प्रातः हो गई है
आलस्य तुझे
दूर जाना ही होगा,
मुझे दायित्व अपना
निभाना ही होगा।
प्रातः हो गई है,
बीत रजनी गई है,
मुझे कब से वो चिड़िया
जगाने में लगी है।
रात भर की उमस तो
हाथ-पैरों की ताकत
गलाना चाहती थी,
मगर आकर सुबह ने
जरा सी शक्ति दे दी।
चाय हाथों की उनकी
दवा सी बन गयी है,
जागने की ललक अब
मन मेरे बन गई है।
वाह बहुत ही सुन्दर।
प्रात:काल की बेला पर बहुत सुन्दर पंक्तियाँ, अति सुन्दर लेखन
Very very nice poem sir
बहुत ही सुंदर रचना