बेटियों पर एक ग़ज़ल
ग़ज़ल
दौलत नहीं, ये अपना संसार माँगती हैं
ये बेटियाँ तो हमसे, बस प्यार माँगती हैं
दरबार में ख़ुदा के जब भी की हैं दुआएँ,
माँ बाप की ही खुशियाँ हर बार माँगती हैं
माँ से दुलार, भाई से प्यार और रब से
अपने पिता की उजली दस्तार माँगती हैं
है दिल में कितने सागर,सीने पे कितने पर्बत
धरती के जैसा अपना, किरदार माँगती हैं
आज़ाद हम सभी हैं, हिन्दोस्ताँ में फिर भी,
क्यों ‘आरज़ू’ ये अपना अधिकार माँगती हैं?
आरज़ू
nyc one
Nice
Nyc
सुंदर
गुड
बनी रहे
Aap sab ka dil se shukriya