भटकते हुए की पनाह बनो
रोशनी में चमकता कांच नहीं
अंधेरे में जले, आप वो चिराग बनो
मिटा तमस को, चमक फैलाओ
भटकते हुए की पनाह बनो।
बेसहारा, अनाथ हैं जो भी
उन्हें सहारा दो,
हो सके तो एक तिनके का
डूबते को सहारा दो।
क्या पता आपके सहारे से
किसी को राह मिल जाये,
सूखती पौध को
जरा सी बूँदों से,
फिर खड़ा होने का
सहारा मिल जाये।
प्रेरणा देती हुई रचना
बहुत बहुत धन्यवाद जी
बहुत ही सुंदर
बहुत बहुत धन्यवाद
बहुत खूब
बहुत बहुत धन्यवाद
“रोशनी में चमकता कांच नहीं अंधेरे में जले, आप वो चिराग बनो”
केवल चमक ही नहीं,अपितु चमक ऐसी हो जो दूसरे के जीवन में उजाला दे सके ,यही संदेश देती हुई कवि सतीश जी की बहुत ही सुन्दर और प्रेरक रचना
इस लाजबाव समीक्षा हेतु बहुत बहुत धन्यवाद, अद्भुत समीक्षा शक्ति को अभिवादन।