आधुनिक मधुबाला

November 1, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

चिंतामणि सी अकुलाती हो
मुझ में क्या अद्भुत पाती हो?
चंचल मृगनयनी सी आंखों से
क्या मुझ में ढूंढा करती हो?
चंद्रमुखी सी हंसी हंस-हंसकर
अंतरात्मा को चहकाती हो।
नहीं भान जरा
नहीं मान जरा
मदिरा का छलका प्याला हो
हो सभी कलाओं में परिपूर्ण,
तुम आधुनिक मधुबाला हो।
मैं एकटक देखें जाता हूं
नैनो को हिला भी ना पाता हूं।
है रूप तेरा कुछ ऐसा कि
मैं तुझ में डूबा जाता हूं
निमिषा सिंघल

अजनबी हसीना

November 1, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ अलग सी पगली हो तुम!
नैन लड़ाती हो
कुछ कहना भी चाहती हो
बस मुस्कुरा कर ही रह जाती हो।

मेरे इशारों में उलझ कर घबरा जाती हो
जैसे गिर ही पड़ोगी
मेरे जरा सुनिए !
कहते ही
तुम्हारा हृदय साज सा बज उठा
ऐसा महसूस हुआ मुझे।

जैसे कोई तार जोर से खींचो
तो झनझना उठता है।
तुम्हारी उखड़ती सांसे लड़खड़ाते कदम
कुछ ना कहकर भी बहुत कुछ कह जाते हैं।

और पैर मुड़ जाने पर लंगड़ाती सी तुम
मुझसे दूर भाग जाना चाहती हो।
दूर जा रही हो
जाने क्यों नजदीक आती दिखती हो।
तुम अजनबी हो!
फिर भी ना जाने !
अपनी सी क्यों लगती हो?

निमिषा सिंघल

कद्र करो मां बाप की

October 31, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

तिनका तिनका जोड़ -जोड़ कर,
चिड़िया नीड़ बनाती है।
छोटे-छोटे बच्चों को
ऊंची उड़ान सिखाती है।
एक दिन नीड छोड़कर बच्चे
दूर गगन उड़ जाते हैं,
मां-बाप का कलेजा क टता है
वह याद बहुत ही आते हैं।

वैसे ही इंसान यहां
बच्चों का पालन करता है।
छोटी-छोटी जिद भी
पूरी करने की कोशिश करता है।

लाड प्यार से पाल पोस कर
सही दिशा दिखलाता है।
ऊंची उड़ान सीखते ही
हर बच्चा फिर उड़ जाता है।

सूनी अखियां राह निहारे,
आ जाओ बूढ़ों के सहारे।
अकेले तड़पते मां-बाप बेचारे,
जिन्होंने अपने खून से अपने बच्चे पाले।

मां-बाप क्या है अनाथों से पूछो,
जो तड़पते होंगे हर पल
मां-बाप के दुलार के लिए
एक मीठी पुचकार के लिए
ललाट पर दुलार के लिए
गोदी पाने के लिए
यह सुनने के लिए
चिंता ना करना!
हम पीछे खड़े हैं तुम्हारे सहारे के लिए।

पर स्वार्थी संतान
बेसहारा छोड़ कर चलती बनी
मां-बाप की सूनी आंखें
इंतजार में थकती रही।

निमिषा सिंघल

अद्भुत कृष्णा

October 31, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

श्याम रंग विराट ललाट,
लाल तिलक सोहे मुख भाल।
तिरछी नजर कान्हा जब डालें,
गोपियों के दिल भये मतवाले।
कान्हा कान्हा रटते रटते,
गोपियों ने सुध बिसराई थी।
कान्हा के संग रास रचाने,
सभी गोपियां रोई थी।
भावों से वो विह्ववल थी,
कृष्ण के रंग में डूबी थी।
कृष्णा सब के संग नाच रहे,
नृत्य से समां सब बांध रहे।
मतवाली होकर गोपियां सभी,
मोक्ष मार्ग पर नाच रही।
कैसी अद्भुत यह लीला थी
कैसा था इनका मधुर मिलन,
सब कान्हा के रंग में डूबी थी।
कान्हा के संग नृत्य करके,
मोक्ष मार्ग पर निकल पड़ी।
कृष्णा सब के संग सखा बने,
गोपियां कृष्णा की संगिनी बनी।
इस मोहक रास रचाने में,
गोपियां मोक्ष धाम की राह चली।
निमिषा सिंघल

कालचक्र

October 31, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

समय कभी ना ठहरा था ना ठहरा है ना ठहरेगा।
वह तो कालचक्र का पहिया है,
दिन-रात धुरी पर घूमेगा।
समय के साथ चलकर ही इंसान उन्नति पाता है।
जो समय के साथ नहीं चलता,
वह बाद में फिर पछताता है।
समय बड़ा बलवान हर घाव को भरता जाता है।
परिवर्तन ही सृष्टि का नियम,
उससे आगे ना कोई जाता है।
निमिषा सिंघल

संस्कार हीन इंसान नहीं

October 31, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

अनपढ़ हैं वह सब पढ़े लिखे,
पढ़नेका मर्म जो जाने नहीं।
जो अभिमानी है दंभी हैं,
वे निपट गवार अज्ञानी है।
कर्मों में यदि सुधार नहीं,
तो कैसा तुम्हारा पढ़ना था।
संस्कार हीन इंसान नहीं
जीवन को करो ना बेकार यूं ही
तुमसे बेहतर वो पक्षी है
क्रमवार कहीं भी उड़ते हैं।
मनुष्य लगा आपाधापी में,
जानवर भी क्रम में चलते हैं।
भगवान ने दी है बुद्धि बहुत,
करो उसका इस्तेमाल सही।
कुछ अच्छे कर्म करो जग में
कुछ तो बने पहचान कोई!
निमिषा सिंघल

जीवन सफल बना रे बंदे

October 31, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

चतुराई तेरे काम ना आए,
बुरे कर्म सब आड़े आए।
कर्मों के फल सब तू पाए,
फिर काहे चतुराई दिखाएं।
दान धर्म का मन अपना ले,
बुझे दिलों के दीप जला ले।
प्रभु ने दिया है तुम्हें बहुत कुछ,
कुछ तो लुटा ले दान दया कर।
साथ तेरे कुछ भी ना जाए,
फिर किस पर तू यू इतराए।
सदियों बीते काम को तेरे,
सदियों बाद भी नाम हो तेरे।
याद करें सब आंखे भर ले,
तब जीवन तेरा सफल रे बंदे।
निमिषा सिंघल

जग दो दिन का डेरा

October 31, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

यह जग दो दिन का फेरा है,
भगवान का घर ही डेरा है।
आज तुम हो यहां कल जाने कहां,
यह जग तो जीवन मरण का मेला है।
भगवान् को भज ले प्राणी,
कुछ नेक कर्म कर प्राणी।
मन में ना सोच बेईमानी,
वरना कुछ भी ना पाएगा।
मरकर सुकून भी ना पाएगा,
अच्छे कर्मों के साथ गया,
तू मोक्षधाम को जाएगा।
बुरे कर्मों का बुरा नतीजा,
वरना कर्मों के फल पाएगा।
निमिषा सिंघल

श्राद्ध का अर्थ

October 31, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

श्रद्धा से जो किया अर्पण,
सम्मान से खिलाया।
सच्चे अर्थों में वह ही,
श्राद्ध कर्म कहलाया
जीते जी ही दो मान,
पूरा दो उन्हे सम्मान
इच्छाएं पूरी कर दो,
खुशियों से दामन भर दो।
बाद मरने किसने खाया,
सिर्फ मन को था समझाया।
सोच सोच कर वह सब बनाया,
क्या-क्या था उनको पसंद!!
वह पंडित जी को खिलाया।
निमिषा सिंघल

प्यारा बचपन

October 31, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

बाबूजी का वो लाड़ भरा धमकाता बचपन,
है याद मुझे अक्सर आ जाता प्यारा बचपन।
खरगोशों के संग दौड़
कुलाचे भरता बचपन,
तोते चिड़ियों की नकल भरा बातूनी बचपन।
उस प्यारे से बचपन में था बस एक खटोला,
जिसके झोटों के संग तैरता था बच्चों का टोला।
इप्पी- दुप्पी लुक्का छिप्पी गेंद ताड़ी,
साइकिल पर गोल-गोल घूमती थी बच्चों की सवारी।
चांद तारों भरी छत पर तारे देखा करते,
चारपाई का जमघट,
आकाश में कलाकृतियां ढूंढा करते।
था लाड़ दुलार भरा मीठा सा प्यारा बचपन,
है याद मुझे आता है बहुत प्यारा बचपन।
निमिषा सिंघल

खुशियां और त्योहार

October 31, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

अपना-अपना सोचे प्राणी,
अपनी खुशियां लागे प्यारी।
स्वार्थी ना बनो,
खुद से ऊपर थोड़ा तो उठो!
त्योहार मनाओ खुशियों से उपहारों से,
रोतों को हंसाओ कपड़ों और सामानों से।
तब तो समझो सब सार्थक है,
वरना खुशियां निरर्थक है।
एक चेहरा भी गर खिला सके,
मन में सुकून पा जाओगे।
सही अर्थों में तब ही तुम,
उल्लास से त्योहार मनाओगे।
निमिषा सिंघल

चरण वंदना

October 31, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

तेरा सब तुझको अर्पण,
तू दे दे मुझे सहारा।
क्यों रूठा है तू भगवान
अब थाम ले हाथ हमारा
है नाव भंवर में मेरी
तू ही पतवार ,किनारा
मांझी बनकर नैया की,
तू बन जा खेवन हारा।
निमिषा सिंघल

दिवाली और पटाखे

October 31, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

खुशियों का मतलब पटाखे नहीं,
रोशनी और उल्लास है।
ना समझो गलत बंद करना इन्हें,
प्रदूषण का यह सब सामान है।
पहले ही प्रदूषण से बेदम है आबोहवा
उस पर इस दिन चहु ओर
फैला होता बस धुआं धुआं
हफ्तों तक पटाखों की धुंध में
धूयेऔर घुटन से दम निकला ही जाता है।
निमिषा सिंघल

प्रार्थना

October 30, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

हे ईश्वर!
मेरे मन के गहन तमस में,
आशा का उजाला भर दो।
मैं तुझ में ही खो जाऊं,
कुछ ऐसा मुझको कर दो।
चरणों में तेरे वंदन,
बस शीश झुका हो मेरा।
हो जाए कृपा यदि तेरी,
जीवन यह सफल तब मेरा।

निमिषा सिंघल

नदियों की वेदना

October 30, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

अमृत से भरी नदियां ये सभी,
आंसू का लिए सैलाब क्यों हैं?
बाहर कल कल की नाद तो है,
अंदर वेदना बेआवाज क्यों हैं?
जैसे मन इनका भारी हो!
मन भीतर गहन उदासी हो!
ऐसा लगता तूफा सा हो!
इनका भी कलेजा कटता हो!
हे मौन मगर कुछ कहती है,
अत्याचारों को सहती हैं।
मेला क्यों इन्हें हम करते हैं?
क्यों दर्द को नहीं समझते हैं?
फिर फिर नादानी करते हैं,
मन की आवाज न सुनते हैं।
सोचो जल है तब तो कल है,
यदि स्वच्छ है जल तो जीवन है।
आओ खुद से फिर करें पहल,
ले स्वच्छ इन्हें करने का प्रण।
निमिषा सिंघल

मनमोहिनी

October 28, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

सुनहरी धूप सी काया,
मोगरेकी कली के समान मनमोहिनी माया।
सुलक्षणा चपला चंचला सी,
मोहक अस्त्रों से बांधती छाया।
आंखें खोली तो सिर्फ तुम थी
बंद आंखों में भी तुम्हारी माया।
दीवाना में बन गया हूं
सांसो में तुम ही को है पाया।
निमिषा सिंघल

कौन हो तुम?

October 28, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

रूप अद्वितीय बिखराती हो,
जब सामने तुम आती हो।
काले घने केश लहराती,
आंखों से जादू सा चलाती।
एक हंसी उन्मुक्त तुम्हारी,
बेचैनी दिल में दे जाती।
कौन हो तुम?
क्या ख्वाब कोई?
या मीठा सा एहसास कोई,!
सूरज चंदा का रूप लिए
तुम रूप महल की रानी हो।
पाक़ीज़ा सा ये रूप तेरा,
क्या मेरी कोई कहानी हो?
निमिषा सिंघल

त्योहार

October 28, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

त्योहारों का भी कुछ मतलब,
समझो तो नहीं कुछ भी गफलत।
समृद्धि उन्नति का द्योतक,
राग द्वेष और मेल का ज्योतक।
त्योहार बिना जीवन यह नीरस,
नीरस जीवन में भरने कुछ रस,
त्योहार हमारे आते हैं
नई उमंगे दे जाते हैं।
निमिषा सिंघल

प्यारा संसार

October 28, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक प्यारा संसार सजाएं,
हंसी खुशी का शहर बसाए।
गम जहां से ओझल हो जाए,
खुशियां दामन भर भर आए।
प्रगति उन्नति का हो जो द्योतक,
हरी भरी धरती नील गगन तक।
दुख जहां ढूंढे ना पाए
ऐसा सुंदर शहर बसाए।
निमिषा सिंघल

जग दो दिन का फेरा

October 27, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

पिंजर बनना तय हम सबका,
क्यों लालच में अंधा रें!
प्रेम दया से जी ले रे बंदे
जग दो दिन का फेरा रे।
जाएगा जब इस जग से तू
चार जनों का कंधा रेे।
क्या तेरा क्या है मेरा बस
झूठ फरेब का धंधा रे।
काम नहीं आएगा यह सब
प्रभु भजन कर मनवा रे।

निमिषा सिंघल

जब दो दिन का फेरा

October 27, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

पिंजर बनना तय हम सबका,
क्यों लालच में अंधा रें!
प्रेम दया से जी ले रे बंदे
जग दो दिन का फेरा रे।
जाएगा जब इस जग से तू
चार जनों का कंधा रेे।
क्या तेरा क्या है मेरा बस
झूठ फरेब का धंधा रे।
काम नहीं आएगा यह सब
प्रभु भजन कर मनवा रे।

निमिषा सिंघल

आखिर क्यों

October 27, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

दिल में जो सैलाब है
आंखों से निकलता क्यू हैं?
तुमको देखे बिना
ये दिल तड़फता क्यू है?
तुम तो इस दिल के रौनक – ए- बहार हो
यह बात समझते नहीं
तो मुस्काते क्यू हो?
दीवानों की तरह घूमते रहते मेरे इर्द-गिर्द
मेरे गेसू की खुशबू में नहाते क्यू हो?
खून के आंसू अजाब बनकर इस दिल में मचलते रहते
तुमको दी थी खबर आंखों ने
अजनबी बन जाते क्यू हो?
आज मैं दूर चली हूं तुमसे
यह खबर लहू बनकर आंखों से बहाते
क्यू हो?
निमिषा सिंघल

तुम भी तो कभी जताते तो

October 27, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

इशारो इशारो में गुफ्तगू करते हो,
कभी दिल का भी हाल सुनाते तो।

कभी खयालों में खुशबू से महक उठते हो,
आखिर तुम्हारी रजा क्या है बताते तो।

सैकड़ों राही मिले सफर – ए- जिंदगानी में,
तुम इतने दिलकश क्यों लगते थे
इसका सबक बताते तो।

तुम्हारी अनकही बातें मुझे कैसे सुनाई दे जाती हैं,
यह पागलपन समझाते तो।

थम सी जाती है यह सांसे
तेरी आहट के बिना,
क्यों बहक जाती हैं तेरे नाम से
बतलाते तो।

ताउम्र सफर तय किया एक दूजे के बिना,
तुम्हें भी मेरी आरजू थी
यह जताते तो!

एक बार ही सही धीरे से कह जाते वह शब्द,
और जिंदगी भर निशब्द
हम तुम्हें गुनगुनाते तो।

निमिषा सिंघल

इश्क

October 27, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

जुबां की बात मत करना..
उसे आंखों में छुपा रखना…
वो चिरागे आतिश है
सुलग उठोगे।

इश्क कोई दर्द भरी शमा नहीं!
जो सिसकती रहे रात भर
और खत्म हो जाए।

इश्क कोई बांसुरी नहीं!
जो सुरीली तान बन कर
चुपचाप धीमे स्वर में बजती रहे।

इश्क कोई चांद नहीं
जिसकी मधुर चांदनी में
नहाते रहोगे
मगन होकर।
इश्क खुशबू है
दबा नहीं सकते।

इश्क चांद नहीं सूरज है
थोड़ा परवान चढ़ा
शीशे सा सब उजागर हुआ।

इश्क बांसुरी नहीं बिगुल है
जमाने भर में सुनाई देता है।।
इश्क शम्मा नहीं आतिश है
जला के खाक ना कर दे
तब तक ना पीछा छोड़ता है।

जलने में ऐसा क्या है??
इश्क एक बार तो चखना है
हर दिल ये सोचता है।

निमिषा सिंघल

इश्क

October 27, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

जुबां की बात मत करना..
उसे आंखों में छुपा रखना…
वो चिरागे आतिश है
सुलग उठोगे।

इश्क कोई दर्द भरी शमा नहीं!
जो सिसकती रहे रात भर
और खत्म हो जाए।

इश्क कोई बांसुरी नहीं!
जो सुरीली तान बन कर
चुपचाप धीमे स्वर में बजती रहे।

इश्क कोई चांद नहीं
जिसकी मधुर चांदनी में
नहाते रहोगे
मगन होकर।
इश्क खुशबू है
दबा नहीं सकते।

इश्क चांद नहीं सूरज है
थोड़ा परवान चढ़ा
शीशे का सब उजागर हुआ।

इश्क बांसुरी नहीं बिगुल है
जमाने भर में सुनाई देता है।।
इश्क शम्मा नहीं आतिश है
जला के खाक ना कर दे
तब तक ना पीछा छोड़ता है।
जलने में ऐसा क्या है??

इश्क एक बार तो चखना है
हर दिल ये सोचता है।

निमिषा सिंघल

यादों की मोमबत्ती

October 25, 2019 in शेर-ओ-शायरी

बुझती, बंद होती यादों की मोमबत्तियां,
दे जाती है याद आज भी मधुरिमा।
कुछ शब्द कोंधते हैं आवाज़ बनके
कहकहे हवाओंमें गूंजते हैं साज बनके।
निमिषा सिंघल

कृष्ण दीवानी

October 25, 2019 in गीत

तोसे प्रीत लगाई कान्हा रे!
जोगन बन आई कान्हा रे।
तोसे प्रीत लगाई कान्हा रे।

१. लाख विनती कर हारी,
राधा तेरी दीवानी,
तेरे दरस की प्यासी
मैं हूं तेरी कहानी,
कान्हा मुझ में समा जा!
बंसी की धुन सुना जा।
मोहे कृष्णा बना जा!
आजा कान्हा!
तोसे प्रीत लगा,…
२. तू है मेरा कन्हाई!
फिर काहे यह लड़ाई।
तेरी याद करूं मैं,
आठों प्रहर मरूं मै।
क्यों ना समझे तू कृष्णा ?
मन में तेरी है तृष्णा।
क्यूकी!
तोसे प्रीत लगा…
३. डोर खींचे तेरी ओर,
चले मेरा ना ही जोर।
सुन मोरे चितचोर,
मोरी बईया ना मरोड़।
सपनों में तू ही कान्हा,
आंखों में तू ही कान्हा।
मेरे मन में तू ही कान्हा,
बंसी की धुन सुनाना।
सुना कान्हा!
तो से प्रीत…..
४. तेरी बंसी बजी है ,
राधा मगन भई है।
आजा मुझ में समा जा,
कृष्ण राधे कहां जा।
कान्हा,कान्हा,कान्हा,कान्हा,
माखन खाने तो आजा।
नटखट कान्हा
तोसे प्रीत लगाई……. ।
निमिषा सिंघल

कवि

October 22, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

कवि
बनना आसान नहीं,
हृदय के उद्वेगो को
माला में पिरोना कोई खेल नहीं।
झुरमुटों के जंगल से
जज्बातों को एक-एक करके बाहर लाना
कोई खेल नहीं।
जिंदगी खुली किताब ना बन जाए
संभल कर लिखना कोई खेल नहीं ।

लिखे गए हर शब्द की गहराइयों में जाकर,
हर शब्द का मतलब खोजते है,
लोग हर शब्द को तराजू में तोलते हैं।

आखिर इतना दर्द क्यू छलक रहा है लेखन में??
लगता है कोई रोग पल रहा है जेहन में!!

शब्द दर शब्द प्रेम घुला है!!
लगता है कोई सिलसिला चल पड़ा है।

भगवान को ध्यायो तो भी नहीं चूकते है!
गृहस्थजीवन में क्या मन नहीं रमता??

रमता जोगी है!!!!
ये तक सोचते है।

बेचारे कवि आखिर कहा मुंह छुपाए
क्या क्या लिखे?
क्या क्या भाव छिपाए?

अंगारों पर चलते है
हर घड़ी तुलते है
हृदय में घुलते है,
तब कहीं खुलते है।

कवि अपनी बेचारगी किस तरह जताए!!!

निमिषा सिंघल

श्रेष्ठ और निकृष्ट गुण

October 21, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम्हारे अंदर जो मैं है,
वह तुम्हें पीछे धकेलता है।
तुम्हारे अंदर जो पीड़ा है,
वह तुम्हें दया सिखाती है।
तुम्हारे अंदर जो प्यार है,
वह तुम्हें भावुक बनाता है।
तुम्हारे अंदर जो एक जानवर है,
वह तुम्हें वहशत सिखाता है।
तुम्हारे अंदर जो गुस्सा है,
वह तुम्हें दुश्मनी निभाना सिखाता है।
तुम्हारे अंदर जो शर्म है,
वह तुम्हे सुंदर बनाता है।
तुम्हारे अंदर जो समर्पण है,
वह तुम्हें पूर्णता की ओर ले जाता है।
सभी अच्छे बुरे गुण समाए हैं तुम में,
तुम्हारा तुम्हारे प्रति गुणों का चयन ही
तुम्हें श्रेष्ठता या निकृष्टता की ओर ले जाता है।
निमिषा सिंघल

फिर एक सवाल?

October 21, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिंदगी आज फिर एक सवाल पूछती है!
अपने साथ है या साथ छोड़ गए??
झूठे आडंबरो के लिए नाता तोड़ गए!!
तुम तो उनके अपने थे??
फिर परायों के लिए,
तुम्हें आज अकेला क्यों छोड़ गए??
बड़ी बेरहमी से हाथ झटक कर ,
निर्मोही बनकर चलते बने!!

तुम तो उनके अपने थे??
फिर तुम्हें अकेला क्यों छोड़ गए???

जिंदगी फिर एक सवाल पूछती है!
खून से खून का रिश्ता पक्का है?
या मोह के धागों में उलझना सच्चा है??

धागे कमजोर पड़कर,
किसी और भी मुड़ सकते हैं।
खून शायद खून से लड़ मर कर भी
पुकार ही लेगा।

मोह के बंधन तो एक ना एक दिन
पलड़ा झाड़ ही लेंगे।

दिखावट के बंधन,
स्वार्थ और मोह से परिपूर्ण हैं
स्वार्थ पूर्ण रिश्तो का शहद खत्म
और अध्याय समाप्त।

निमिषा सिंघल

नैसर्गिक सुंदरता

October 20, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

सांवले सलोने चेहरे पर
चमकती सफेद दंत पंक्ति,
खूबसूरत उन्हें बनाती है।

खेतों में काम करती महिलाएं,
हंसी -ठिठोली करते -करते
काम निपटाती हैं।

नपी तुली देह,
चंचल निगाहें,
साड़ी में लिपटी
वे सशक्त महिलाएं,
नैसर्गिक सौंदर्य की प्रतिमाएं नजर आती हैं।

मांग भर सिंदूर
काजल भरी आंखें,
आत्मविश्वास से परिपूर्ण नजर आती है।

पति के संग
कंधे से कंधा मिलाती,
गृहस्ती का बोझ उठाती,
तनिक नहीं घबराती हैं।

उनकी यही सब खूबियां,
उन्हें इस संसार में,
बेहद खूबसूरत बनाती हैं
निमिषा सिंघल

स्वार्थी इंसान

October 18, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

प्रकृति ने हमें क्या-क्या ना दिया!
यह कल-कल करती नदियां,
यह स्वच्छ धरा यह नीलगगन।
यह सुंदर चांद, तारे ,सूरज,

लंबे , हरे भरे हैं वृक्ष यहां।
फलों से लदे बागान यहां।
ऊंचे ऊंचे पर्वत है जहां,
मलय पवन बहती है वहां।
और हमने प्रकृति को क्या दिया?
नदियों को हमने गंदा किया,
ओजोन परत में छेद किया,
वृक्षों को हम ने काट दिया,
मलय पवन को प्रदूषित किया,
कितने अधिक स्वार्थी हैं हम!
जिस मां ने हमें इतना कुछ दिया,
हमने उसका ही कलेजा छलनी किया!
वाह रे !स्वार्थी इंसान।
निमिषा सिंघल

आओ दिवाली ऐसी मनाएं

October 18, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

आओ दिवाली ऐसी मनाए ,
थोड़ी खुशियां हम भी लुटाए।
जो तरसे इन खुशियों को इन,
आओ दिवाली उन सब की मनाए।

थोड़ी मिठाई हम भी खाएं,
थोड़ी उनमें बांट के आए।
हंसते चेहरे देखोगे जब,
खुशियां भीतर पाओगे तब।

आओ दिवाली ऐसी मनाए,
थोड़े पटाखे उन्हें दे आए।
दूर सड़क जो देख निहारे,
पटाखे ना होने पर जो मन में हारे।

उनकी हार को जीत बनाएं,
थोड़ी खुशियां उन्हें दे आए।
उनकी संग भी दिवाली मनाए।

आओ दिवाली ऐसी मनाए!
कुछ नये कपड़े बांट के आए,
पहने उनको देखोगे जब ,
हृदय तुम्हारा जगमग होगा,
चारों तरफ आनंद ही होगा।

आओ दिवाली ऐसी मनाए
थोड़ा अन्न हम बांट के आएं,
हम भी खाएं उन्हें भी खिलाएं,
खिलखिलाती हंसी हम पाएं।
आओ दिवाली अब ऐसी मनाए।

निमिषा सिंघल

चुनावी दंगल

October 18, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

नेताजी लाल पीले हैं,
मुंह में है आग,
ताशे उनकी ढीले हैं।
विपक्षी दलों पर आरोपों की कंकरिया फिकवा रहे,
वादों पर वादों की फुलझड़ीया जला रहे।
एक दूसरे का कच्चा चिट्ठा जनता को सुना रहे,
एक दूसरे की बस कमियां गिनवा रहे।
खुद को ईमानदार सच्चा बतला रहे
विपक्षी दल को झूठ का पुतला बता जला रहे।

चुनावी दंगल है शोर ही शोर है,
एक दूसरे को कह रहे अरे बड़ा चोर है।
मन में है धुकधुकी नींदें हराम है,
विपक्षी जीत जाए ना सोच कर बुरा हाल है।
एड़ी चोटी का जोर मिल के सब लगा रहे,
अपनी अपनी पार्टी को विजयी बता रहे।

जय जवान हम सब का सलाम।

October 18, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

जय जवान हम सब का सलाम,
जज्बे को सलाम हिम्मत को सलाम।
अपनी तूफानी इरादों से,
लगा देते जो दुश्मन पर लगाम।
उन शूरवीरोंको हम सबका बारंबार प्रणाम।
जीवन दे देते अपना जो,
हम सब की खुशी के बदले में,
कर्जदार हैं हम उन वीरों के,
उनके बिलखते परिवारों के।

उनकी नन्हे बच्चों ने जब,
चिता में अग्नि दी होगी।
चित्कार उठी होगी धरती,
छुप कर रोया होगा मैं यह गगन।

धरती माता की रक्षा को लालो ने लहू बहाया है,।
तब जाकर भारत भूमि ने आजादी का जश्न मनाया है।
सोने से जज्बात लिए वह हीरे पन्ने देश के हैं।
दुनिया में अगर कुछ सच्चा है,
तो लाल देश के सच्चे हैं,
तो लाल देश के सच्चे हैं।
जय हिंद जय हिंद की सेना।
निमिषा सिंघल

नारी शक्ति

October 18, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

दुर्गा का ले अब अवतार,
कर दे मर्दन,
तोड़ दे सारे मोह के बंधन।
तू ही तो है गृहस्थी का आधार,
तेरे बिना घर केवल नरक का द्वार।
मांगी जाती है कदम-कदम पर अग्नि परीक्षा,
कभी किसी ने पूछा क्या तेरी है इच्छा?
कभी कोख में मार दिया,
कभी दहेज के लिए जिंदा जला दिया।
ना मर्दों की नापाक इरादे पूरे ना हो पाए तो,
तेजाब से चेहरा जला दिया।
अपमानित करके तुझको, आत्महत्या पर मजबूर किया।
कभी तीन तलाक के शब्द बोलकर,
अस्तित्व को ही हिला दिया।
कभी फूल सी कोमल नन्ही परियों को,
राक्षसों ने रौंद दिया।
उठो नारी शक्ति बनो।
अबला नहीं सबला बनो।
तुम दुर्गा हो तुम काली हो
खुद ही अपनी क्यों नहीं करती रखवाली हो।
नारी तुम्हें खुद ही संबल बनना होगा।
अंगारों कांटो पर तो खूब चली,
शक्ति को पहचानना होगा
कालिका तुम्हें बनना होगा।
निमिषा सिंघल

प्रार्थना

October 18, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

हे प्रभु! करुणानिधि…
अब शीघ्र करुणा कीजिए।
हम दीन अब किसको पुकारे !
नाथ दर्शन दीजिए।
जो पाप थे हमने किए,
वह स्वयं ही फल पा चुके।
इन अधर्मों की वजह से हम,
सर्वत्र अपना लुटा चुके।
सर्वत्र अपना लुटा चुके।
हे प्रभु! करुणानिधि..
अब शीघ्र करुणा कीजिए,।
हम दीन अब किसको पुकारे नाथ दर्शन दीजिए।

मुझमें गुम तुम

October 18, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

प्यार होता ही है गहराइयों में,
वरना गहरे पानी में कौन डूबकी लगाता है।
तेरी तीखी निगाहों का मिलना,
सर्द रातों में भी आतिश मुझे बनाता है।
याद नहीं रहता उस वक्त कुछ भी,
जब तेरा चेहरा सामने ठहर जाता है।
आंख भर देखना तेरा मुझको,
इस कायनात में सबसे सुंदर बनाता है।
जब जखीरा तेरी यादों का घेरता मुझको,
भरी महफिल में भी तन्हा मुझे कर जाता है।
रफ्ता रफ्ता हो गए मुझ में तुम गुम,
तुम हो या मैं समझ नहीं आता।
निमिषा सिंघल

मुझको जीने दो

October 18, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

जर्रा हूं मैं आकाश नहीं,
आकाश तले ही रहने दो।
पिंजर हूं कोई मोम नहीं,
पत्थर सा मुझे यूं रहने दो।
आतिश हूं मैं आफताब नहीं,
जलता बुझता सा रहने दो।
कब से जी भर कर रोया नहीं,
मुझे आंसू बनकर बहने दो।
बिन पंख परिंदे जैसा हूं,
मुझे अपने हाल पर रहने दो।
एक खलीश से मेरे सीने में,
उस खलिश मैं मुझको जीने दो।
बिन तेरे मैं एक जिस्म हूं बस,
मुझे रूह बिना ही रहने दो।

मुझको जीने दो

October 18, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

जरा हूं मैं आकाश नहीं,
आकाश तले ही रहने दो।
पिंजर हूं कोई मोम नहीं,
पत्थर सा मुझे यूं रहने दो।
आतिश हूं मैं आफताब नहीं,
जलता बुझता सा रहने दो।
कब से जी भर कर रोया नहीं,
मुझे आंसू बनकर बहने दो।
बिन पंख परिंदे जैसा हूं,
मुझे अपने हाल पर रहने दो।
एक खलीश से मेरे सीने में,
उस खलिश मैं मुझको जीने दो।
बिन तेरे मैं एक जिस्म हूं बस,
मुझे रूह बिना ही रहने दो।

करवा चौथ पर विशेष

October 16, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

सहधर्मिणी, वह संगिनी, गृह स्वामिनी वह वह वामांगिनी
आर्य पग धरे वह साथ हो,सुखद अनुभूति का अहसास हो।
वह स्मिता वह रागिनी वह साध्वी, धर्मचारिणी।
निश्छल हंसी उज्जवल छवि सुरम्यता बेमिसाल हो।
शीतल भी हो गरिमामयी, कल- कल ध्वनि सी निनादनी।
निरन्न उपवास धारिणी, सावित्री सी आनंद दायिनी।
अतुल्य जो चंचल भी हो, प्राण प्रिय ऐसी सुहासिनी।

निमिषा सिंघल

क्यू मौनहो तुम?

October 15, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

क्यू कोलाहल से भरा हृदय!
सरगम सांसों की धीमी कयू?
आंखें पथरायी सी दिखती हैं,
पहले सा ना उनमें पानी क्यू?
चेहरे पर ना वह आभा है!
तेजस्वी था निस्तेज है क्यू?
क्यू हंसी नहीं है होठों पर!
गुलाब थे जो वह सूखे क्यू?
सावन बीता पतझड़ आया,
बहारों से नाता तोड़ा क्यू?
क्यू जीना तुमने छोड़ दिया,
बुत बनकर रहना सीखा क्यू?
तुम तो चंचल सी नदियां थी,
नदिया ने बहना छोड़ा क्यू?
जिंदा होकर क्यू मुर्दा थी!
इस दिल ने धड़कना छोड़ा क्यू?
आ जाओ जीना सिखला दे,
फिर हंसी तुम्हारी ला कर दे।
फिर ना कहना आवाज न दी!
डूबती नैया को संभाला नहीं।
फिर ना कहना तुम आए तो थे
जब आए ही थे तो पुकारा ना क्यू?

निमिषा सिंघल

शायर की गजल

October 15, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

धुंध का गुबार सी
आधी नींद की खुमारी सी
इत्र और शराब सी
खिल उठे गुलाब सी
बादलों में बिजली सी
चंदन की महक सी
चांदनी रात सी
काली घटाएं जुल्फों सी
मल्लिका ए हुस्न सी
उस पर एक काला तिल उफ्फ
कहीं यह वही तो नहीं
जो नायिका हर शायर की गजल में छुपी।

निमिषा सिंघल

स्मृतियां

October 15, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

स्मृतियां, विस्मृतियां आती नहीं जाती रही।
हृदय में कोलाहल मचाती रही।
अश्रु मिश्रित सी रातों में,
दुख सुख की बदली छाती रही।
झंकृत ,अलंकृत सी सांसों को,
मधुर बयार महकाती रही।
एक अल्हड़ बाला हृदय में,
अठखेलियां मचाती रही।
स्मृतियां कभी रुदन कभी उल्लास से सराबोर कर,
नव रसों का पान कराती रही।
कभी दुख -सुख के नगमे गाती रही,
कभी धड़कनों का साज़ बजाती रही।
रात भर मुझे ना सोने दिया,
स्मृतियां आती रही जाती रही।
निमिषा सिंघल

प्यारी मां

October 13, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

डांटती भी,दुलराती भी।
झीकती भी, मुस्काती भी।
दिन भर ताना -बाना बुनती,
काम में दिनभर उलझी रहती।
कढ़ाई में जब छुन -छुन करती
गीत कोई तब गुन-गुन करती।
शब्दों के तीर छोडा करती,
तीखे नयनों से गुस्सा करती।
अदब -कायदा सिखाते- सिखाते,
पढ़ाई का पाठ पढ़ाते -पढ़ाते,
कभी गुस्सा कभी प्यार जताती।
और कभी मां दुर्गा बन कर,
कलछी को हथियार बनाती।
हम पीछे ना रह जाए जग में,
अपना जी और जान लुटाती।
मेरी प्यारी मां अपने कुछ अरमान लुटाती।

क़लम बिना बैचैन

October 13, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

कलम चलाए बगैर चैन कहां!
आंखों के समंदर को
स्याही में घोलकर
उड़ेले बिना चैन कहां!
दफन जज्बातों को उधेड़े बिना
चैन कहां!
आतिश ए इश्क को
सुलगाए बिना चैन कहां!
तुम मेरे हो
दिल को समझाएं बगैर चैन कहां!

तुम्हे कागज पे उतारे बिना चैन कहां!

कलम कुछ यू चले
की तेरी सरगोशिया लिख दू।
अज़ाब नौच दू कजा से
फ़लसफ़ा लिख दू।
वरना कशिश !
पुरजोर मोहब्बत को तोहमत देगी ,
काग़ज़ पे दीदारे यार तो कर!!
फिर ना कहना
दीदारें यार बिना चैन कहां।

निमिषा सिंघल

तेरा मेरा रिश्ता

October 11, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

तेरा तिरछी नजर से देखते रहना मुझको
बेपनाह प्यार की बक्शीश सा लगता है

फिर एक ख्वाब आंखों में ठहर जाता है
दिल में एक शर र सी सुलगती है
मेहताब फिर आज जमी पे दिखता है।

जानते हैं हम कि आतिश से खेलते हैं
फिर भी ना जाने
यह खेल बेनजीर सा लगता है।

इश्क की खातिर पशेमान हुए
जमाने के बजम में
दिमागी फितूर सा लगता है।

ए मेहताब गुजारिश तुमसे
तेरे बिन जीना जिंदान सा लगता है

जमाने से ना डर मकबूल सनम
तेरा मेरा रिश्ता रूहानियत का लगता है

कजा से जो तू मुझे मिला दिलबर,
कुबूल हुई सारी मुरादों सा लगता है।

अज़ाब आये या दिखाएं अदावत यह जहां
अब तो रूह से रूह का मिलना
नवाजिश लगता है

तगाफुल ना करना पाकीजा इश्क को मेरे
तेरा मेरा मिलना तय था यकीन लगता है।

श र र=चिंगारी
मेहताब=चांद
बेनजीर=अनुपम
पशेमां=लज्जित
बजम=सभा
ज़िंदा न=जेल
मकबूल=प्रिय
तगाफुल=अनदेखा

निमिषा सिंघल

विदाई (बाबुल मोरा नैहर छूटो जाए)

October 11, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

तेरा तिरछी नजर से देखते रहना मुझको
बेपनाह प्यार की बक्शीश सा लगता है

फिर एक ख्वाब आंखों में ठहर जाता है
दिल में एक शर र सी सुलगती है
मेहताब फिर आज जमी पे दिखता है।

जानते हैं हम कि आतिश से खेलते हैं
फिर भी ना जाने
यह खेल बेनजीर सा लगता है।

इश्क की खातिर पशेमान हुए
जमाने के बजम में
दिमागी फितूर सा लगता है।

ए मेहताब गुजारिश तुमसे
तेरे बिन जीना जिंदान सा लगता है

जमाने से ना डर मकबूल सनम
तेरा मेरा रिश्ता रूहानियत का लगता है

कजा से जो तू मुझे मिला दिलबर,
कुबूल हुई सारी मुरादों सा लगता है।

अज़ाब आये या दिखाएं अदावत यह जहां
अब तो रूह से रूह का मिलना
नवाजिश लगता है

तगाफुल ना करना पाकीजा इश्क को मेरे
तेरा मेरा मिलना तय था यकीन लगता है।

श र र=चिंगारी
मेहताब=चांद
बेनजीर=अनुपम
पशेमां=लज्जित
बजम=सभा
ज़िंदा न=जेल
मकबूल=प्रिय
तगाफुल=अनदेखा

निमिषा सिंघल

चिर आनंद की प्राप्ति

October 11, 2019 in Other

प्रकृति की कंदरा पर्वतों घाटियों में विचरों, प्रकृति का संगीत सु नों। खुद मौन हो जाओ, झरने की कलकल पक्षियों का कलरव, जानवरों की अजीबोगरीब आवाजें, बादलों की गड़गड़ाहट, एक साथ उड़ते पक्षियों के पंखों की आवाजें, महसूस करो खुद को, प्रकृति का हिस्सा बना कर देखो, फिर आनंद की प्राप्ति करो।

निमिषा सिंघल

बुद्धू सा मन

October 11, 2019 in गीत

बुद्धू सा मन चंचल सा यह तन
बहका बहका सा लगे
सांसो का भी चलन।
१.
दर्पण बनी तेरी आंखें मेरे सनम
सरगोशियां तेरी सीने में दे जलन।
बतियां तेरी मुझे बहका ना दे सनम,
बुद्धु सा मन…..
२.
सांसों में मेरी तेरे ही सुर बसे
धड़कन बनी घड़ी भागे समयसे परे।
शर्मो हया मेरे गालों पर फिर सजे
बुद्धु सा मन…

निमिषा सिंघल

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