तड़प
मेरे जो अपने थे ,न जाने आज वो किधर गये
जो सपने संजोये थे ,वो सारे टूटकर बिखर गये
खुशियां मेरे आंगन की ,न जाने कहाँ बरष गयीं
और एक हम जो बूँद बूँद को तरस गये
अब तो सुनाई दे रहीं हैं नफरती रुबाइयाँ
न जाने कहाँ प्यार के नगमात खो गये
आंशुओं का अबकी बार ऐसा चला सिलसिला
कि क़त्ल सब दिलों के जज्बात हो गये
याद में उसके सारे पल गुजर गए
जैसे प्रेम फाग के सुहाने रंग उतर गए
याद में उसकी कुछ चित्र उभर कर आ गए
जैसे बरसों के प्यासे मरुस्थल में ,मेघ उतर कर आ गए
बह जाये जो अश्कों में कभी दिल को तोड़कर
तारों के जैसे टूटते ,वो ख्वाब हमको दे गए
फिर जग गई चमन में कुछ भूली दास्ताँ
कलियाँ चमन की वो ,सारी खिलाकर चले गए
अब जलाना बाकी रहा ,कंधों पर यादों का जो बोझा है
यादों की लकड़ियों की ,वो चिता बनाकर चले गए
सोंचता हूँ छोड़ दूँ यूँ घुट घुट कर जीना
मुझ बदनसीब को वो ,यूँ ठुकरा कर चले गए
हमें लगता था कि ताउम्र उनका साथ होगा
ढूंढते हैं उनके निशां ,न जाने कहाँ वो चले गए
कर बैठे थे प्यार जिनको ,वो तो बेवफा निकले
जिन्हे बादल समझ बैठे हम ,वो धुआं बनकर उड़ गए ….
अतिसुंदर भाव
Thanks
किसी अपने को याद करती हुई बहुत भावुक रचना।
बहुत सुन्दर प्रस्तुतिकरण..
Thanks ma’am
बहुत
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति
लाजवाब
👌✍✍
Thanks
सुंदर अभिव्यक्ति
Thanks
बहुत ही उम्दा
Thanks
सुन्दर अभिव्यक्ति
Thanks sir
बहुत खूब
Thanks
अतिसुंदर
Thanks ma’am