मेरी कविता..
सावन पर कविताओं की बहार छाई है
मेरी कविता अभी तो ना तैयार होके आई है।
कहती है थोड़ा और बन संवर लूं …
अच्छी सी दिखूंगी थोड़ा और निखर लूं ।
सब को लिखते देख ,मेरा मन मचल उठा,
कविता बोली रुक जा, अभी बहुत रात हो आई है ।
………….✍️गीता…..
काली घटा कहाँ रंग लाई है।
वाह क्या बात है। ।
धन्यवाद जी🙏
अच्छी-अच्छी कविताओं की बहार आने पर कवि मन का मचलना लाजमी है। यही सच्चे कवि की पहचान भी है। बहुत खूब।
कवियित्री के भाव समझने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आपका सतीश जी 🙏….
सुन्दर समीक्षा हेतु आपका हार्दिक आभार ..
अतिसुन्दर
बहुत बहुत धन्यवाद आपका चंद्रा जी 🙏
अतिसुंदर भाव
बहुत बहुत धन्यवाद आपका भाई जी 🙏
कविता का मानवीकरण किया गया है।
बहुत ही बढ़िया कविता
सादर धन्यवाद सर 🙏
अतिसुंदर प्रस्तुति
बहुत बहुत धन्यवाद आपका मोहन जी 🙏
क्या खूब मानवीकरण किया है
बहुत शुक्रिया प्रज्ञा जी..
बहुत बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
Thank you very much suman ji
बहुत खूब
शुक्रिया कमला जी 🙏
जबरदस्त लेखन
Thanks for your pricious complement Indu ji 🙏