by Pragya

घायल परिंदा

December 1, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

क्या करना है मुझे यहां
ठिकाना बनाकर
मन चंचल है लगता है कहाँ
एक ही जगह पर
बदलकर फिर आऊंगा वेश मैं अपना
घायल परिंदा हूँ
गिरा हूँ धरा पर
फिर उठूंगा, चलूंगा
बनाऊंगा आसमां में रास्ता अपना
गिरूंगा तो जरूर पर फिर से उड़ूंगा…!!

by Pragya

चमकती किरणों ने मुझे सहलाया

December 1, 2020 in मुक्तक

नई सुबह की
पहली किरण ने मुझे जगाया
हिलोरे देकर चांदनी रात ने था सुलाया
हटाये पर्दे जब माँ ने खिड़कियों से
धूप की चमकती किरणों ने
मुझे सहलाया…

by Pragya

मन के घाव

December 1, 2020 in मुक्तक

मन के घाव भी भरने जरूरी हैं
तेरे-मेरे नैन भी मिलने जरूरी हैं
आकाश से धरती के जो हैं फासले तय हैं
बरस कर बूंद तुझमें ऐ जमीं !
मिलना जरूरी है…

by Pragya

समवेत स्वर में जय हिंद

November 30, 2020 in शेर-ओ-शायरी

समवेत स्वर में जय हिंद बोल दो कभी
प्यार के पट खोल दो कभी
ये मुल्क तुम्हारा ही है दोस्त!
इसे प्यार और सम्मान से देख तो कभी…
*****************************

by Pragya

“थपकी प्यार की”

November 30, 2020 in शेर-ओ-शायरी

मेरा गम तेरे दर्द से ज्यादा है
मेरी आँख में आँसू तुझसे ज्यादा है
एक बार देकर प्यार की थपकी
सुला दे साथी !
मेरे दिल में जख्म़ तुझसे ज्यादा है…

by Pragya

वह दहशत गर्दों के सम्पर्क में

November 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

वो ऐसा सोंच भी कैसे सकते हैं
मेरे देश के ही दुधमुहे बच्चे हैं
पर करें भी तो हम क्या करें
वह दहशत गर्दों के सम्पर्क में रहते हैं
पथ्थर फेंकते हैं सेना के ऊपर
और जेहाद कहते हैं
करें भी तो क्या करें
वह तो जेब के साथ दिल में भी बम रखते हैं
जो सस्ते हैं उनके जीवन से
जाने किस पाठशाला में पढ़ते हैं
हमारे कश्मीर के नागरिक तो
पाकिस्तान के इशारों पर चलते हैं

by Pragya

ताश के पत्तों की तरह

November 30, 2020 in शेर-ओ-शायरी

ताश के पत्तों की तरह
बिखर गई मैं
जब तूने कहा
मैं तेरा नहीं किसी और का हूँ…!!

by Pragya

मंगलसूत्र; सुहाग का प्रतीक

November 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मंगलसूत्र को सुहाग का प्रतीक
माना जाता है
जाने क्यों ऐसा कहा जाता है??
बचपन से यही सोंचती थी मैं पर
आज देख भी लिया अपनी आँखों से;
एक विधवा स्त्री के सामने आने पर
लोगों ने उसे अशुभ ठहराया
ताने उसको मार-मार कर
फौरन वहां से उसे भगाया
तभी सामने से कुछ सुहागन
पूजा को सज-धज निकलीं
लोग उन्हें देखकर सुखी थे
मन ही मन निश्चिंत हुए थे
कि विधवा स्त्री को देखने के बाद
कुछ तो अच्छा शगुन हुआ
मंगलसूत्र और सुहाग के प्रतीक चिह्नों
के महत्व का तब मुझको एहसास हुआ…
पर मन में एक टीस उठी
क्या इनका महत्व इतना ज्यादा है !!
विधवा स्त्री का चेहरा भी क्या इतना
अभागा है??

by Pragya

दहेज प्रथा एक अभिशाप

November 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

दहेज प्रथा एक अभिशाप
**********************
बूढ़ा बाप अपनी पगड़ी तक निकालकर
दे देता है और
माँ अपने कलेजे का टुकड़ा
पर फिर भी नहीं भरता
लोभियों का मन
जाने क्या लेना चाहे वो ?
समझते क्यों नहीं इस बात को वह
दुल्हन ही दहेज है
कब समझेंगे
जो तड़पाते हैं गैरों की लड़की को
वह एक दिन अपनी लड़की भी
दूजे घर भेजेगें
दहेद प्रथा है समाज का अभिशाप
यह लोभी लोग कब समझ पाएगे
हिसाब होगा अच्छे-बुरे कर्मों का वहां
जब दुनिया छोंड़कर
पैसे के लोभी जाएगे…

by Pragya

**आज उसी वृद्धाश्रम में***

November 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

छोंड़ दो इस बुढ़िया को
किसी वृद्धाश्रम में
यह सुनकर मुझको थोड़ा गुस्सा आया
एक दिन फिर तंग आकर पत्नी से
वृद्ध माँ को आश्रम मैं छोंड़ आया
रोया बहुत माँ से लिपटकर
माँ का दिल भी भर आया
माँ ने आँसू पोंछे अपने आंचल से
और उनको मुझ पर प्यार आया
बोली बेटा आते रहना
अपने घर का भी खयाल रखना
मत रोना मुझको याद करके
मेरे लिए बहू से मत लड़ना
मेरा क्या है
मैं कब मर जाऊं
तू रहना खुश और आते रहना
यह कहकर माँ ने कर दिया विदा…
आज उसी वृद्धाश्रम में
मैं भी आ गया रहने के लिए सदा
मेरा बेटा भी मुझे बोझ समझकर
मुझे यहां छोंड़कर हो गया दफा…

by Pragya

जला दिया क्यों मुझको साजन ???

November 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जला दिया क्यों मुझको
ओ साजन!
ऐसी क्या गलती कर बैठी थी
मैं तो अपने सास-ससुर की पूजा देवों सम करती थी
ननद को अपनी बहन की तरह मानती थी
देवर को भैया कहती थी
जला दिया क्यों मुझको साजन
मैं तो तेरी धर्मपत्नी थी
तुम जो कहते थे वो करती थी
तुम्हारी ज्याती भी सहती थी
देखा करती थी पराई स्त्रियों के संग में
पर फिर भी मैं चुप रहती थी
तेरी छाया देख के मैं घूंघट करके पीछे चलती थी
जला दिया क्यों मुझको साजन !
मैं भी तो एक इंसान ही थी…

by Pragya

अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों…

November 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जख्म अपनों ने दिल पे
हर बार कर दिये
अपने ही शहर के बच्चों ने
हम पर पथराव कर दिये
दर्द उस दम बढ़ा मेरा ऐ हिन्दुस्तानियों !
जब हमारी कुर्बानी पर भी
सियासत के शकुनि
राजनीति के दांव चल दिये
हम हिन्द के रक्षक हैं
किसी पार्टी के भाड़े के टट्टू नहीं
हम तो तिरंगे में लिपटकर
उस पार चल दिये
ये देश हमारा है और हम इसके सपूत
हे युवाओं ! हम देश की बागडोर
तुम्हारे हाथ में सौंपकर
अब यार चल दिये….

by Pragya

तुम्हारे नाम की मेंहदी…

November 30, 2020 in शेर-ओ-शायरी

तुम कहते रहे और हम सुनते रहे
आख़री वक्त तक सपने बुनते रहे,
उठ गई डोली मेरे अरमानों की फिर भी
हम तुम्हारे नाम की मेंहदी रचते रहे…

by Pragya

‘आज तुमने मुस्कुराकर बात की’

November 30, 2020 in शेर-ओ-शायरी

आज तुमने मुस्कुराकर बात की
कुछ रोने वाली और
कुछ हँसने वाली बात की,
अच्छा लगा मुझको तुम्हारा
झगड़ा करना भी
खुशी इस बात की है कि तुमने हमसे बात की…

by Pragya

दामन छोंड़कर चल दिये

November 30, 2020 in शेर-ओ-शायरी

इल्जाम पर इल्जाम
लगाता ही रहा वो
हम चुपचाप सहते रहे,
जब हद हो गई सहने की तो
हमने कुछ ना कहा बस
दामन छोंड़कर चल दिये….

by Pragya

प्रकाश पर्व; गुरु पूर्णिमा

November 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

प्रकाश पर्व; गुरु पूर्णिमा
**********************
आज है नानक जी का जन्मदिवस
पावन बेला आई है
प्रकाशपर्व है आज गुरु पूर्णिमा की सबको बधाई है
जीवन में सबके आए खुशहाली
नानक का सिर पर हाथ हो
लंगर बँटें आज गुरुद्वारे
भजन-कीर्तन का साथ हो
प्रकाश पर्व के रूप में
यह त्योहार मनाया जाता है
नानक थे सिक्खों के प्रथम गुरू
इसीलिए यह गुरू पर्व मनाया जाता है…

by Pragya

कार्तिक पूर्णिमा और देव-दीपावली

November 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कार्तिक पूर्णिमा के दिन
देव-दीपावली मनाते हैं
सारी अप्सराएं नृत्य करती हैं
इन्द्रदेव झूमते जाते हैं
पूंछा मैंने माँ से एक दिन; क्यों देव दीपावला मनाई जाती है
स्वर्ग सजाते हैं देवता
धरती भी दीपों से सजाई जाती है
माँ ने कहा; यह देव दीपावली की कथा बहुत ही निराली है
एक त्रिपुरासुर नामक राक्षस था, वह मायावी था, बलशाली था
महादेव ने उसका वध करते देवताओं को किया सुरक्षित था,
यही नहीं इसी दिन विष्णु जी ने मत्स्यावतार लिया था…
और गज ग्राह के युद्ध पर
विष्णु भक्त गज की रक्षा हेतु ग्राह का संहार किया था..
इसी कारण से देवों ने स्वर्ग को दीपकों से सजाया था
विष्णु जी की आराधना
करके विष्णु जी को मनाया था
तभी से इस दिन भगवान सत्यनारायण की पूजा, कथा की जाती है
स्वर्ग समेत धरती पर भी देव- दीपावली मनाई जाती है..

by Pragya

“अब दिल्ली दूर नहीं”

November 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

किसानों ने ‘अब दिल्ली दूर नहीं’
यह नारा सत्य कर दिखाया है
पूरे देश को अपनी व्यथा से
रूबरू करवाया है
पर कुछ सियासत के घोंड़ो के
कान पर जूं नहीं रेंगता है
सारा देश देख रहा पीड़ित किसान
पर सरकार को दिखाई नहीं पड़ता है
पानी की बौछार करें कभी
आँसू गैस का छिड़काव करें
पर किसान के हौसले को
कोई हथियार ना छलनी कर सके
तुम डटे रहो बस अड़े रहो
देखो अब दिल्ली दूर नहीं
तुम्हारे साथ है देश की शक्ति
तुम हो इतने कमजोर नहीं…

by Pragya

ये कैसा कलयुग आया है ???

November 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हे राम तुम्हारी दुनिया में
ये कैसा कलयुग आया है…!!
*************************
कहीं जल रहे दीप तो देखो
कहीं अंधेरा छाया है
हे राम ! तुम्हारी दुनिया में
ये कैसा कलयुग आया है…!!
तज रहे प्राण मानव देखो
कटते जाते जंगल देखो
बेघर होते पक्षी देखो
सड़कों पर रोते बच्चे देखो
देखो तुम मरते किसान को
जीवित तुम रावण देखो
बोया था तुमने जो बीज कभी
उसमें फल देखो कैसा आया है ?
हे राम ! तुम्हारी दुनिया में
ये कैसा कलयुग आया है…!!

सड़कों पर लुटती सीता देखो
घर-घर में बैठा विभीषण देखो
देखो तुम कपटी शकुनी को
मन्दिर में बैठा ढोंगी देखो
मानव तो हे केशव ! अब तो
दानवता पर उतर आया है
हे राम ! तुम्हारी दुनिया में
ये कैसा कलयुग आया है…???

काव्यगत सौंदर्य एवं विशेषताएं:-
यह कविता मैंने किसानों पर हो रहे अत्याचार और नारियों के प्रति निम्न दृष्टिकोंण रखने वालों के ऊपर आक्रोश में लिखी है….
अच्छे दिन आने वाले हैं का नारा लगाने वालों के नेत्रों को खोलने के लिए व्यंगात्मक शैली में लिखी है…
शब्द तथा भावों के तारतम्य को बनाए रखने का पूरा प्रयास किया है एवं पाठक की मानसिकता को ध्यान में रखते हुए लिखा है जिससे उसे यह कविता पढ़ने में कोई कठिनाई ना महसूस हो और अंत तक उसकी जिज्ञासा बनी रहे…
उम्मीद है यह कविता समाज की कुत्सित सोंच को बदलने में सहायक होगी…

by Pragya

हे क्षेत्रपाल..!!

November 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरे देश के किसान !
मत हो परेशान
यह बुरा वक्त भी टल जाएगा…
जिसने जो बोया है
वो वैसा ही फल पायेगा
सुना तो होगा तुमने भी;
बुरा वक्त सिर्फ हमारे
सब्र का इंतेहान लेने आता है
कुछ हानि कराता है तो
कुछ सिखलाकर भी जाता है
मत रो तुम, मत हो उदास
तुम्हारे अश्कों से ना पिघलेगा
पथ्थर दिल हे क्षेत्रपाल !
तुम लगे रहो बस डटे रहो
मत रखना कदम अब पीछे तुम
तेरे स्वेद और हिम्मत से तो
यह अम्बर भी झुक जाएगा…

by Pragya

ऐ जाते हुए लम्हों…!!

November 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

ऐ जाते हुए लम्हों !
मुझको भी साथ में ले लो
तुम संग मैं भी मिल लूंगा
अतीत के मीठे सपनों से
खो जाऊंगा मैं फिर से
बिखरी-बिखरी जुल्फों में
उन खुशबू वाली सांसों में
एहसास अलग होता था
मैं भूल जाता था सबकुछ
जब पास में वह होता था
ऐ लम्हों जरा ठहरो !
चलने दो संग में अपने
जो अधूरे रह गये सपने
पूरे करने दो, संग चलने दो…

by Pragya

“ममता की मूरत हो तुम”

November 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

देखी दुनिया की खूबसूरती
पर माँ सबसे खूबसूरत हो तुम
मेरी सबसे अच्छी सखी और
ममता की मूरत हो तुम
जो मुख से निकले मेरे फौरन
हाजिर कर देती हो
मेरे चेहरे से ही तुम दुःख
तकलीफ भांप लेती हो
पूरा दिन तुम काम करो
सबकी फिक्र तुम करती हो
सोती सबसे बाद में तुम पर
सबसे पहले उठती हो
माँ तुम कितनी अच्छी हो
दिल की कितनी सच्ची हो…

by Pragya

वृक्ष कहे रोकर पृथ्वी से….!

November 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

वृक्ष कहे रोकर पृथ्वी से
हे वसुधा ! मैं हूँ भयभीत
बोया मुझको प्रेम से किसी ने
रोपा और दिया आशीष
पर जाने कब चले कटारी
मेरे चौंड़े वक्षस्थल पर
आज मैं देता हूँ छाया सबको
और देता हूँ मीठे फल
जाने कब कट जाऊं मैं भी
अपने साथी वृक्षों सम
रोंक सकूं मैं मानुष को
मुझमें ना है इतना दमखम
जला लकड़ियां मेरी जाने
कितने घरों में बने भोजन
मुझको ना काटो हे मानुष !
देता हूँ मैं तुमको आक्सीजन…

शुद्ध करूं मैं वायु तुम्हारी
और मिटाऊं भूख तुम्हारी
लेता ना बदले में कुछ भी
बस केवल बक्श दो जान हमारी….

by Pragya

‘बैकुंठ चतुर्दशी’

November 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज है बैकुंठ चतुर्दशी
पावन बेला शुभ दिन है
श्री हरि विष्णु और महादेव
का आज साथ में पूजन है….
जो पूजे विष्णु संग शंकर
वो जाये बैकुंठ धाम
बैकुंठ चतुर्दशी पर प्रज्ञा का
हरि को कर जोड़ प्रणाम….

by Pragya

साहित्य शिरोमणि हरिवंश राय बच्चन

November 27, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

“हरिवंश राय बच्चन बर्थ डे स्पेशल”
****************************
आज जन्मदिन है उनका
जिसने लिखी थी मधुशाला
वह कहते थे अपने परिचय में:-
‘मेरे लहू में है पचहत्तर प्रतिशत हाला’
नाम है उनका ‘हरिवंश राय बच्चन
जन्म हुआ २७ नवम्बर १९०७ इलाहाबाद में उनका…
वह थे छायावत लेखक और समृद्ध कवि
मिला उन्हें पद्मभूषण साहित्य के क्षेत्र में थे महारथी..
अमिताभ बच्चन महानायक हैं उनके बेटे,
वह भारत सरकार के
विदेश मंत्रालय में हिन्दी विशेषज्ञ थे…
हरिवंश राय बच्चन जी
अपने निजी जीवन में बहुत
ही सामाजिक थे
आधे से ज्यादा जीवन बीता
उनका किराये के घर में,
अपनी प्रिय पत्नी श्यामा के
गुजर जाने के बाद
उनकी हर एक कविता में
एक दर्द रहता था
कुछ समय पश्चात ‘तेजी’ से विवाह किया था..
वह युवाओं से कहा करते थे
‘जो बीत गया सो बीत गया’
‘क्या भूलूं क्या याद करूं’
इस रचना से उनका मान बढ़ा..
वह एडिट्यूट के कवि कहे जाते थे
लिखते उम्दा थे और समाज को नई राह देेते थे..
देश का सबसे मशहूर कवि
२००३ में सांस की बीमारी से हमको हमेशा के लिए अलविदा कह गया..
साहित्य का वह कोना हमेशा के लिये सूना रह गया…

by Pragya

शिकवों के पुलिंदे….

November 27, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

यादों के पंख फैलाकर
सुनहरी रात है आई
उन्हें भी प्यार है हमसे
सुनने में ये बात है आई
पैर धरती पे ना लगते
उड़ गई आसमां में मैं
जीते जी प्रज्ञा’ देखो
स्वर्ग में भी घूम है आई .
चाँद पर है घटा छाई
गालों पर लट जो लटक आई…
सजती ही रही सजनी
सजन की प्रीत जो पाई
मिलन की आग में देखो
जल गये शिकवों के पुलिंदे,
पीकर नजरों के प्याले
प्रज्ञा बन गई मीराबाई…

by Pragya

‘प्रेम के उपनिषद्’

November 27, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

थक गई हूँ अब रोते-रोते,
तन्हा राहों पर चलते-चलते
इन बिखरी साँसों की
अरज बस है यही तुमसे
मिलन जब भी हमारा हो
ना कोई गिला-शिकवा हो
‘प्रेम के उपनिषद्’ पर बस
नाम अंकित तुम्हारा हो
बिखर कर टूटने से पहले
जब मिलना कभी हमसे,
मुझी में डूब जाना तुम,
फकत बाँहों में भरकर के…

by Pragya

“हे भारतीय ! हे सैनिक प्रिय !”

November 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

“२६-११ हमले पर भावभीनी श्रद्धांजलि”
*******************************
याद है वो २६-११ हमले की घटना
जिसमें हमारे जवान शहीद
हुए थे
कैसे भूलेंगेे हम वो दिन जब
हमारे सैनिक हमसे दूर हुए थे
उन वीरों को प्रज्ञा’ की नम आँखों से श्रद्धांञ्जलि
२६-११ हमले की घटना ना हो फिर कभी..
लड़ना है जिनको आयें वो
शत्रु रण में आगे
टिक पायेंगे ना वो भारतीय वीरों के आगे..
बुज्जदिलों के जैसे करते हैं पीछे से हमला
हम भारतीयों का जिगरा है सिंहों से भी तगड़ा…
हे भारतीय ! हे सैनिक प्रिय !
तुमको प्रज्ञा का नमन है
तुम हो भारत माँ के सच्चे सपूत
तुम-सा ना कोई कल था, ना कोई अब है…

by Pragya

“हमारा संविधान और संविधान दिवस”

November 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज संविधान दिवस है
हमारा संविधान विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है…
२६ नवम्बर २०१५ से
डॉ० भीमराव अम्बेडकर के १२५वें जन्म दिवस से संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है…
अम्बेडर जी को संविधान निर्माता कहा जाता है…
संविधान की असली कॉपी
प्रेम बिहारी नारायण रायजादा ने अपने हाथ से लिखी…
कैलिग्राफी के जरिये इटैलिक
अक्षरों में लिखी…
जिसे आज भी भारतीय संसद में हीलियम भरे डिब्बों में सुरक्षित रखा गया है…
हमारे संविधान को हिंदी तथा इंग्लिश दोनों भाषाओं में लिखा गया है…
इसे लिखने में २ वर्ष, ११ माह, १८ दिन लगे थे..
शांतिनिकेतन के कलाकारों द्वारा इसके हर पन्ने सजे थे…
कई देशों के संविधानों से इसमें खूबियां अंगीकृत की गईं…
जो २६ नवंबर, १९४९ को लिखित रूप में पूरी की गईं…
हमारा संविधान महज वकीलों का दस्तावेज नहीं है,
बल्कि यह जनता का, जनता के लिए है…
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

by Pragya

“एक तरफा मोहब्बत”

November 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम्हारे सुधर जाने की गुंजाइश ही नहीं थी
तो आखिर हम कोशिश कब तक करते !
रफ्ता-ऱफ्ता तुम पास आते गये
हम भला दूर कैसे रहते !
रोंका तुम्हें, समझाया तुम्हें
और भला हम क्या करते…
जब तुम्हें हमसे मोहब्बत ही नहीं थी
आखिर हम तुम्हें अपना कब तक समझते…

by Pragya

“अनाथ आश्रम”

November 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

अनाथ आश्रम
★★★★★★★

मेरे माँ-बाप कैसे होंगे
यही सवाल अक्सर मस्तिष्क में गूंजता रहता है
अक्सर मुझे वो काकी याद आ जाती हैं
जिन्होंने मेरी परवरिश बचपन में की थी
उस अनाथ आश्रम में बहुत
से बच्चे थे पर मुझसे कुछ
अलग ही लगाव था उनका
माँ नहीं थीं पर फिर भी माँ जैसा खयाल रखती थीं मेरा
उस अनाथ आश्रम में कभी
अनाथ जैसा महसूस नहीं होता था
सब थे अपने से और दर्द समझते थे
वो काकी आज बहुत याद आ रही हैं
जिनकी गोद में सिर रखकर सोती थी
आज मैं जो कुछ भी हूँ उनके प्यार की वजह से हूँ
आज उसी अनाथ आश्रम में कुछ सहयोग देने आई हूँ
सब मिले हैं पर वो काकी नहीं हैं…

by Pragya

“अतीत के फफोले”

November 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

अतीत के फफोले
***************
जीवन मेरा उलझा-उलझा
सुलझी लट बालों की
मैंने ना देखा सुंदर उपवन
ना देखी प्रेम की सरिता निर्मल
भूलवश मैं पड़ गई प्रेम के
मायाजाल में
सोंचा था मिलेगा सुख और
जीवन में खिलेेंगे सुंदर पुष्प
पर हार ही हार मिली
जो भी जीवन में आया उससे केवल पीर मिली
अतीत के फलोले आज फूटने लगे हैं
जब बिछड़े हुए लोग फिर से मिलने लगे हैं..

by Pragya

लावारिस बचपन

November 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

लावारिस बचपन
**************

सड़कों पर भटक-भटक कर है कैसे बचपन बीता,
और नहीं खाने को है एक
निवाला मिलता…
जाने कहाँ हैं मेरे माँ-बाप
नहीं मैं जानू,
मैं तो झुग्गी बस्ती को ही
अपना घर-बर मानू…
लालन-पालन मेरा अनाथ आश्रम में हुआ है,
यह लावारिस बचपन सड़कों के किनारे ही कटा है…
मैंने ना देखा सुनहरा बचपन
ना देखी शोख जवानी,
बस बचपन से करी मजूरी
और गलियों की धूल है छानी…

by Pragya

“देवोत्थान एकादशी”

November 25, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आषाण की एकादशी को
सभी देव सो जाते हैं…
और कार्तिक की एकादशी को
सभी देव जग जाते हैं…
इसीलिए इस दिन को
देवोत्थान एकादशी कहते हैं…
आज के दिन विष्णु जी
चारमास के बाद नींद से जागते हैं…
और आज के दिन तुलसी माता
का विवाह भी होता है..
इसीलिए आषाण से कार्तिक मास तक
कोई शुभ कार्य किया नहीं जाता है…
आज के दिन से हिन्दू धर्म में
विवाह होना प्रारम्भ हो जाता है…
देवोत्थान एकादशी की महिमा
बहुत निराली है..
गन्ने का मंडप बनाकर विष्णु जी
के पैर बनाकर की जाती है पूजा विधिवत्…
‘आओ देवा उंगली चटकाओ
नींद से जागो कृपा बरसाओ’
ऐसा बोला जाता है…
सिंघाड़ा, बेर, शकरकन्द चढ़ाकर
प्रभु को भोग लगाया जाता है…
“जय हो विष्णु जय हो तुलसी
जय हो सारे देवों की
आओ मेरे घर प्रभु पधारों
इच्छा पूर्ण करो हम भक्तों की”….

“देवोत्थान एकादशी की सभी को बधाई”

by Pragya

“तुलसी माँ विवाह”

November 25, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज है कार्तिक मास की एकादशी है
तुलसी माँ का विवाह है…
मेंहदी लगाकर मौली चढ़ाकर
गोटे वाली चूनर ओढ़ाकर
माता का किया श्रृंगार है
आओ भक्तों मंगल गाओ
तुलसी माँ का विवाह है…
पैरों में माँ के महावर लगाकर
फूल-फल और हलवा पूरी का
तुलसी माता को भोग लगाकर
खाओ यह मंगल प्रसाद है..
तुलसी माँ का विवाह है…

by Pragya

उस माँ का दर्द कौन जाने..!!

November 25, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

उस माँ का दर्द कौन जाने !
जो अपने फर्ज के लिए
अपने दुधमुहे बच्चे को
घर छोंड़कर जाती है..
वो पुलिसकर्मी है अपनी ड्यूटी
खूब निभाती है…
कभी छोंड़ती मायके में
कभी ससुराल में छोंड़कर जाती है..
दिल को पथ्थर बनाकर
ममता से मुंह मोड़ती है
देश के नागरिकों की रक्षा
के लिए
अपने बच्चे को दूसरे के
सहारे छोंड़ती है…
कैसे बीतते हैं उसके दिन और
कैसे रात कटती है…
उस माँ का दर्द कौन जाने
जो अपने बच्चे से दूर रहती है…
नहीं लगता दिल कहीं जब
अपने बच्चे की याद आती है…
वीडियो कालिंग से वह अपने बच्चे को देख पाती है…
हंसता-खेलता अपना बच्चा
देख
माँ के चेहरे पर मुस्कान आती है…
दिल दुःखता है दूरियों से
और आँख भर आती है…
कभी-कभी नन्हे से बच्चे को
माँ ड्यूटी पर ले जाती है..
बच्चे के प्रति लापरवाही भले कर भी दे माँ
पर देश के प्रति अपना फर्ज बखूबी निभाती है..
उस माँ का दर्द कौन जाने
जो बच्चे को छोंड़कर
रो-रोकर रात बिताती है…

विशेष:-
यह कविता सभी महिला पुलिसकर्मियों और कामकाजी महिलाओं को समर्पित है…
जो अपने फर्ज के लिए अपने बच्चे से दूर रहकर अपनी ड्यूटी करती हैं…

by Pragya

अच्छी किस्मत

November 23, 2020 in शेर-ओ-शायरी

अच्छी किस्मत वाले लोग
आसानी मिल जाते हैं पर
दिल के अच्छे लोग बड़ी
मुश्किल से रहते हैं…

by Pragya

स्वाद मोहब्बत का

November 23, 2020 in शेर-ओ-शायरी

वो हमें छोंड़कर गैरों के हो गये
चलो स्वाद ले लेने दो उन्हें भी
गैरों की मोहब्बत का,
जब वो हमारे नहीं हुए
तो किसी और के क्या होंगे ??

by Pragya

मानव मूल्यों का ह्रास

November 23, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बेंचकर सोना-चाँदी
पीने चले अंग्रेजी देखो
मानव के पतन का ये
सुंदर दृश्य देखो
दिन भर करें मजूरी
रात में पीकर टुंन हैं देखो
हिन्दू हो या हो मुस्लिम
सब बैठे मयखाने में देखो
दारू के दो पैग लगाकर
पी लेते हैं जैसे अमृत देखो
कहाँ जा रही मानवता
मानव मूल्यों का होता ह्रास देखो…

by Pragya

‘बाबू जी की टूटी कुर्सी’

November 23, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बाबू जी की टूटी कुर्सी
चरमर-चरमर करती है
जब बैठो उस कुर्सी पर
डाल की तरह लचकती है
बाबू जी उस कुर्सी पर
बैठ के पेपर पढ़ते हैं
और साथ में बाबू जी
चाय की मीठी चुस्की लेते हैं
सुबह सवेरे उठकर वो
रोज टहलने जाते हैं
लौट के आते जब बाबू जी
मल-मल खूब नहाते हैं
वह कुर्सी बाबू जी को
बेटे माफिक प्यारी है
टूट गई वह देखो फिर भी
बाबू जी को प्यारी है…

by Pragya

और मैं खामोंश थी…!!

November 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज बहुत उदास होकर
उसने मुझे पुकारा,
मैं पास गई और
उसे प्यार से सहलाया…
उसने मुझसे कहा
तुम मुझसे नाराज हो क्या ?
या जिन्दगी की उलझनों से हताश हो क्या ?
मैंने मुस्कुराते हुए
अपने आँसू छुपाकर कहा
नहीं तो पगले !
तुझसे नाराज नहीं खुद से खफा हूँ मैं
जिन्दगी से हताश नहीं
हैरान हूँ मैं…
बस कुछ दिनों से खुद से नहीं मिल पाई हूँ
इसीलिए तुझे अपने प्रेम से
सींच नहीं पाई हूँ…
मेरी गोद में सिर रखकर उसने कहा
तो फिर तुमने मुझे कई दिनों से सींचा क्यों नहीं!
सुबह उठकर सबसे पहले
मुझे देखा क्यों नहीं!
वो छज्जे पर गमले में बैठा
मेरा मनी प्लांट’
मुझसे से सवाल पर सवाल करता रहा और
मैं खामोश थी…

by Pragya

प्रेम का लबलब घड़ा…

November 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

रुक मुसाफिर ! रुक जरा !
मैं हूँ प्रेम का लबलब घड़ा.
कीर्ति तेरे परिश्रम की
कम नहीं फैली हुई है…
राह में तेरे मुसाफिर
देख ये प्रज्ञा’ खड़ी है
सुन जरा ओ पथिक प्यारे !
देख टूटा जाये ये लबलब घड़ा
भर ले अंजुल मेरे नीर से
वरना छलक जायेगा यह घड़ा…
सुन जरा ओ पथिक प्यारे !
पी ले तू मुझको जरा
प्यास तेरी मिटेगी और
दर्द कम होगा मेरा…

by Pragya

*शिल्पकार*

November 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कवि नहीं शिल्पकार हूँ मैं !
एक ऐसा कवि,
जो कागज पर
अपनी भावनाओं भरी कलम से
शब्दरूपी
नक्काशी करता है..
जिसकी सुंदरता सिर्फ
नेत्रों से दिखाई ही नहीं पड़ती
बल्कि हृदय से महसूस भी होती है…

by Pragya

‘सुकून और बेचैनी’

November 21, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

थकान है मगर दिल को आराम है
आज मन भी बड़ा शान्त है
थोड़ी तसल्ली भी है
तुम्हारे साथ होने की
खुशी भी है
तुम्हारे कंधे पर सिर रखकर
आज घण्टों रोती रही मैं
सिर तो दुःख रहा है
मगर दिल हल्का भी है
तुमसे जी भर कर कह दी हमने
दिल की बातें
सुकून भी है और बेचैनी भी है..

by Pragya

अतीत की यादें..

November 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

रात को गले लगाने के बाद
अतीत की यादों में डूब जाने के बाद,
बस आँसुओं का सैलाब ही उमड़ता है
किसी से एक तरफा मोहब्बत हो जाने के बाद..

by Pragya

*आख़री खत*

November 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

वो मीठी बातें और मुलाकातें
करते थे हम रात भर जो प्यार भरी बातें
तुम जाने कितने तोहफे
मुझे दिया करते थे,
हर तोहफे में एक खत रखा करते थे..
उन खतों की बात निराली होती थी,
पढ़ती थी अकेले जब
हाथ में चाय की प्याली होती थी…
तुम्हारे खतों की भाषा
मेरी कविताओं से अच्छी होती थी,
तुम्हारे हर खत को मैं बार-बार
पढ़ती थी…
फिर तुम्हारी एक गलतफहमी ने
सब बर्बाद कर दिया,
बहुत दूर तक जाने वाला था जो रिश्ता
एक ही झटके में हमने तोड़ दिया…
जलाया जब आज मैने
वो तुम्हारा आख़री खत,
सारे जख्म हरे हो गये
जिन्हें भरने में लगा था काफी वक्त…

by Pragya

“हमरी अरज सुनि लीजै ओ छठी मैया”

November 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

अवधी देवीगीत:- ‘छठ पूजा स्पेशल’
*****************
ओ छठ मैया !
हमरी अरज सुनि लीजै…
सात बरस मोरे ब्याह को होवै
ललनवा तरसे मोर अंगनवा
ओ छठ मैया !
दईदेऊ हमकऊ ललनवा…
सास-ननद मोहे नाता मारैं
जिठनी मनहिं मुसकावैं
ओ छठ मैया !
हमरी अरज सुनि लीजै…
राह चलत सब निरवंशी कहैं मोहे
मोरी सूरतिया असगुनही मानैं
ओ छठ मैया !
हमरी अरज सुनि लीजै..
सेंदुरिया सूरज हम अर्घ देइति हन
तोरी किरिपा हमई मिलि जावै
ओ छठी मैया !
हमरी अरज सुनि लीजै…

by Pragya

वो जूठी कॉफी..!!

November 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम मुझे प्यार नहीं करते हो
यही सोंचकर मैं बहुत उदास थी !
तुम आये जब घर तो कुछ
आस जगी..
मैंने जल्दबाजी में बनाई थी
अपने लिये जो एक कप कॉफी
थोड़ी पी ली थी,
तुम आये तो बड़े प्यार से तुम तक पहुंचा दी..
वो कॉफी मेरी जूठी थी
तुम्हारे पास रखी थी वो बड़ी देर से,
जब आकर कहा मैंने
खिड़की की ओट से
वो कॉफी मेरी जूठी है..
तुमने आश्चर्य से मेरी तरफ देखा !
मैं समझ गई कि तुम अब नहीं पियोगे पर
वो कॉफी जो बड़ी देर से तुम्हारे पास
रखी थी !
तुम्हारे होंठों से लगने की प्रतीक्षा कर रही थी,
वो कॉफी तुम गटागट पी गये…
मैं फिर संशय में पड़ गई
तुम प्यार करते हो या नहीं करते हो ?
वो जो कॉफी का कप’
तुम टेबिल पर छोंड़ गये थे,
शायद जान बूझकर उसमें
कुछ कॉफी छोंड़ गये थे..
मैंने उस कॉफी को उठाकर झट से पी लिया
यूं लगा जैसे अमृत का घूंट पी लिया…

by Pragya

*रात में सिर्फ मेरे साथ चाँद रहता है*

November 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

उलझनें रात को उबाती हैं दिन में नहीं
तन्हाई रात को तड़पाती है दिन में नहीं..
पीर महसूस करने का वक्त
दिन में नहीं मिल पाता है
इसीलिए कवितायें रात को
लिखती हूँ दिन में नहीं..
दिन में किसी ना किसी से जंग छिड़ी रहती है
और रात खामोंशी में आराम से कटती है…
दिन में लोगों का हुजूम उमड़ पड़ता है
रात में सिर्फ मेरे साथ चाँद रहता है…
रात में दिल की धड़कनें जोर से
धड़कती हैं,
जो मुझे कानों से सुनाई पड़ती हैं…
दिन में मेरी आवाज कौन सुनता है ?
दिन में तो खुद को भी बार-बार
ढूंढना पड़ता है..
रात में खामोंश-सी तन्हाई साथ रहती है
जो दिल के जज्बात लेखनी से बयां करती है..

by Pragya

ओ मेरे प्रियतम कान्हा !!

November 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

ओ मेरे प्रियतम कान्हा !!
मुझको तेरी बेरुखी से
डर लगता है,
तुम्हारी आँखों से
साफ पता चलता है…
तुम जिस तरह मायूस निगाहों से
मेरी तरफ देखते हो,
अपनी लाचारी साफ बयां करते हो…
क्यूं समझते हो तुम खुद को अकेला ?
मैं तो तुम्हारी ही हूँ
ये तुम क्यों नहीं समझते हो !
मत सोंचो दुनिया छोंड़कर जाने की,
अभिलाषा रखो मेरा साथ निभाने की…
हौसला रखो ये बुरा वक्त भी कट जाएगा,
तुमने जो देखा है सपना
वह भी साकार हो जाएगा…
हम तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकते हैं,
पर हम तुम्हें छोंड़कर जी नहीं सकते हैं…
इरादा नहीं है मेरा
तुमसे ब्याह रचाने का,
सपना है तुम्हारे दिल में आशियां बनाने का…
तेरी रूह से प्यार करती हूँ
जिस्म पर अधिकार नहीं जताऊंगी,
तुम मेरे हो बस एक बार ये कह दो
मैं उसी में स्वर्ग पा जाऊंगी…
मीरा की तरह मैं तो तेरी भक्ति करती हूँ,
सुध-बुध बिसराकर तेरा नाम जपती हूँ….
रुक्मिणी बनने के ख्वाब मैं नहीं देखती !
मैं तो राधा की तरह तेरे प्रेम को तरसती हूँ…
मत छोंड़ जाना तुम मुझे
दुनियां में अकेला,
हो ज्यादा जरुरी जाना !
तो बता देना मुझे,
सबकुछ छोंड़कर, मैं तेरे साथ ही चलती हूँ…

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