हवा को मोड़ लो ना तुम
करेला हूँ मगर इतना भी कड़वा मत समझना तुम,
जरा सा भून लेना फिर नमक के साथ लेना तुम।
हवा की कुछ नहीं गलती उसे क्यों दोष देते हो,
जरा मेहनत करो बहती हवा को मोड़ लो ना तुम।
जरूरी है नहीं हर चीज अपने मन मुताबिक हो,
कड़ी मेहनत से जो पाओ वहीं संतोष रखना तुम।
हजारों लोग होंगे एक भी परिचित नहीं होगा,
उन्हीं में एक को अपना बनाना प्यार करना तुम।
प्यार करना, बहुत करना, मगर उस प्यार के खातिर,
गांव में वृद्ध माता है उसे मत भूल जाना तुम।
अतिसुंदर भाव
मेहनत की महत्ता को दर्शाती हुई बहुत सुंदर रचना है कवि सतीश जी की । अति सुन्दर भाव एवम् प्रस्तुति
ऊपर की दो पंक्तियां मुझे बेहद पसंद आई हैं
लाजवाब सर 👌👌✍