अच्छा लगा
आज धरा से मिला आकाश ,तो अच्छा लगा।
नन्हीं – नन्हीं बूंदों से हरी हो गई घास ,तो अच्छा लगा।
तल्ख़ हो जाए ,कुछ बातों से जब दिल,
कोई दे जाए बातों की मिठास , तो अच्छा लगा।
यूं ही तो कोई किसी की परवाह नहीं करता,
कोई दिलाए “ख़ास” का एहसास, तो अच्छा लगा ।
बेहतरीन
बहुत बहुत धन्यवाद 🙏
आपकी कविता में साहित्यिक स्तरता का चरम बिंदु है। संतुलित पंक्तियाँ, सुरम्य काव्य, इस प्रतिभा को सैल्यूट
इस सुन्दर समीक्षा के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आपका सतीश जी 🙏 आपका स्नेह और प्रेरणा मिलती रहे। बहुत बहुत आभार।
आपकी कविताएं वास्तव में बेहतरीन हैं
🙏🙏
सुन्दर प्रस्तुति
धन्यवाद जी 🙏
सुन्दर अभिव्यक्ति
धन्यवाद सुमन जी 🙏
, अतिसुंदर
बहुत बहुत धन्यवाद भाई जी 🙏
✍🙏🙏💐
🙂🙏🙏
लाजवाब कविता
बहुत बहुत धन्यवाद जी 🙏
बेहतरीन
बहुत बहुत धन्यवाद पीयूष जी 🙏
Nice poem geeta ji
Thank you very much for your lovely complement chandra mam🙏