर था
तू इतना क्यों मजबूर था
भागता रहा बस नशे के पीछे
देखे ना माँ के आँसू बैठा रहा आंख मींचे
तू इतना क्यों मगरूर था
जाने कैसा चढ़ा तुझपे ये फितूर था.
फिर से हाथ थाम अपनों का
पुलिंदा बना नये घोंसलों का
छोड़ दे ये लत
दे खुदको भी कुछ फुर्सत
छोड़ उसको जो सर चढ़ा जनून था
फेंक शराब की बोतलों को
जिनका लगा घर पर हुजूम था
खुद की तू मदद कर
कोई ना करें चाहे तू खुद की तो कदर कर
बसा ले वो आशियाना फिर से
जिसमे तुझे सकून था
जी वही जिंदगी
जिसमे तू भी मासूम था.
Nice
बहुत खूब
Nice
वाह बहुत सुंदर
Good one
Sensitive topic
Touching
Dam good
Cool
उफ्फ़