हम वो पागल प्रेमी हैं जो मातृभूमि पर मरते हैं ।

न पायल पर, न काजल पर
न पुष्प वेणी पर मरते हैं
हम वो पागल प्रेमी हैं
जो मातृभूमि पर मरते हैं ।

सियाचिन की ठंड में हम
मुस्तैद है बन इमारत माँ
सरहद की रेत पर हमने
लहू से लिखा भारत माँ

हमें डिगा दे हमें डरा दे
कहाँ है हिम्मत बिजली की
नहीं चाह है फुलवारी की
नहीं तमन्ना तितली की

नहीं गुलाब , केसर ,चम्पा
हम नाग फनी पर मरते हैं
हम वो पागल प्रेमी हैं
जो मातृभूमि पर मरते हैं ।

हम तो वो रंगरसिया हैं
जो खेले होली खून -खून
हरी -हरी चूनर माँ की
देकर स्वेद बूंद -बूंद

पीठ दिखाकर नहीं भागते
सिर कटाकर मिलते हैं
देख हमारी वर्दी पर
ज़ख्म वफ़ा के मिलते हैं

जहां तिरंगे के रंग तैरे
उस त्रिवेणी पर मरते हैं
हम वो पागल प्रेमी हैं
जो मातृभूमि पर मरते हैं ।

रचनाकर :- गौतम कुमार सागर , ( 7903199459 )

Related Articles

जंगे आज़ादी (आजादी की ७०वी वर्षगाँठ के शुभ अवसर पर राष्ट्र को समर्पित)

वर्ष सैकड़ों बीत गये, आज़ादी हमको मिली नहीं लाखों शहीद कुर्बान हुए, आज़ादी हमको मिली नहीं भारत जननी स्वर्ण भूमि पर, बर्बर अत्याचार हुये माता…

कोरोनवायरस -२०१९” -२

कोरोनवायरस -२०१९” -२ —————————- कोरोनावायरस एक संक्रामक बीमारी है| इसके इलाज की खोज में अभी संपूर्ण देश के वैज्ञानिक खोज में लगे हैं | बीमारी…

Responses

New Report

Close