कलम भी रो पड़ी…

मेरे जीवन की कहानी
दुःख ही रही
आखिर क्या लिखूँ आज
जो अभी तक मैंने लिखा नहीं…
विधाता ने मेरे भाग्य में
आँसुओं के सिवा कुछ
भी लिखा नहीं…
मेरे पतझड़ समान जीवन पर
बरसात हमेंशा बनी रहती है
हर पल नैन बरसते रहते हैं…
मेरी व्यथा से
सारे पन्ने भर गये
कलम भी बेबस होकर
रोने लगी
इतना दर्द था मेरे एक-एक
लफ्ज में…!!

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Responses

  1. बहुत हृदय स्पर्शी रचना है प्रज्ञा…
    कलम क्या कागज़ भी रो पड़ा होगा ।
    …… उत्कृष्ट लेखन

  2. मेरी व्यथा से
    सारे पन्ने भर गये
    कलम भी बेबस होकर
    रोने लगी
    इतना दर्द था मेरे एक-एक
    लफ्ज में…!!
    अत्यंत मार्मिक, मानवीकरण का सुन्दर प्रयोग

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