सावरे का सावन
काली जुल्फे सवारे काला लाए अंधियारे
मिले कितहु ना चेन बढ़ रही बिरहा रे
काहे रूप को सवारू नैन काजल क्यों बारू
रंग तेरा भी तो काला तो क्यों अपना निखारू
नैन कोमल है मेरे असुधार पिरोई
पीड़ा दिखे नहीं मेरी कैसा है तू निर्मोही
बिरहा तपन को देख जल बने हिमराज
उसी जल को उठाए मेघ बरसे है आज
जलधर मोहन के द्वारे श्याम नाम पुकारे
प्रभु गोपियां बुलाए संघ चलियो हमारे
करे उमड़ घुमड़ क्यों तू मुझको सताए
काला रंग देखला के याद अपनी दिलाए
रथ जलधर बनाया चला नगरी में आया
तेरी जाने चतुराई किसे दिखलाए माया
करे बादलों की ओट क्यों तू खुद को छुपाए
हाल देखता हमारा नहीं अपना बताइए
मेरी पीड़ा को देख श्याम आंसू छलकाए
बैठा बादलों के बीच क्यों तू पलके भीगाय
वन के कण-कण में मैंने देखा श्याम का बसेरा
बरसा सावन नहीं है ये तो सावरा है मेरा
Nice
धन्यवाद आपका पंडित जी
Very nice Priya jee
Thankyou sir
nice
Thankyou 🙏
Very nice
Thankyou
व्वावाह…कितने सुंदर शब्दों की रचना.
Thankyou so much
Thankyou 🙏
तत्सम तथा तद्भव शब्दों का स्वच्छता से प्रयोग नए गाने बहुत ही प्रेम से अपने मनोभाव को प्रकट किया है
Thankyou 🙏
वेलकम