आस नवरूप में बुलानी है
हमें तो रोशनी की बात ही उठानी है,
जहाँ हो दर्द वहां पर दवा लगानी है।
छोड़ भीतर की गुनगुनाहट को,
बात अब जोश से सुनानी है।
छोड़ मन की समस्त टूटन को
आस नवरूप में बुलानी है।
लेखनी प्रतिबद्ध रखनी है,
फर्ज की बात अब निभानी है।
धूल कर हर तरह की दुविधा को
दे हवा दूर को उड़ानी है।
हो गये जो निराश जीवन में
उनमें आशा नई जगानी है।
घड़ी-पलों में बीतता है समय
घड़ी न एक भी गँवानी है।
हमें तो रोशनी की बात ही उठानी है,
जहाँ हो दर्द वहां पर दवा लगानी है।
छोड़ भीतर की गुनगुनाहट को,
बात अब जोश से सुनानी है।
_________ कवि सतीश जी की, दूसरों की सहायता करने की और किसी की परेशानी में सहायता करने की भावना को लेकर उनकी लेखनी से बहुत सुंदर कविता का सृजन हुआ है।उत्तम भाव और सुन्दर शिल्प सहित श्रेष्ठ लेखन, वाह!!
अत्यंत सुंदर
अतिसुंदर भाव
हमें तो रोशनी की बात ही उठानी है,
जहाँ हो दर्द वहां पर दवा लगानी है
कवि सतीश पाण्डेय जी की बहुत सुन्दर कविता, वाह
सही दिशा में अपनी लेखनी की धार को ले जाती रचना
कवि पाण्डेय जी, आपकी रचनाएं सदैव ही श्रेष्ठ हैं। आपकी लेखनी में सदैव ही जबरदस्त धार रही है। वाह वाह