एसिड अटैक

मेरी जिंदगी की एक शाम थी
मैं घर जा रही थी
कोई नहीं था साथ में
अकेली ही आ रही थी..
कुछ मनचले पीछा कर रहे
थे रोज की तरह
मैंने भी नजरंदाज कर दिया
रोज की तरह..
एकाएक चारों ओर से
घेर लिया मुझे
कुछ फेंका मेरे चेहरे पर
पानी जैसा लगा मुझे..
भाग गये सारे मुझ पर एसिड फेंक कर
मैं सड़क पे तड़प के गिर पड़ी
चेहरे की एक-एक हड्डी हो
जैसे गल गई..
जाने कौन ले गया उठाकर
किसने किया उपचार ?
मुझे होश आया तो परिजन
बैठे थे आस-पास..
मेरे सौन्दर्य के साथ मेरी आत्मा
भी मर गई
देखा जब आईना तो मैं
स्वयं से डर गई..
जिस चेहरे से पहचान थी
वह भयावह हो गया
जिसने किया था प्रेम को परिणय
तक पहुंचाने का वादा
वह अनायास ही मुकर गया..
जी रही हूँ आज भी एक
अलग पहचान से
जानते हैं सब मुझे और
देखते हैं मान से..
मेरी आत्मा मरी नहीं
जला है सिर्फ रूप ही
जीने के मायने बदल गये
हौंसलों ने संवार दी जिंदगी…..

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Responses

  1. अत्यंत सच्ची और यथार्थ से जुड़ी अभिव्यक्ति।
    मेरी आत्मा मरी नहीं
    जला है सिर्फ रूप ही
    जीने के मायने बदल गये
    हौंसलों ने संवार दी जिंदगी।
    मार्मिक अनुभूति

  2. उफ्फ, एसिड अटैक पीड़ित बहनों का दर्द उड़ेल दिया है
    कागज़ पर तुमने प्रज्ञा
    वो इंसान नहीं दरिंदा ही होगा, एक इंसान तो ऐसा सोच भी नहीं सकता ।
    बहुत ही मार्मिक रचना और उसकी बहुत भावुक प्रस्तुति

  3. ईंट के जवाब पत्थर से देना ए नारी तुम कब सिखोगी।
    कब तुम अपनी दसवां रुप, इस ज़माने को दिखाओगी।।

    1. धन्यवाद सर..
      दिखा सकती हूं दसवां रूप बात यह है कि ऐसे लोगों की भेंट मुझसे नहीं हुई वरना मुह की ही खानी पड़ती

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