पीड़ महसूस हो दूसरे की
जब तलक राह में आपके
गम की छाया न हो तब तलक,
आप महसूस कैसे करोगे
स्वाद इसका है बिल्कुल अलग।
जब तलक कोई ठोकर तुम्हें
गिराती नहीं भूमि पर,
तब तलक किस तरह इल्म होगा
अश्फाक भी है जरूरी।
पीड़ महसूस हो दूसरे की
आवश्यक है सभी के लिए
आदमियत की आजिम बढ़ाकर
सुर्ख करती सदा के लिए।
सुन्दर भाव
सुन्दर प्रस्तुति
धन्यवाद जी
सुंदर
सादर नमस्कार सर
सही कहा है आपने सतीश जी, जब तक कोई व्यक्ति स्वयं दर्द महसूस नहीं करेगा दूसरे के दर्द का अंदाज़ा नहीं लगा सकता।
एक मशहूर कवि ने कहा है,”
जा के पैर ना फती बिवाई,
सो क्या जाने पीर पराई”। वो कवि नाम ध्यान नहीं आ रहा है अभी
बहुत सुंदर, भावपूर्ण रचना….
आपके द्वारा आत्मीयता से परिपूर्ण समीक्षा की गई है। इसके लिए हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ। आपके द्वारा की गई समीक्षा मुझे नया उत्साह प्रदान करेगी। सादर धन्यवाद
Right bro
बहुत बहुत धन्यवाद प्रज्ञा बहन।
बहुत सुंदर पंक्तियाँ
सादर धन्यवाद