मां का सर्मपण
एक बार मां बीमार पड़ी हफ्तों उपवास
जब जिद करके मैंने एक निवाला उठाया
मेरे हाथ बीच में ही थाम के
उसने पूछा दबी आवाज में
पापा ने खाना खाया?
पापा को आदत है अक्सर थाली में छोड़ने की
मां उसे प्रसाद समझ शिद्दत से खा जाती
मैंने कभी कभी उनको लड़ते देखा है
माँ को मीठी घुडकियां देते देखा है
देखा नहीं पापा को कभी
मां की थाली से खाते हुए
सुनो मैं वादा करती हूं
हमारा होगा
एक घरौंदा
एक थाली
एक दर्द
एक हंसी
और
एक हम
वादा👩❤️👨
पूजा मिश्रा मध्यप्रदेश
गीत और काव्य के तो कोई लक्षण नजर नहीं आते।
भाव मार्मिक है।
प्रयास एक अधूरे लघुकथा को दर्शाता है।
अच्छा प्रयास।। सराहनीय प्रयास।।
सुन्दर अभिव्यक्ति
यह एक लघुकथा है
जी
लघुकथा सी