ईश्वर का खेल निराला है
ईश्वर का खेल निराला है
सब कुछ अपने प्रारब्ध
और कर्म से ही मिलता है
जैसे तुझे ताली
मुझे गाली।
सृजनहार ही सब सृजन करता है
हमने तो बस गलतफहमी पाली,
वही सींचता है लेखनी को
वही तो है जिंदगी का माली।
लेकिन कर्म भी तो
अपने-अपने हिसाब का है आली।
बहुत ही सुंदर और लाजवाब पंक्तियाँ
अत्यंत जबरदस्त कविता
“लेकिन कर्म भी तो अपने अपने हिसाब का है आली” बहुत शानदार रचना है ।
कर्म ही महत्व पूर्ण है । ये सुन्दर संदेश देती हुई बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति well done satish ji , keep it up .
सुंदर
बहुत ही सुंदर कविता, वाह बहुत बढ़िया
वाह वाह, बहुत ही सुंदर
क्या बात है, बहुत ही सुंदर कविता है,vwow