by Pragya

खेल मुकद्दर का

September 26, 2020 in शेर-ओ-शायरी

टूट कर चाहने से कुछ भी
नहीं होता है,
सब खेल मुकद्दर का होता है
ये अब समझ पा रही हूँ मैं।

by Pragya

मुनासिब

September 26, 2020 in शेर-ओ-शायरी

जिसके बिन जीना एक पल भी ना मुनासिब था
++++++++++++++++++++
उसके बिना पूरी उम्र जिए जा रही हूँ मैं…

by Pragya

काँटों से भी मैं प्यार

September 26, 2020 in शेर-ओ-शायरी

उसके होंठों पे बनके मैं गुलाब टूटी हूँ,
***********************
अब तो काँटों से भी मैं प्यार किया करती हूँ।

by Pragya

कब्र में भी

September 26, 2020 in शेर-ओ-शायरी

खाक में मिला के उसने मेरे तन को राख किया

कब्र में भी उसी को याद किया करती हूँ ।

by Pragya

उसकी शोखी

September 26, 2020 in शेर-ओ-शायरी

मैं तो मरती हूँ उसकी एक-एक शोखी पर
रूबरू उसको मैं महसूस किया करती हूँ।।

अभिव्यक्ति दिल से ❤❤

by Pragya

एहसास किया करती हूँ

September 26, 2020 in शेर-ओ-शायरी

अक्सर दिल में बैठकर वो बात करता है
मैं आजकल ये एहसास किया करती हूँ ।

अभिव्यक्ति दिल से ❤❤

by Pragya

दीद हो जाए

September 26, 2020 in शेर-ओ-शायरी

दीद हो जाए उसकी एक बार मुझको बस
***************************
हर आने-जाने वाले पर इसी वाइस मैं नजर रखती हूँ।

by Pragya

दिल के दरवाजे

September 26, 2020 in शेर-ओ-शायरी

कोई आ ना जाए
दिल में मेरे रहने को
यही सोंचकर
दिल के दरवाजे बंद रखती हूँ।
एक बार खा चुकी हूँ पहले
प्यार में धोखा
इसलिए छाछ भी मैं फूंक-फूंक पीती हूँ।

by Pragya

लौटकर आएगा वो

September 26, 2020 in शेर-ओ-शायरी

वह चला जाएगा ये
सोचकर मैं रोती थी,
रात को रात बनाने से अब मैं डरती हूँ।
छोड़कर जा चुका है वह तो
मुझे बरसों से
लौटकर आएगा ये इंतजार करती हूँ।

by Pragya

चांद को चांद नहीं कहती हूं

September 26, 2020 in शेर-ओ-शायरी

हमने बिछाई हैं
कई बार राह में पलकें
वो भी पलट के देखेगा
यह उम्मीद
नहीं रखती हूँ
जब से देखी है सनम की सूरत मैनें
तब से मैं
चाँद को चाँद नहीं कहती हूँ!!

by Pragya

उम्मीद मत रखना तुम

September 26, 2020 in शेर-ओ-शायरी

वो तेरा बार-बार दिल दुखाएगा
मगर मत रोना तुम
तेरी आंखों में आंसू ले आएगा
मगर मत रोना तुम
उसकी राहों में बिछाओगे तुम दिल अपना
वो तुझको अपनाएंगा यह उम्मीद मत रखना तुम।

by Pragya

उम्मीद मत रखना तुम

September 26, 2020 in शेर-ओ-शायरी

वो तेरा बार-बार दिल दुख आएगा
मगर मत रोना तुम
तेरी आंखों में आंसू ले आएगा
मगर मत रोना तुम
उसकी राहों में बिछाओगे तुम दिल अपना
वो तुझको अपनाएंगा यह उम्मीद मत रखना तुम।

by Pragya

सितमगर…

September 25, 2020 in शेर-ओ-शायरी

सितमगर सितम देता ही रहा
मैं उसे आखिरी समझ कर झेलती रही
वह तो मेरे साथ खेल ही रहा था पर मैं भी
अपने वजूद के साथ खेलती रही…

by Pragya

मुबारकबाद

September 25, 2020 in शेर-ओ-शायरी

मुबारकबाद देते हो मेरी ना कामयाबी की
इतना पत्थर दिल तो पत्थर भी नहीं होता….

by Pragya

भावनाओं को ठेस

September 25, 2020 in शेर-ओ-शायरी

यूं तो हम किसी की बात का बुरा
इतनी जल्दी नहीं मानते
पर दिल ही तो है
भावनाओं को ठेस पहुंचेगी तो
दिल रो ही पड़ेगा।

by Pragya

दिल की अलमारी

September 25, 2020 in शेर-ओ-शायरी

कितने करीने से
सजा कर रखती हूं मैं
तुम्हारी यादों को
दिल की अलमारी में!
और तुम आकर
सब एक पल में बिखेर देते हो !!

by Pragya

आज भूल गई

September 25, 2020 in शेर-ओ-शायरी

ताज्जुब है तुम्हारी यादाश्त पर
सारी बातें कैसे याद रहती हैं तुम्हें
यही सोचती हूं मैं आजकल
क्योंकि मैंने तुम्हें कल
लफ्ज़ लफ्ज़ याद किया था
और आज भूल गई।

by Pragya

गुजरे जमाने की बातें

September 25, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज बड़े दिनों बाद
बात की उनसे
दिल में ठंडक सी उतर आई
गुजरे जमाने की
सारी बातें
एक-एक करके
मस्तक पटल पर
खुलने लगी
सारे लम्हे सामने आ गये
मन सावन की तरह झूम उठा।

by Pragya

वो हमें

September 24, 2020 in शेर-ओ-शायरी

दीवानो की तरह हम उन्हें चाहते हैं
वो हमें नखरे हजार दिखाते हैं…

by Pragya

कब तक रहोगे यूं मायूस तुम

September 24, 2020 in शेर-ओ-शायरी

कब तक रहोगे यूं मायूस तुम !
जब आयेगे दुल्हन बनकर तो
कहाँ जाओगे
रूबरू होंगे जब हम तुम्हारे
तो बाहुपाश में आ ही जाओगे…

by Pragya

दिल उदास है

September 24, 2020 in शेर-ओ-शायरी

सितारों से आसमान सजा हुआ है
पर चाँद फिर भी तन्हा है
भीड़ है मेरे आसपास रिश्तों की मगर
जाने क्यों दिल उदास है !!

by Pragya

गुमसुम से रहते हैं

September 24, 2020 in शेर-ओ-शायरी

वो कुछ कहते नहीं आजकल
बड़ा गुमसुम से रहते हैं
लोग कहते हैं अवसाद के
शिकार हो गये हैं..

by Pragya

बादल

September 24, 2020 in शेर-ओ-शायरी

बादल राजस्थान की सूखी जमीन
की तरह लग रहे थे
मगर फिर भी बरसात हो गई
मेरा मन हरा-भरा था फिर भी
रो ना सका..

by Pragya

बेटियां:-मुस्कान की तिजोरी

September 24, 2020 in शेर-ओ-शायरी

खुशियों की चाबी होती हैं बेटियां
घर की लक्ष्मी होती हैं बेटिया
खिलखिला कर सारे गम हर लेती हैं
मुस्कान की तिजोरी होती हैं बेटियां

by Pragya

राह में काँटे बिछाना

September 24, 2020 in शेर-ओ-शायरी

राह में काँटे बिछाना काम है उसका
मेरे दिल को दुःखाना काम है उसका
मैं हँस देती हूँ जो जरा-सा देखकर उसको
मेरी हँसी से जल जाना काम है उसका

by Pragya

उदासी का आलम

September 24, 2020 in शेर-ओ-शायरी

उदासी का आलम
इस कदर छाया है
रूबरू मेरे एक धुंध छाया है
हौसले पंख लगा के उड़ने
को तैयार हैं पर
मेरे पंखों को किसी ने
काटकर गिराया है..

by Pragya

गुलाबी सपने..

September 24, 2020 in शेर-ओ-शायरी

रात होते ही
गुलाबी सपने घेर लेते हैं
हम आँख बंद करते हैं तो
मुह फेर लेते हैं….

by Pragya

जिन्दगी जब सोंचने बैठती है…

September 24, 2020 in मुक्तक

जिन्दगी जब सोचने बैठती है
कितने अफसाने याद आते हैं
रो नहीं पाती हैं आँखें आजकल
अश्क आँखों में ही जम जाते हैं

by Pragya

मोहब्बत का इल्जाम

September 24, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

इल्जाम हमीं पर लगा देते हो
मोहब्बत का
पर शुरुआत तुमने ही की थी
हसीन कितने हो ये जानते नहीं क्या !
दिल में दस्तक तुमने ही दी थी
नखरे हजार अब दिखाते हैं हम पर
नाजों से रखने की बात तुमने ही की थी
अब बुरा लगता है जब मैं रूठ
जाती हूँ
मुझे मनाने की हर बार कोशिश
तुमने ही की थी..

by Pragya

नन्ही-सी परी मेरी लाडली

September 24, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

नन्ही-सी परी मेरी लाडली
अब बड़ी हो गई
बैग लेकर स्कूल पढ़ने जाने लगी
हाथों में कॉपी पेन लेकर
लिखने लगी
अंग्रेजी में कविता सुनाने लगी
आँखों में उसके हैं
अनगिनत सपनें
मेरी आँखों में भी सपने
सजाने लगी
स्कूली परिवेश पहनकर
कितनी सोनी लगती है
अब तो अपनी चोटी खुद
ही बनाने लगी
ए, बी, सी, डी उसकी उंगली
पर रहते हैं
अब तो वह जोड़ने-घटाने लगी..

by Pragya

ना जाने कितने दिल..!!

September 23, 2020 in शेर-ओ-शायरी

अभिव्यक्ति बस दिल से:-
**************
रोते नहीं हैं हम बस सिसकते
रहते हैं
तेरी यादों में आहें हम भरते
रहते हैं
नासमझ है तू जो नहीं चाहता
मुझको
ना जाने कितने दिल हैं जो मेरी मोहब्बत में
तड़पते रहते हैं…

by Pragya

तमाम रातें..

September 23, 2020 in शेर-ओ-शायरी

अभिव्यक्ति बस दिल से:-
***************
गुजारी हैं तमाम रातें हमने तेरे बगैर
ये तो छोटी-सी जिंदगी है !
गुजर जाएगी…

by Pragya

हौसलों के पंख..

September 23, 2020 in शेर-ओ-शायरी

यूं तो आसमां पर नहीं ठिकाना अपना
फिर भी हौसलों के पंख लिये जा रहे हैं
उड़ना नहीं आता मगर ना जाने कैसे
उड़ते जा रहे हैं..

by Pragya

राष्ट्रकवि:- रामधारी सिंह दिनकर’ को नमन

September 23, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

दिनकर ऐसा सूर्य है जिसने
हिन्दी जगत को अपनी लेखनी की
किरणों से चमकाया
देशहित में लिखकर
देश का गौरव खूब बढ़ाया
जिनके सूर्यातप के आगे
शशि भी मलिन हो जाए
ऐसे राष्ट्रकवि को प्रज्ञा
शीश नवाए
हिन्दी की खड़ी बोली का गौरव
दिनकर ने खूब बढ़ाया
उर्वशी लिखकर दिनकर जी ने
हिन्दी साहित्य को एक रत्न
चढ़ाया
मीठी सरल, सरस भाषा में दिनकर जी
लिखते थे
पीड़ितों के दर्द को अपने
काव्य में स्वर देते थे
राष्ट्र चेतना जगाकर कवि ने
विश्व में ख्याति है पाई
बाल साहित्य और गद्य-पद्य
दोनों विधा अपनाई
पद्मविभूषण और मिला
ज्ञानपीठ पुरस्कार
रामधारी सिंह ‘दिनकर को
जन्म दिवस पर हम सबका
नमस्कार…

by Pragya

ड्रग्स रैकेट..!!

September 23, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

ड्रग्स रैकेट से देश होता जा
रहा है छिन्न-भिन्न
कहाँ से शुरू हुई थी सुशांत की कहानी
जाकर कहाँ पहुँची
सितारों की जिन्दगानी
मर रहा है देश का भविष्य गरीबी में
ड्रग्स लिए जाते हैं यहाँ
अमीरी में
युवा गरीबी, बेरोजगारी में
मरता जा रहा है
फिल्मों का आशियां
किस गर्त में डूबा जा रहा है ?
ड्रग्स लेकर बेजान की जाती है जवानी
क्या हिन्दुस्तानी खून में अब रहेगी
नशे की रवानी !
जिन्दगी को मौत के मुह में ढकेलती
जा रही है
नशे की लत देश को कहाँ ले जा रही है ?
कब्र में जा रही हैं लाशें
और युवा बेखबर है
सुशांत की मृत्यु का राजदार
आज भी अपने घर है..!!

by Pragya

कलयुग की सन्तान…

September 23, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक दौर हुआ करता था
जब नित वंदन करता था नन्दन..
पिता के चरण दबाकर ही
शयनकक्ष में जाता था
नित उठकर मात-पिता को
अभिनन्दन करता था नन्दन…
अब समय हुआ परिवर्तित
आई कलयुग की संतानें
पिता बेटे को दुनिया माने
बेटा बाप को बाप ना माने..
बेटा ना करता है पिता का आदर
ना दिल से सम्मान
उस बाप की पीर कोई ना जाने
बुढ़ापे की लाठी’ ही जब
लाठी मारे
क्या होगा उस पापी संग
वह इस बात से है अन्जान
समय हुआ परिवर्तित
आई कलयुग की सन्तान..!!

by Pragya

गैंग रेप**

September 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बारी-बारी लूटा मुझको
बारी-बारी रौंदा
नारी होने पर बेबस थी
खत्म हो गया जीवन का औधा
ना..री…ना रो
एक दिन मिलेगा तुझको
इन्साफ सबने यही
समझाया
जब कोर्ट में सवालों ने किया शर्मिंदा
कुछ भी ना समझ आया
इतना लज्जित ना हुई थी तब
जब यह कुकृत्य हुआ था
जैसा लगा है वकीलों के सवाल से
ऐसा कभी ना लगा था
मैं पछताई जो सोंचा मैंने
इन्साफ मुझे मिल पाएगा
पुरुष प्रधान देश में ऐसा
कुछ भी ना संभव हो पाएगा
गैंग रेप से पीड़ित होकर
इन्साफ की आस में जिन्दा थी
कोर्ट में सबके सवालों के आगे
बेबस थी शर्मिंदा थी..

by Pragya

आस्तीन का सांप

September 22, 2020 in शेर-ओ-शायरी

किसी के लिए दोस्त फरिश्ते हैं
किसी के लिए जिन्दगी जीने का बहाना
मेरे लिए सिर्फ आस्तीन का सांप हैं
नहीं है दिल में अब दोस्तों के लिए
कोई ठिकाना…

by Pragya

मैं तुलसी तेरे आंगन की*****

September 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

क्यों जताया जाता है
प्रतिपल
मैं दूसरे घर की लक्ष्मी हूँ
हूं कुछ दिनों की मेहमान
क्यों कहा जाता है
हर पल यह एहसास
होता है कि किस घर की हूँ मैं
अपने ही माँ-बाप कहते हैं
पराई अमानत हूँ मैं
किसी रीति-रिवाज में
बेटियों की जगह नहीं होती
बहुएं ही हर कार्य में हैं आगे होती
जब विवाह होता है
जाती हूँ अपने घर
यह सोंचती हूँ इसकी हर प्रथा मेरी है
शामिल होती हूँ खुशी से
हर रिवाज में
गलती से भी कोई भूल हो जाए तो
खाती हूँ डाट मैं
वो कहते हैं तू तो पराया खून है
तुझे कहाँ पता इस घर का कानून है
कुल को गाली पल में दे दी जाती है
घर की लक्ष्मी पल में पराई हो
जाती है
आखिर कौन है जो मानना है
कहता मुझे अपना
मेरा अस्तित्व बन गया है महज सपना
कोई तो कहे मुझे प्यार से अपना
बता दे ऊपरवाले तू ही मुझे
आखिर किससे कहूँ
” मैं तुलसी तेरे आंगन की” !!

by Pragya

ससुराल की सूखी रोटी…

September 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

****************
मेरी किस्मत रंगी है काले
रंग में
दर्द ही है जीवन के हर
अंग में..
आँसुओं की लकीरें कभी
मिटती नहीं बल्कि
और गहरा जाती हैं
जब किसी की बातें मेरे
दिल को दुःखाती हैं..
बेवजह कैसे कोई अपमान
कर सकता है ?
आखिर कब तक कोई ये
कड़वा घूँट पी सकता है..
मुस्कुराने की हर वजह
मुझसे रूठ जाती है
होंठों की मुस्कान आँख का
आँसू बन जाती है..
चली जाऊंगी एक रोज
ये जहान छोंड़कर
मुड़ के ना देखूंगी ना आऊंगी
लौटकर..
चाहे कितने भी दर्द मिलें
सब सह लूंगी
ससुराल की सूखी रोटी का
भी मान रख लूंगी..
तकलीफें बर्दास्त के बाहर
हुईं तो मर ही जाऊंगी
पर मायके कभी लौटकर
ना आऊंगी..

by Pragya

दुःखी आत्मा….!!

September 21, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

निस्तेज-सी
स्तब्ध-सी
असहाय-सी
अधूरी-सी
निर्वेद-सी
बैठी थी..
दुनिया की सबसे दुःखी आत्मा
मैं ही थी…
आपा खोकर भी मौन थी
तुमसे दो टूक
करने के बाद
सारे ऱिश्ते खत्म करने
के बाद
क्रोध में आकर
फेंक दिया मैंने
छत से अपना प्यारा फोन!!

बैटरी अलग
ढक्कन अलग
यूं बिखर गया..
उठाया, समेटा, जोड़ा
पर ना खुला
ना चला
टूटा तो नहीं परन्तु
आह !
मेरा फोन भी तुम्हारे प्यार में
मेरी तरह अन्धा हो गया..
ना वो बनवा पाई
ना दूसरा ही खरीद पाई…!!

by Pragya

एसिड अटैक

September 21, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरी जिंदगी की एक शाम थी
मैं घर जा रही थी
कोई नहीं था साथ में
अकेली ही आ रही थी..
कुछ मनचले पीछा कर रहे
थे रोज की तरह
मैंने भी नजरंदाज कर दिया
रोज की तरह..
एकाएक चारों ओर से
घेर लिया मुझे
कुछ फेंका मेरे चेहरे पर
पानी जैसा लगा मुझे..
भाग गये सारे मुझ पर एसिड फेंक कर
मैं सड़क पे तड़प के गिर पड़ी
चेहरे की एक-एक हड्डी हो
जैसे गल गई..
जाने कौन ले गया उठाकर
किसने किया उपचार ?
मुझे होश आया तो परिजन
बैठे थे आस-पास..
मेरे सौन्दर्य के साथ मेरी आत्मा
भी मर गई
देखा जब आईना तो मैं
स्वयं से डर गई..
जिस चेहरे से पहचान थी
वह भयावह हो गया
जिसने किया था प्रेम को परिणय
तक पहुंचाने का वादा
वह अनायास ही मुकर गया..
जी रही हूँ आज भी एक
अलग पहचान से
जानते हैं सब मुझे और
देखते हैं मान से..
मेरी आत्मा मरी नहीं
जला है सिर्फ रूप ही
जीने के मायने बदल गये
हौंसलों ने संवार दी जिंदगी…..

by Pragya

बलात्कार:- एक अभिशाप

September 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जीवन के पहले प्रभात में
ली मैंने अंगड़ाई
बाल्यकाल था बीता किशोरावस्था
की बेला आई..
रोंक-टोंक थी ज्यादा मुझ पर
समझ नहीं मैं पाती थी
बचपन से मैं ट्यूशन पढ़ने
चाचा जी के घर जाती थी..
एक दिन ऐसा हुआ कि मैं
पहुँच गई चाचा से पढ़ने
चाची जी कहीं गई थीं बाहर
केवल चाचा ही थे घर में…
वैसे रोज़ डाटते थे उस दिन
प्यार से मुझको पास बुलाया
पानी में कुछ मिला-जुला के
कोल्डड्रिंक बोल के मुझे पिलाया…
उनकी हरकतें कुछ ठीक ना थीं
मैं घर जाने को आतुर हो आई
हाथ पकड़कर मेरा चाचा ने
फिर एक चपाट लगाई…
भूखे भेंड़िये सम वह मेरे
अंग-अंग को नोच रहे थे
मैं वो कोमल-सी कली थी
जिसको पैरों से वह रौंद रहे थे…
चाचा मैं तो तेरी बेटी हूँ
यह हाथ जोड़ मैं बोल रही थी
कृष्ण सुदर्शन धर आएगे
मन ही मन में सोंच रही थी…
बूंद-बूंद रस पीकर उसने
तन को मेरे जीर्ण किया
मेरे मृत शरीर को उसने
सौ टुकड़े कर बोरी में किया…
फेंक दिया नदिया में जाकर
घरवालों को फिर फोन मिलाकर
आज ना आई ट्यूशन पढ़ने
थाने में आया ये रपट लिखाकर…
दो महीने के बाद मिला
मेरा शव बोरी में भरा हुआ
मेरा फोन उसी बोरी में था
जिससे सारा पर्दाफाश हुआ…
वह भाग गया था, पकड़ा गया
कानून ने भी इन्साफ किया
मेरी सखी ने जब उस पापी
का पुलिस को असली पता दिया..

by Pragya

बहन की मुराद !!

September 19, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

वो हर कदम साथ देती थी
मेरा,
चाहे जितनी मुसीबतों ने हो घेरा..
हर मन्दिर में मेरी सलामती की
दुआ मांगती थी,
मैं बन जाऊं बड़ा यही मुराद
मांगती थी..
पैरों में जूते भी ना थे,
ना माँ-बाप का साया,
करके चाकरी घर-घर मेरी
बहन मुझे पढ़ाया..
आज बन गया हूँ मैं अफसर,
गाड़ी बंगला है नौकर-चाकर..
पर कोई भी खुशी नहीं है
जिसने देखे थे ये सपने
वो बहना ही दुनिया में
नहीं है..
मेरे सपने पूरे करते-करते,
कोरोना महामारी के चलते..
चली गई वह छोंड़ के दुनिया,
किस काम की है ये सारी खुशियाँ !!

by Pragya

“बालू का ढेर”

September 18, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

ख्वाहिशों की बदलियां
छटने लगी हैं आजकल
मुहब्बत की रेत फिसलने
लगी है आजकल
काजल आँखों का दुश्मन
बन बैठा है
मेहंदी से भी अब कोई
कहाँ नाम लिखता है
दिल की किताब के सारे
पन्ने फट गये हैं यूँ
किसी भी तरह से ना कोई
पन्ना जुड़ता है
बालू के ढेर पर बैठी हूँ
आशियां बनाने समुंदर में
अब कहाँ कोई ज्वार
उठता है
ले जाएगा बहाकर एक रोज़
कोई समुंदर में बहाकर
ये खयाल आजकल
बार-बार उठता है…

by Pragya

प्रवासी मजदूर का वेश..

September 18, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जा रहा हूँ आज फिर परदेश
जहाँ से आया था
धर प्रवासी मजदूर का वेश
छोंड़ी थी जो गलियां यह सोंचकर मैंने
के कभी ना लौटकर अब आऊंगा
घर की बची रूखी-सूखी ही खाऊंगा
जब नहीं मिला गांव में काम
और जेब में फूटी कौड़ी तो
निकल पड़ा छोंड़ पत्नी और मौड़ी
मौड़ी का ब्याह इसी साल करना है
मौड़े का घर भी तो बसाना है
पत्नी की बीमारी का इलाज कराकर
ताउम्र उसी संग रहना है
जिम्मेदारियां निभाते हुए अगर
जिंदा लौट आया
काल का ग्रास ना जो बन पाया तो
लौट आऊंगा फिर गांव की
इन्हीं गलियों में
बुढ़ापा काट लूंगा पत्नी के
संग झोपड़ी में!!

by Pragya

आज भी माँ की गोद में..

September 18, 2020 in मुक्तक

आज भी माँ की गोद में सिर रखकर
सो लेता हूँ
होता हूँ उदास कभी तो लिपटकर
रो लेता हूँ
माँ को गुजरे जमाने हुए हैं मगर
मैं आज भी माँ से मिलकर
प्यार बटोर लेता हूँ…

by Pragya

मन के कोंण*******

September 17, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

*************
हे आराध्य प्रेम !
आज मैं तुम्हें
प्रणाम करती हूँ
क्योंकि तुम ही हो
जिसने मुझे जैविक से
सामाजिक प्राणी बनाया
मेरे अन्तस में भाव स्फुटित हुए
मन के कोंण रोम-रोम को
सहला बैठे
बंजर धरती पर पुष्प खिल उठे और
मेरे अंतर्मन में किसलय
निकलते लगे
तुम्हारे ओज के
आलोक से मैं रति समान
मनमोहिनी बनी
तुम्हारे आगमन से ही मैं
परिपूर्ण हुई
मेरे अंतस में कविताओं का
संगम भी तुम्हीं से हुआ
मैं राधा भी तुम्हारी कृपादृष्टि
से बनी और तुलसीदास भी !!
इन उपहारों के लिए
हे आराध्य प्रेम !
मैं तुम्हें प्रणाम करती हूँ….

by Pragya

हे हिमाद्रि…!!

September 17, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हे हिमाद्रि !
सदियों से जब मैं नहीं थी
तब भी
तुम यूँ ही अडिग खड़े थे
और आज भी एक इंच
तक ना हटे
भारत का शीर्ष मुकुट बनकर
खड़े हो तुम
गंगा को बहाकर तुम
हम सबका उद्धार करते हो
ना जाने कितनी औषधियों
को उपजाकर तुम
प्रतिवर्ष, प्रतिफल देते हो..
विनाशकारी ओलावृत्तियों
भूकंप और तूफान में भी तुम जरा भी
ना घबराये
बर्फ की चादर ओढ़ कर
तुमने धूप का आलोक
बढ़ाया
पंक्षियों, वृक्षों को अपने
अंक में सुलाया…
अपनी विशालकाय भुजाओं से
सदा तुमने
देश की रक्षा की
ऐसे
सर्वोत्तम, श्रेष्ठतम और निःस्वार्थ सेवा हेतु
हे हिमाद्रि!
मैं तुम्हें पद्मश्री,
पद्मविभूषण और भारत रत्न जैसे पुरस्कारों से
अलंकृत करती हूँ….

by Pragya

कब तलक

September 16, 2020 in शेर-ओ-शायरी

कब तलक निगाहें यूँ चुराओगे
है यकीन एक दिन तो पास आओगे..

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