रंग, खुशियाँ और शब्द
मैं सकुचाई, संभली खड़ी थी
जब उनसे मुलाकात हुई
लेकिन पूर्ववत नहीं
कुछ अलग था
कुछ नया था
पहले प्रेम का एहसास
लिपटे हुए असीम शांति के ओट से
जैसे किसी सूफी को मिल गया हो
प्रेयसी से मिलन का राज़
दिव्य जैसे किसी सुप्त मासूम के वदन पर
गिरा हो किरणों का साज
हृदय था आल्हादित
जैसे किसी विरहिणी को हुआ हो
पिया-मिलन का एहसास
कुछ रंग थे, कुछ खुशियाॅं थी
कुछ शब्द थे पन्नो पर झूलते हुए
जब मैंने किताबों को हृदय से लगाए
महसूस किया खुद को…..।
Responses