एक दर्द, अनकहा सा (कहानी)

August 21, 2020 in Other

                एक दर्द ,अनकहा सा

साल में कितने सारे मौसम आते हैं और चले भी जाते हैं, मगर जब भी वसंत और बारिश का मौसम आता है, काव्या का वो दर्द फिर से हरा हो जाता है जिसको संभालते- संभालते दो वर्ष बीत गए हैं ।

उसे बचपन की सभी यादें स्मरण हो जाती है कि कैसे रक्षाबंधन के दिन वह राकेश भैया को राखी बांधती थी और फिर राकेश उसको पहले तो चिड़ाता था, मगर फिर बाद में अपने गुल्लक के सारे पैसे दे देता था।

कैसे ! वे दोनों भाई बहन बारिश के मौसम में घर से बाहर कितनी मस्ती किया करते थे और जब ज्यादा पानी बहने लग जाता था तो वह दोनों अपनी अपनी नोटबुक निकाल कर लाते और लग जाते किसी बेहतरीन आर्टिस्ट की तरह अपनी-अपनी कागज की नाव को बनानें ।

“राकेश भैया बहुत जल्दी नाव बना लेते हो आप और मेरी तो यहां बनती ही नहीं है” काव्या की यह बात सुनकर राकेश उसकी भी नाव बना देता था तो फिर वह दोनों होड़ लगाते थे कि किस की नाव कितना ज्यादा आगे निकलती है।

एक नाव के खराब होते ही दूसरी नाव बना दी जाती थी।
यह खेल बहुत ही शानदार होता है बच्चों के लिए।
कितना अच्छा होता है हमारा बचपन !
हर कोई उस बचपन की तरफ मुड़ कर जाना चाहता है मगर यह कहा संभव है।

जिस खेल को खेलने के लिए वह दोनों भाई- बहन बारिश का इंतजार किया करते थे और बहुत खुश हुआ करते थे आज उसी कागज की नाव की यादें काव्या को सच में रुला देती है ।
अब, जब भी उसको अपने भाई की याद आती है ,तो वह बारिश से ज्यादा आंखों को बहा देती है।
  घर में उसके माता-पिता और वो ! तीनों बहुत याद करते हैं राकेश को ।
मगर उन्हें कोई गिला शिकवा नहीं है राकेश से बल्कि उनको तो गर्व है उस पर।

राकेश बहुत अच्छा बेटा था और अच्छा भाई भी था ,
मगर उससे ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह थी कि वह देश का एक बहादुर, वीर सिपाही था जिसने देश के दुश्मनों का डटकर सामना किया और उन्हें मौत के घाट भी उतार दिया, मगर एक गोली राकेश के सीने को आर-पार कर गई ,जिससे उसने हंसते हंसते भारत माता को अपना बलिदान दे दिया…..
  
राकेश की बहन एवं माता- पिता कितना अनकहा दर्द छुपाए बैठे हैं ,उसका अंदाजा लगाना बड़ा ही मुश्किल है।

लेकिन लोगों की नजरों में यह जताना भी बहुत जरूरी है कि उन्हें गम नहीं, बल्कि नाज है कि उनका बेटा देश के लिए शहीद हुआ है किन्तु यह पूरी सच्चाई नहीं है।
सच यही है कि नहीं कमी पूरी हो पाती है, उन लोगों की जो हमारे दिल में बसे होते हैं। उनकी यादें भूत सा चिपटी रहती हैं हमारे साथ।

हमें गर्व है ऐसे जवानों पर ! हमारे अमर शहीदों पर….
और फख्र है उनके परिवारजनों पर जो एक बेटे की शहादत के बाद दूसरे बेटे या बेटी को फिर से तैयार करते हैं, भारतीय सेना में जाने के लिए ।

सच में धन्य है वे माता- पिता और परिवार जो राकेश जैसे बेटों को जन्म देते हैं, देश पर निछावर करने के लिए !
जय हिन्द……….
                       
                        ——-मोहन सिंह मानुष

गमज़दा सा

August 21, 2020 in शेर-ओ-शायरी

गमज़दा सा हूं ;उसके लिए
जो तुमने मेरे साथ किया।
और बहुत ही निशब्द सा है,
यह दर्द जो तुमने मुझे हर पल दिया।
मगर रहे तू हमेशा बाग़-बाग़ ,
चल छोड़ो !
हमने तुम्हें माफ़ किया।

पहली बार जगे थे, जो अरमान!

August 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

पहली बार जगे थे ,
जो अरमान !
तुम्हें देखकर!
वो ,निहारने का अंदाज
अभी भी रमा है,
मेरे जहन में ।

आंखों का आंखों से
वार्तालाप!
करने का हुनर
अभी भी बसा है,
मेरे ज़हन में।

फिर वहम ही है तेरा,
कि बदल गए हैं हम
अरे!मोहब्बत भरी धरा हो तुम मेरी ,
और मैं बारिश का बादल!
जो हमेशा बरसाता रहेगा
तुम पर ,
मोहब्बत !मोहब्बत! मोहब्बत!

स्वार्थ

August 20, 2020 in मुक्तक

कहीं तो छुपा है,
किसी ना किसी कोने में,
दुबका हुआ सा,
मौके की तलाश में,
कम या फिर ज्यादा,
मगर छिपा जरूर है,
हर मस्तिष्क में!
और बचा तो ‘मानुष’ तू भी नहीं ,
इस स्वार्थ के जंजाल से।

विभीषण जिंदा है (व्यंग्यात्मक)

August 20, 2020 in शेर-ओ-शायरी

बहुत दिनों से ढूंढ रहा था,
जिसे मैं डगर -डगर,
वह मुझे घर के पास ही मिल गया।

कौन कहता है विभीषण मर गया ,
जिंदा है वो,
मुझे मेरे अपनो में ही मिल गया।

एटीएम-सी जिंदगी (शायरी)

August 20, 2020 in शेर-ओ-शायरी

एटीएम सी है जिंदगी मेरी ,
जब तक कैश होता है,
तब तक प्रेम की बरसात
और लोगों की आवाजाही होती रहती है।

नाग-सा अभिमान शायरी

August 19, 2020 in शेर-ओ-शायरी

मुझे निगलने चला था ,
नाग-सा अभिमान मेरा,
मगर मोर से संस्कार;
मेरी मां के ,
मुझे बचा लेते हैं।

कोई मुझे समझाओं…..

August 18, 2020 in शेर-ओ-शायरी

कोई मुझे समझाओं,
मैं समझना चाह रहा हूं,
ये ग़म की आंधी है,
वो उड़ जाएंगी,
ज़रा सा दिल्लासा दो,
मैं तड़पे जा रहा हूं।
अरे! कोई थोड़ा सा तो प्यार
जताओ मुझे
मैं तरसे जा रहा हूं।

हे! सबला तू महान है

August 18, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सहनशीलता की तू देवी ,
हर किरदारों में ढल लेती,
‘मानुष’ तेरी महिमा का ,
करता गुणगान है ,
हे! सबला, तू महान है।

अर्धांगिनी बनकर,
तुने हर धर्म निभाया ,
बंद मकान को ,
तूने घर बनाया ,
हर पति को होता,
तुझ पर बड़ा गुमान है ,
हे!सबला तू महान है।

मां बनकर तू‌ने,
बहुत दर्द सहा,
रोयी बहुत,
मगर कुछ ना कहा,
ममता तेरी निस्वार्थ,
तेरी पवित्रता की पहचान है ,
हे! सबला तू महान है।

बहन बनी जब,
तूने खुशियां बांटी,
प्रेम मिठाई हमेशा,
भाईयों को खिलाई,
अपना हिस्सा हमेशा ,
तूने किया बलिदान है,
हे!सबला तू महान है।

तू वीरांगना बनी,
तू प्रेरणा बनी
मातृभूमि की प्रतिष्ठा बनी,
रिश्तो से ऊपर भी,
तेरी अपनी एक मिशाल है
हे!सबला तू महान है

…….मोहन सिंह मानुष

ओ री!नींद

August 18, 2020 in मुक्तक

आ ! मेरे पास आ ,
ओ री ! नींद,
तुम्हें मैं लोरी सुनाता हूं ,
मुझे तो तुम सुलाती नहीं,
चल मैं तुझे सुलाता हूं।
.

निकला था मैं ढुंढने

August 18, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

निकला था मैं ढुंढने ,
कोई ऐसा इंसान ,
जो बिल्कुल खुश ,
बिल्कुल सुखी,
बिल्कुल स्वस्थ,
चिन्तामुक्त,
तेज़युक्त,
मुझे मिला !
पर वो इंसान नहीं
अपना दुःख ,
दूसरों के मुकाबले सुक्ष्म -सा।

जल्दी जल्दी में (हास्यव्यंग्य)

August 17, 2020 in मुक्तक

श्याम का समय,
बहुत जल्दी में थे वे लोग,
तेज तेज कदमों में,
अजीब सी हलचल,
चेहरे पर रोनक,
कुछ पाने की लालसा,
एक के बाद एक,
गुजर रहा था हर शख्स,
मन में मेरे भी पली जिज्ञासा ,
आखिर क्या हुआ है,
कोई अनहोनी या कोई सुखद घटना,
अरे! बहुत जतन से पता चला,
गांव से बाहर एक ठेका खुला।

चलो होड़ लगाते हैं….

August 17, 2020 in मुक्तक

चलो होड़ लगाते हैं, ओ री! बारिश तेरी,
मेरे नयन झरने से।
ओह! मगर तुम हार जाओगी,
ये झरना तो पूरी रात बहता है,
और तुम बरसती हो कुछ क्षण के लिए।

पपीहे की प्यास

August 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक पपीहा बैठा खेत में ,
देख आसमान को चिल्लाएं!

बहुत हुआ सब्र ,
अब तो बरस जाओ प्रभु!
मेरी इच्छाओं पर ,
मेरी अभिलाषाओं पर,
थोड़ा तो बरस जाओ प्रभु!

मेरी मेहनत पर ,
मेरी भूख पर,
थोड़ा तो तरस खाओ प्रभु!

साहूकार बड़ा ही जालिम ठेहरा,
रहता हम पर नजरों का पहरा,
नन्ही नन्ही बेटियां! मेरे घर पर,
और खाली पड़ा कनस्तर रोए ,
आंटा कहां से लाऊं प्रभु!

बहुत हुआ सब्र ,
अब तो बरस जाओ प्रभु!

…….मोहन सिंह मानुष

शेर

August 16, 2020 in शेर-ओ-शायरी

बुरे वक्त में जो छोड़ जाए ,
सपने दिखाए और दिल तोड़ जाए,
फिर अच्छे वक्त में वापिस लौट आए ,
उसे स्वार्थ ना कहें तो क्या कहें!

बात बहुत छोटी सी……..(शेर)

August 16, 2020 in शेर-ओ-शायरी

बात बहुत छोटी सी,
मगर कंकड़ का पहाड़ बना देती है वो,
कब तक उस पर अपना हक जताएं ,
पल भर में ही बेगाना बना देती है वो

दुर्लभ पेड़

August 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

स्वतंत्रता दिवस काव्य पाठ प्रतियोगिता:-

बहुत सारी वनस्पतियों में,
बस एक ही है वो जादुई पेड़!
हरा -भरा ,घना -निराला,
अलग-अलग सी कलियां उसकी,
खुबसूरत तने का ताना-बाना,

रंग बिरंगी पत्तियां! देखो,
अनोखा दृश्य बिम्ब करें ,
तीन रंगा फूलों का गुच्छा,
हृदय को प्रसन्न करे।

प्रकृति का है ये अनुपम सौंदर्य,
ऐसी विविधता में एकता,
शायद ही कहीं और मिले।

इस पेड़ की शोभा पक्षियों को भाती,
जो भी आता, यही रह जाता,
सौंदर्य में उसके वो खो जाता।

फूलों का रंग; हरा , सफेद , केसरिया!
हरियाली, शान्ति, और बलिदान ,
सबको यहां पहचान मिले,
रहते सब मिलजुलकर साथ,
मुस्कुराते -से सब मेहमान मिले ,
उन सबकी ये अनमोल मोहब्बत,
पेड़ को और गुणवान करें।

मगर पेड़; पर एक कौआ आया,
सभी रंगों को उसने भड़काया,
सुन केसरिया तु है कितना अद्भुत!
पेड़ को सुन्दर तुमने बनाया,

हरे रंग ! तू है बहुत तेजस्वी,
कान में उसके बहुत फुसफुसाया,
सफेद !अगर तू ना हो तो ,
पेड़ कुरूप बने और पेड़ों सा।

मगर, कौआ थोड़ा नासमझ बेचारा!
चालाकी उसकी ना चले; यहां पर,
क्योंकि हरा मिला है केसरिया से ,
सफेद घुला है इन दोनों में।

प्रेम भावना, भाईचारे से,
सबका महान योगदान है,

तभी तो पेड़ दुर्लभ बना!
सबके समान महत्त्व से।
और तभी तो पेड़ अद्भूत बना!
सबके असीम सौंदर्य से।

—मोहन सिंह मानुष

काव्यगत विशेषताएं
भाव—>
पूरी दुनिया में भारत ही एक ऐसा देश है, जहां पर विभिन्न परंपराओं, विविध संस्कृतियों, अनेक प्रकार की भाषाओं और बहुत सारे धर्मो के लोग; आपस में मिलजुल कर भाईचारे के साथ रहते हैं। विविधता में एकता यहां की मूल पहचान है कविता में यही भाव संजोए गए हैं
प्रतीकात्मक शैली के अनुरूप दुर्लभ पेड़ महान देश भारत का प्रतिनिधित्व करता है,
कलियां–परंपराओं ,रंग बिरंगी पत्तियां- विभिन्न भाषाओं, पक्षी- विदेशी नागरिकों,
तीन रंगा फुल – विभिन्न धर्मो,कौवा- राजनीति एवं राजनेताओं इत्यादि का प्रतीक है
समस्त पेड़ का मानवीकरण किया गया है।

अगर दबा है कोई दर्द……(शेर)

August 16, 2020 in शेर-ओ-शायरी

अगर दबा है कोई दर्द हाले दिल में ,
तो खुलकर रो लीजियेगा
हमदर्द होते हैं; ये आंसू हमारे,
ज़ख्मों को जरा धो लिजियेगा‌।

नमन मेरा

August 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

नमन मेरा उन परवानों को,
आजादी के दीवानों को,
कुछ जाने से ,कुछ अनजाने से,
क्रान्ति के मतवालों को,
खेल गए जो मौत से,
निडर रहे बेखौफ से,
शहादत व बलिदानों को,
नमन मेरा ,नमन मेरा।
🇳🇪🇳🇪🇳🇪🇳🇪🇳🇪🇳🇪🇳🇪

स्वतन्त्रता दिवस की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं जय हिन्द।

—-मोहन सिंह मानुष

अफ़सोस (शायरी)

August 14, 2020 in शेर-ओ-शायरी

मैं किसी फटी डायरी के पन्नों सा,
जो हवा में उड़ रहे है इधर- उधर,
मगर अफसोस ! पढ़ने वाला कोई नहीं।

……..मोहन सिंह मानुष

एक शब्द (शायरी)

August 14, 2020 in शेर-ओ-शायरी

एक शब्द ने मुझे हिला डाला ,
अच्छी चल रही थी जिंदगी,
मगर रुला डाला।
ये शब्द बड़ा मीठा सा, तीखा सा,
बड़ा परेशान करे ,नींदों को हराम करें,
शोहरत से बदनाम हुए,
और वजूद को पूरा हिला डाला,
एक शब्द ने मुझे हिला डाला।

शायरी (जाने माने)

August 13, 2020 in शेर-ओ-शायरी

जिन्हें समझते थे हम औरों से अलग,
वो भी आज, ज़माने से निकले।
जिनसे थी हमें चन्द खुशियों की आरज़ू,
वो भी आज ,दर्द के जाने माने से निकले।

हृदय महल

August 12, 2020 in मुक्तक

बहुत भीड़ है मन्दिर में,
मस्जीद में शोर-शराबा है,
मेरा हृदय महल बहुत खाली-सा
यहां विराजमान हो जाओ, प्रभु!
फिर मेरे लिए
यहीं अयोध्या और यहीं है काबा ।

दो डॉक्टर बर्ताव के

August 11, 2020 in मुक्तक

दो डॉक्टर बर्ताव के !
एक कड़वी दवा खिलाएं,
दूजा मीठी दवा पिलाएं,
‘मानुष’ मीठी से करें परेहज
नीम ही नीरोगी होए।

मां याद आ ही जाती है(शायरी)

August 10, 2020 in शेर-ओ-शायरी

सबसे दुलारी हो!
तुम ही प्यारी हो!
अक्सर,ये कह तो देता हूं ; मैं प्रिय को
मगर ज़रा सा कुछ भी हो जाए,
मां याद आ ही जाती है।

शेर(वेदना)

August 9, 2020 in शेर-ओ-शायरी

माना दर्द मिला है, बहुत तेरे इश्क में
मगर चीस बड़ी ही मीठी है, इस वेदना की।

शेर(चाह)

August 9, 2020 in शेर-ओ-शायरी

वैसे नींंद नहीं आती ,
आजकल मुझे।
जबसे देखा हैं , हमदम तुझे
किस्मत में हैं, या नहीं तू
पर कोशिशें  करता हूँ ,
अब सो जाने की
काश इक पल सपनों में ही ,
मिल जाए तू मुझे ..!

एक दिन

August 9, 2020 in मुक्तक

एक दिन, ऐसे ही मैंने कोशिश की ,
खुद को खुद में ढूंढने की,
अपने वजूद को ;
गहराइयों में टटोलने की,
अरे! कौन हूं मैं?
लिंग ,नाम, पहचान ,
गौत्र, जाति ,धर्म,देश,
सब पर विचार किया,
फिर भी संतुष्टि नहीं मिली।
फिर अचानक, मन से आवाज आई ,
इन्सान हो और कुछ भी नहीं।

एक दिन

August 9, 2020 in मुक्तक

एक दिन ऐसे ही मैंने कोशिश की ,
खुद को खुद में ढूंढने की,
वजूद को गहराइयों में टटोलने की,
अरे! कौन हूं मैं?
लिंग ,नाम, पहचान ,गौत्र, जाति ,धर्म,देश
सब पर विचार किया,
फिर भी संतुष्टि नहीं मिली नहीं।
फिर मन से आवाज आई ,
इन्सान हो और कुछ नहीं।

शायरी (दर्द ए इश्क़ और शराब)

August 8, 2020 in शेर-ओ-शायरी

दर्द ए इश्क़ और शराब!
दोनों एक जैसे हैं, जनाब!
नशा चढ़ने पर,
ज़माना फर्जी सा लगता है।

मैंने देखा है ,शैतान ! इंसानों में

August 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

दानव तो है, यूं ही बदनाम
ग्रंथ-पुराणों में ,
मैंने देखा है,शैतान! इंसानों में।

रूह कांप जाए; हृदय फट जाए,
हैवानियत की हदें पैर फैलाए‌।
शर्मसार होती है मानवता ;
सुर्ख़ियों के गलियारों में,
मैंने देखा है, शैतान! इंसानों में।

वो कोमल सी,
नन्ही पंखुड़ी जैसी,
करहाहट ; उसकी पपीहे जैसी,
पर; नोचता रहा ,उसे वो हैवान!
बहता खून; उसके शोषण की कहानी थी ।
फिर भी बच जाते , ऐसे खूंखार!
सत्ता ,कानून के दलालों से,
मैंने देखा है, शैतान! इंसानों में।

—-मोहन सिंह मानुष

नहीं समझने वाले बहुत हैं… (शायरी)

August 6, 2020 in शेर-ओ-शायरी

मैं बुरा हूं या नहीं,
मगर बनाने वाले बहुत हैं।
मैं मौन-सा बना; चुप हूं,
क्योंकि नहीं समझने वाले बहुत हैं।

इकतफाक से

August 6, 2020 in शेर-ओ-शायरी

सच्चाई को मारने चला था झूठ
आवेग में आकर,
मगर इकतफाक से, सच्च !
कहीं मिला ही नहीं।

माखन नहीं चुरायों है!

August 6, 2020 in Poetry on Picture Contest

भ्रम हुआ है तुमको, मैया !
भोला तेरा कृष्ण कन्हैया,
माखन नहीं चुरायों है।

लांछन लगाएं ब्रजबाला,
ग्वालिन बड़ी ही सयानी चपला,
मुझको बहुत नचायों हैं,
ना नाचूं तो चोर बताएं!
और मुख पर माखन बहुत लगाए।

अगर नाचू तो; खुद ही खिलाएं !
मगर कमरिया नाजुक-सी मोरी ,
किस-किस का दिल बहलाए रे !
बहुत सताती हाए!वो मैया!
भोला तेरा कृष्ण कन्हैया
माखन नहीं चुरायों हैं।

मैया तू मुझसे क्यो रूठी,
बात बताओ! सच्ची है या झूठी?
मैं नहीं क्या तुम्हारा लल्ला?
दाऊ भैया ! बहुत चिढ़ाए,
बाजार से खरीद तुम लाएं,
आंसू बहाकर मोहन बोलें!
मेरी मां से मिलाओं ,मैया!
भोला तेरा कृष्ण कन्हैया,
माखन नहीं चुरायों हैं।

जज़्बाती हो ;यशोदा घबराई!
कान छोड़ , ममता दिखलाई।
झूठ कहता है ,तेरा भैया!
मैं ही तो हूं तेरी मैया,
तू है मेरा प्यारा कन्हैया।
गले लगाकर आंखें पूछीं,
नटखटता , इक पल में भुली।
कान्हा पहले आंचल में छुपे,
मन्द -मन्द वो फिर मुस्कुराएं,
झूठ-सांच का घोल पीला कर
मैया जी को लिया मनाएं।
भोला तेरा कृष्ण कन्हैया
माखन नहीं चुरायों हैं।
 
———मोहन सिंह मानुष

नश्वर है, ये जीवन

August 6, 2020 in मुक्तक

जीवन क्या है?
क्या है जीवन!
लकड़ी का कोई फट्टा-सा,
पेड़ का कोई पत्ता-सा
कब टुट जाएं कुछ पता नहीं,
मानो कोई गुब्बारा-सा
तैरता मटका बेचारा-सा
कब फूट जाए पता नहीं।

खुशी की चाह

August 5, 2020 in शेर-ओ-शायरी

इक खुशी की चाह में ,
कितने गमों को गले लगाया हैं,
सुकून तो मिला ही नहीं,
अब दर्द से ही काम चलाया है!

इश्क का मारा (शायरी)

August 5, 2020 in शेर-ओ-शायरी

कोई गरीबी का मारा ,
कोई बदनसीबी का मारा ,
कोई वक्त से परेशान हैं ,
कोई अपनों का मारा ।
मगर वो बेपरवाह सा,
मगन अपने दर्द में,
जो है इश्क का मारा।

हौसलों के रॉकेट सा…

August 3, 2020 in मुक्तक

तू जिंदगी !
दर्द भरे आसमान सी,
मुसीबतें काले बादल है,
मगर मैं ठहरा!
हौसलों के रॉकेट सा ,
चीरता मेघों को जाऊंगा,
जिंदगी तेरे आसमान को
छलनी करता ,उभर जाऊंगा।

———मोहन सिंह “मानुष”

मेरे गम! मुझे तू.……. (शायरी)

August 1, 2020 in शेर-ओ-शायरी

मेरे गम!मुझे तू,
इतना रुसवा ना कर ,
मैं बारिश के इंतजार में हूं,
फिर उसमें नहाकर ,सब आंसू बहाकर,
तुझे हल्का-सा कर दूंगा।

शायरी

August 1, 2020 in शेर-ओ-शायरी

अभी-अभी धारा से उठे हैं ,
चलना भी सीख जाएंगे,
कभी उठेंगे तो कभी गिरेंगे,
कभी बिना गिरे भी संभल जाएंगे।

बड़ा ही मुश्किल

August 1, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कौन बुरा; कौन अच्छा,
जान पाना; बड़ा ही मुश्किल है।

कौन झूठा; कौन सच्चा,
हृदय में उतरना मुश्किल है।

कौन बैहरूपिया, कौन लंगोटिया,
किस में छिपा है ,असीम स्वार्थ,
ये भी परखना मुश्किल है‌।

कौन है, अपनों में दूश्मन ,
कौन है ,परायों में अपना,
निज हितैषी ढुंढना,
ये भी बड़ा ही मुश्किल है।

पर एक उपाय सूझा-सा,
झांक जरा-सा ज़हन में,
बैठा है जो मन में,
बस उसकी सुन!
वरना झेलते रहना,
सबको; बड़ा ही मुश्किल है।
 
       —-मोहन सिंह मानुष

मेरा कातिल ,बड़ा शातिर!

July 31, 2020 in शेर-ओ-शायरी

ये कातिलों का शहर है,
जनाब!
यहां किसी को गन से मार दिया;
तो किसी को छुरे से ,
मार दिया‌।
मगर मेरा क़ातिल बड़ा ही शातिर है
कम्बख़त ने इश्क से मार दिया।

शायरी

July 31, 2020 in शेर-ओ-शायरी

तूम सागर हो तो ,
हम लहर है तुम्‍हारी।
तुम वजा हो; उसकी ,
जो लगी है हमें बीमारी।
शायद ही कोई लम्हा हो,
जब आए ना याद तुम्हारी।
अब ख़ुदा ही जाने ,
क्या खता हुई हमसे ,
जो आई ना याद तुमें हमारी।

आज पहली बार

July 31, 2020 in शेर-ओ-शायरी

हंसता चहरा रो दिया,
आचंल पूरा भीगो दिया,
आज पहली बार।
बन्जर है अब दिल की जमीं,
शायद कुछ थी हम में ही कमी,
मायूस दिल है रो दिया,
लगता कुछ है खो दिया,
आज पहली बार……….।

लम्बे लम्बे हो गए दिन

July 31, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

लम्बे- लम्बे हो गए दिन ,
रात समुन्दर जैसी हैं ,

तेरे बिन; इश्क के मंजर में,
हालत बंजर जैसी हैं ।

किया है तूमने जादू हम पर,
तेरी आंखों में मदहोशी है,
कैसे ना बहक जाए हम,
सुरत जो अप्सरा जैसी हैं ।

लम्बे लम्बे हो गए दिन,
रात समुन्दर जैसी हैं……

—-मोहन सिंह मानुष

मेरी प्यारी हिन्दी

July 31, 2020 in मुक्तक

जिसको बोल कर,
मन हो जाए प्रसन्न ,
ऐसी मेरी यह भाषा है ।

भाव को मेरे बना दे दर्पण ,
करती है शब्दों का समर्पण ,
ऐसी मेरी यह भाषा है।

जैसा चाहूं वो बोल-लिख पाऊं ,
हर वर्ण में इसकी क्षमता है।
बन गई जो अभिमान मेरा
ऐसी मेरी हिंदी भाषा है।

नदी और नाला।

July 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जहां गंगा पवित्र है ,
वही पवित्र तो नाला भी होता था कभी,
अगर गंगा पाप धोती है !
तो नाला पापों को समेटता है अपने में।
पर नाले को कौन पूजेगा,
पर कभी नाला भी नदी हुआ करता था ,
वही स्वच्छ जल और और वही पवित्रता
पर जैसे ही नदी सूखी ,हमने बना दिया
उसे नाला !
और अब नाला; नाला है और नदी , नदी है।

दर्द की भावुकता

July 30, 2020 in शेर-ओ-शायरी

दर्द की भी भावुकता देखो,
दर्द से मेरे वो पिंघल गया।
काश तुम्हें वो मिल जाए,
इतनी सी दुआ, वो भी कर गया।

विश्वास

July 30, 2020 in शेर-ओ-शायरी

हुक्के सी हैं लत्त तुम्हारी,
लगी जो ; हम से छुट्टे ना ।
और रेशम-सा हैं विश्वास हमारा
कभी जो तुमसे टूटे ना ।………

कितना अच्छा होता !

July 30, 2020 in मुक्तक

कितना अच्छा होता!
अगर ऐसे ही हमारे नाम भी अलग होते ,
और काम भी अलग-अलग होते ,
मगर, जात और धर्म एक ही होती,
इंसानियत।

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