Ghazal
हथेली से रेत की तरह पल पल सरकती जिंदगी,
फिर भी जाने क्यों आग की तरह भड़कती जिंदगी।
मुकाम मौत ही तो है इसका,
लाख पहरा दो उसी ओर बढ़ती जिंदगी।
पर खुद को सदा के लिए मान,
कुछ जिंदगी को रौंदती जिंदगी।
ये दुनिया तो बस तमाशा है,
जहां कभी बंदर कभी मदारी बनती जिंदगी।
बहुत खूब
धन्यवाद
वाह बहुत सुंदर
धन्यवाद
धन्यवाद
सुंदर रचना
Thank you sir
Dsunder
Thank you
Very nice
Thank you di
Wah
धन्यवाद
Iajabab
Thank you di
🤔🤔