Pragya
पिछली बरसातों में
September 15, 2020 in शेर-ओ-शायरी
खोखलापन है तुम्हारी बातों में
अब ना रही तेरे लिए
मेरे दिल में वो जगह !
जो हुआ करती थी पिछली बरसातों में..
कविता में भाव
September 15, 2020 in शेर-ओ-शायरी
वो कहते हैं तुम्हारी कविता में
भाव नहीं हैं
मैं क्या जवाब दूं
जब दिल ही नहीं हैं !!
आईने ने कहा….
September 15, 2020 in शेर-ओ-शायरी
कल रात मैंने अपने आईने से कहा-
आजकल मैं बहुत अच्छा लिखने लगी हूँ
सब कहते हैं..
आईने ने कहा दिल जो टूट गया ना !!
“कलम में स्याही”
September 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
कबूतर को भेजूं
अब वो जमाना नहीं रहा
खुद जाकर मिलूं
यह सम्भव नहीं रहा
कितने खत लिखे हैं
उसके लिए मैंने
डाकिया कहता है
खत का जमाना नहीं रहा
कलम में स्याही नहीं बची
इतने खत लिखे मैंने
ऱखने के लिए उनको
कोई ठिकाना नहीं रहा
किस पते पर भेजूं मैं डाकिए को
वो तो मुझ में ही समा गया
अब उसका अलग पता नहीं रहा..
इश्क आँच पर पकता रहा…
September 15, 2020 in शेर-ओ-शायरी
यूँ ही सिलसिला चलता रहा
कभी मैं कभी वो रूठता रहा
टूटने लगे दिल बेतहाशा
मगर इश्क आँच पर पकता रहा..
बालश्रम:- “गरीबी का थप्पड़”
September 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
दूध के दाँत पालने में ही
टूट गये
गरीबी का थप्पड़ इतनी
जोर से पड़ा
लाद दी जिम्मेदारी की पोटली
कंधों पर
बचपन के खिलौने पल में
टूट गये
थमा दी चाय की केतली
जब मुझे
तब जानी मैंने शिक्षा की कीमत
जिन्दगी की आड़ी-सीधी रेखाएं
यूँ खिंच गईं
माजते-माजते ढाबे के बर्तन
कोमल हथेलियां वयस्क
हो गईं
जरूरी नहीं चाय बेंचने वाला
हर प्राणी राजा बन जाए !
बालश्रम बचपन को
लील जाता है
गरीबी का थप्पड़ जब
जोर से पड़ता है..
आत्मनिर्भर बन
September 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
शिक्षा की खदानें बंद करो
डिग्री बेचने वाली दुकानें बंद करो
छात्रों को डालो जेलों में
शिक्षकों की तनख्वाहें बंद करो
ना लूटो हमको शिक्षा के नाम से
ज़रा डरो राम के नाम से
व्यापार मत करो तुम ज्ञान की वृद्धि पर
कंधर पड़े हैं तुम्हारी बुद्धि पर
जब शिक्षा का कोई अर्थ नहीं
तो हम समय करेंगे व्यर्थ नहीं
लगाएंगे चाय और पकौड़े की दुकान
आत्मनिर्भर बन हो जाएंगे महान।
एक फूल दो माली***
September 14, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
करुण रस की कविता:-
*****************
जिसने हमको प्यार किया
मेरी राह में सुबहो से शाम किया
ना कद्र की हमनें
एक पल भी उसकी
अपशब्दों का उस पर वार किया
एक रोज़ मैं बैठी थी
अपने प्रिय के साथ जहाँ
आ पहुँचा लेकर
वो पागल फूल वहाँ
मैं अपने प्रिय की संगिनी थी
प्रेम में मेरे निष्ठा थी
मैं बोली उठ चल ओ पगले !
तेरा मेरा कोई मेल नहीं
प्यार मोहब्बत एक इबादत है
बच्चों का कोई खेल नहीं
वह सुनता रहा चुपचाप खड़ा
मेरे प्रिय की ओर मुड़ा
मैं बोली मेरे साजन हैं
मेरे हिय के बसते आँगन हैं
वह टूटा जैसे पुच्छल तारा
गिर पड़ा मोहब्बत का मारा
लग रहा था जैसे कोई जुआरी
चौंसर में अपना सबकुछ हारा
पड़ी हुई थी ब्लेड वहाँ पर
वह बिखरा हुआ पड़ा था जहाँ पर
झट से उसनें काटी अपनी कलाई
उसकी जान पे यूँ बन आई
हमनें सबको वहाँ बुलाया
सरकारी में भर्ती करवाया
बिलख-बिलखकर रो मैं रही थी
उसकी माँ बेहाल पड़ी थी
खबर आई वह कोमा में गया है
फिर पता चला वह दुनियाँ छोड़ चला है।
गिले-शिकवे
September 14, 2020 in शेर-ओ-शायरी
गिले-शिकवे जरा
कम कर दिये हमनें
जब से वो दूजी गली जाने लगे
वो हमसे दूर रहकर खुश रहेंगे
इसलिए हम ये दुनिया छोड़ आज
जाने लगे।।
हिंदी गंगाजल है ।।
September 14, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
रोम-रोम में बसी हमारे
हिंदी राजभाषा है
बन जाए यह राष्ट्रभाषा
इस जीवन की यह आशा है
हिंदी है परिपक्व, परिपूर्ण
हिंदी ही ममता-सी निर्मल है
हिंदी है लहू में अपने
हिंदी ही कण-कण में मिश्रित है
हिंदी मां के आंचल में है
हिंदी ही गंगाजल है
हिंदी है कवि के मन की पीड़ा
हिंदी ही शब्द-सागर है
हिंदी है संस्कृत की बेटी
हिंदी ही प्रज्ञा की जननी है
हिंदी है सबसे सरल, मनोरम
हिंदी ही उर्दू की भगिनी है।।
“आओ मनाएं हिंदी दिवस”
September 14, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
हिंदी दिवस:-
चौदह दिसंबर को हर वर्ष
हिंदी दिवस मनाया जाता है
उसी दिन क्यों हिंदी को
सम्मान दिलाया जाता है
हिंदी तो ऐसे ही वाणी है
जो भारतीय परंपरा पर चलती है
देशी हो या विदेशी
हर भाषा को आत्मसात करती है
देवनागरी लिपि की शोभा
हिंदी ही बढ़ाती है
भारत माता के माथे की स्वर्णिम
बिंदी मानी जाती है
यह कवियों की निज वाणी है
इसे समझता भारत का हर प्राणी है
भारत के संविधान में राजभाषा
से सम्मानित है
फिर क्यों नव युवकों द्वारा
यह इतनी अपमानित है
इसे बोलने में आखिर कुछ लोग
क्यों सकुचाते हैं
छब्बीस आखर वाली भाषा बोलकर
इतना क्यों इतराते हैं
हर भाषा को सम्मान दिया है
हमारी प्यारी हिंदी ने
क्षेत्रीय बोलियों को भी मान दिया है
हमारी न्यारी हिंदी ने
तो आओ मनाए हिंदी दिवस
बनाएं हिंदी को जीवन का सार
इसकी गौरव गाथा गाये हर प्राणी
सात समुंदर पार।।
टूटा हुआ दिल
September 14, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
अभिव्यक्ति ह्रदय से:-
+++++++++++++
आज तोड़ दिया तुमने
मेरा टूटा हुआ दिल !
ऐसा लग रहा है जैसे
सीने पर एक पत्थर-सा रखा है मेरे।
एक तुम ही थे
जिससे थोड़ी बहुत उम्मीदें लगा रखी थीं मैंने !
तुमने भी मुंह मोड़कर मुझे
मुंह के बल गिरा दिया।।
किताबों के दिन !!
September 14, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
कहाँ रहे अब किताबों के दिन !!
अब तो बस अलमारी में
रखी हुई किताबें
धूल खाया करती हैं
गुजरती हूं जब कभी
उनके करीब से तो
मुझे बड़ी उम्मीद से देखती हैं
कि शायद आज मैं उन्हें
स्पर्श करूंगी, उठाऊंगी,
खोलूंगी, पढूँगी और झाड़ूगी
उनके ऊपर से धूल की परतें !
जो न जाने कब से जमी हैं
और जब मैं मुंह मोड़कर चल देती हूँ
तो वह ना-उम्मीद उठती हैं।।
धूप तो रहेगी।
September 14, 2020 in शेर-ओ-शायरी
मैंने बड़े प्यार से पूछा आज उससे
अगर मैं ना रहूं तो
मेरी कमी तुम्हें खलेगी ?
उसनें जवाब दिया-
बादल चाहे जितने हों पर धूप तो रहेगी।
ख्वाइशों के पन्ने !!
September 13, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
बेजान है ये जिस्म मेरा
लफ्ज भी लड़खड़ा रहे हैं
भाव हैं बिखरे हुए
हम सिमट ना पा रहे हैं
ख्वाहिशों के पन्ने
भीगे हैं अश्कों से मेरे
बोलना बहुत कुछ चाहते हैं
पर कुछ भी कह ना पा रहे हैं !!
हीरे जड़ी अंगूठी *****
September 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
❤❤ अभिव्यक्ति दिल से ❤❤
***************************
पहली मुलाकात
और पहली भेंट
आज भी याद है मुझे…
वह बरगद के नीचे बैठकर
करी थी जो बातें हमने
दिल आज भी बेताब है…
तुम कुछ लाए थे मेरे लिए
बड़े प्यार से
दोनों घुटने टेककर मेरे सामने बैठे थे
और एक अंगूठी निकालकर
तुमने शिद्दत से मुझे पहनाई
वो हीरे जड़ी अंगूठी मुझे बहुत भायी…
वो अंगूठी आज तक मैंने
नहीं उतारी
मेरे हाथों की खूबसूरती
आज भी बढ़ाती है
जब देखती हूं उसे
तो तुम्हारी बहुत याद आती है…
न जाने क्या था हमारे बीच!
पर जो भी था
बहुत खूबसूरत-सा एहसास था…
मेरे दिल की बंजर धरती पर
तुमने ही प्यार के फूल खिलाए
तुम ना आते तो शायद हम
निर्मोही ही रह जाते
प्यार क्या होता है जान ही नहीं पाते।।
नए युग का सूत्रपात
September 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
चल साथी चल करें हम
नये युग का सूत्रपात
बढ़ चलें नवीन पथ पर
हाथों में लेकर हाथ
ना जाति-पांति के बंधन हों
ना मरी हुई संवेदनाएँ
ना लाशों के ढेर लगे हों
ना आगे बढ़ने की आपाधापी
हों स्वर्णिम स्वप्न और
हों प्रेम के प्यारे बंधन
हाथ बढ़ाकर सब सहयोग करें
थके ना फिर कोई यौवन
ना हो व्यथा ना कोई व्यथित हो
सबके मन में प्रेम फलित हो।।
भ्रूण हत्या
September 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
मेरा जिससे था प्रेम प्रसंग
वो रहता था हर पल मेरे संग
हम एक दूजे के साये थे
जन्मों बाद करीब आए थे..
वो हाथों में हाथ लिए बैठा था
बोला मुझसे विवाह रचा लो
मुझको अपना पति बना लो
मैं बोली विधाता को मंजूर नहीं
घर वालों को करूंगी मजबूर नहीं
तुम प्रेम हो मेरा यह तय है
तेरे दिल में ही मेरा घर है
पर भ्रूण हत्या का पाप
मुझसे ना हो पाएगा
तेरे वियोग में ही प्रियतम
मेरा यह जीवन जाएगा
वह चौंका उठकर खड़ा हुआ
कैसी भ्रूण हत्या यह प्रश्न किया
मैं बोली बेटा-बेटी हैं एक समान पर
बेटी से ही है परिवार का मान
दहेज देना नहीं खलता है
किसी माँ-बाप को
जब बेटी किसी संग चली जाती है
घरवालों की नाक कटाती है
उसी क्षण की खातिर हर दम्पति डरता है
बेटी पैदा होने से डरता है
मैं यदि तेरे संग विवाह रचाती हूँ
वंश की लाज ना बचाती हूँ
तो कोई भी दम्पति बेटी को कोख
में ही मार बैठेगा
मेरा परिवार लोकलाज के कारण
आत्म हत्या कर बैठेगा
एक तेरा प्यार पाने की खातिर मैं
माँ-बाप को जीतेजी ना मार पाऊँगी
बेवफा बन जाऊँगी पर भ्रूण हत्या का
पाप सिर ना ले पाऊँगी…
सीता-राम की प्रथम भेंट
September 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
सीता वियोग में बहुत
विकल थे
प्रज्ञा के श्रीराम !
एकाएक याद हो आई
सिय से प्रथम मिलन की बेला !!
ज्यों घोर तिमिर में कौंध
उठी हो अकस्मात दामिनी
त्यों राम हृदय में
जगमगा उठी
सीता से जनक वाटिका में
हुई प्रथम भेंट
लता-कुंजों की ओट से
सीता-राम दोंनो एक दूजे को
निष्पलक देख रहे थे..
फिर संकोचवश नेत्र संगोपन
करने लगे
नेत्र निमीलन और उन्मीलन
की इस प्रक्रिया से कोयल
कूँकने लगती हैं
मकरन्द बिखरने लगते हैं
आकाशमार्ग से पुष्पों की
वर्षा होने लगती है
रामभक्त प्रज्ञा !
का हृदय
उनकी तुरीयावस्था देखकर
अच्युत रह जाता है और
आत्मविस्तृत हो उठता है…
नींद हरजाई..!!
September 11, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
एक सवाल पूंछना है तुमसे
एक बार आकर तो मिलो
सब कुछ तो ठीक हो गया है
तुम्हारे जाने के बाद…
पर नींद कहाँ गुम हो गई
यही पूंछना है मुझे
रातें चाँद, तारे देखकर
और नगमें
सुनकर बिता देती हूँ
ख्वाबों को छत पर सुला
देती हूँ…
खिड़कियां खोल के रखती हूँ
शाम से अपनी
कल्पनाओं से भी आँख चुरा लेती हूँ…
बिस्तर रेशम का बिछा रख्खा है
माँ को भी बाहर सुला
रख्खा है
शोर ना करना जरा भी
मेरे कमरे के आस-पास
सख्त ये नियम बना रख्खा है…
निहारती रहती हूँ
मैं चारों तरफ
आयेगी नींद तो स्वागत में
बंदकर लूंगी पलकें
जाने नहीं दूंगी उसे
सुबह तलक…
रोज़ करती हूँ मैं ऐसा ही
पर ना आती है नींद हरजाई
पहले तेरे खयालों में ना सो
पाती थी
अब सोने ना दे तेरी
रुसवाई…
दादी माँ की बरसी
September 11, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
आंगन में एक पाटा रखकर
पण्डित और परिचितों को
बुलाकर
लगा तैयारी में पूरा घर
पकवान और मिष्ठान
बनाकर
हाथ जोड़कर सब बैठे हैं
दादी की बरसी है आज
एक बरस होने को आया
पर दादी को कोई भूल ना
पाया
लगता है जैसे कल की ही
बात हो
दादी बैठी थी आंगन में
कुछ हँसकर बोल रही थी
अपनी पोटलियां टटोल
रही थी
मैं लेकर चाय गई दादी के पास
उन्होनें दिया था आशीर्वाद
कुछ बातें उनकी आज जब
मन करता है सुन लेती हूँ
उनकी आवाज रिकार्ड है
मेरे पास
आज उनकी बरसी की बेला
भी आ गई
आगन की वो जगह सदा के
लिए सूनी हो गई..
बेटी:- दो कुल का अभिमान
September 10, 2020 in मुक्तक
होंठों की मुस्कान है बेटी
सबके घर की शान है बेटी
बेटा तो है कुल का दीपक
दो कुल का अभिमान है बेटी..
चाय की तरह
September 10, 2020 in शेर-ओ-शायरी
मैंने कोई मौसम नहीं देखा !
मैंने तुम्हें चाहा है चाय की तरह !!
बेखुदी
September 10, 2020 in शेर-ओ-शायरी
बेखुदी में जो उठ गये थे कदम
तेरी बेवफाई याद आते ही
खुद-ब-खुद रूक गये…
बेतहाशा मोहब्बत
September 10, 2020 in शेर-ओ-शायरी
वो आज भी मुझे बेतहाशा
मोहब्बत करता है,
यकीन नहीं है मगर
दिल को यही लगता है..
सावन की लगन…
September 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
ऐसी लागी लगन
सावन की मुझे,
मैं तो घड़ी-घड़ी कविता
बनाने लगी..
कभी सोते हुए
कभी जगते हुए,
बेखयाली में कुछ
गुनगुनाने लगी..
गजलों में मगन,
नज्म़ों में मगन,
कल्पनाओं में दुनियां
बसाने लगी..
छोंड़ा मैंने उसे
प्यार करती थी जिसे,
सावन को मोहब्बत
जताने लगी..
ओ कवियों! मुझे
उन्माद तो नहीं,
बेवजह आज कल
मुस्कुराने लगी..
टूटते गुलाब !!
September 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
आज तोड़ दी मैंने
पीली पत्तियां पौधों से
उसी तरह जैसे
मैं दिल से बेदखल
हुई थी तुम्हारे !
हरी पत्तियों पर जब पड़ती हैं
ओस की बूंदें
तो तुम्हारे होंठों पर
टूटते गुलाब याद
आते हैं…
हरी-हरी घास को जब
कंघी करती
ये हवाएं हैं तो
याद आ जाता है
वो हसीं लम्हा
जब तुम गेसुओं में मेरी
अपनी उंगलियां फेर देते थे
आज तोड़ दी मैंने वो
पीली पत्तियां पौधों से
अब सिर्फ हरी-भरी पत्तियां ही रह गई हैं !!
गुजार दी जिन्दगी..
September 10, 2020 in शेर-ओ-शायरी
गुजार दी मैंने जिन्दगी बस इन्तजार में
तुम आकर सम्भाल लोगे मुझे टूटते हुए..
यादें..
September 10, 2020 in शेर-ओ-शायरी
तुम्हारा और मेरा हाल
एक जैसा ही है,
तुम्हें गैरों से फुर्सत नहीं
हमें तुम्हारी यादों से…
ख्वाहिशें !!!
September 10, 2020 in शेर-ओ-शायरी
ख्वाहिशें थी तुम्हें पाने की साहब !
पर बदनामी के सिवा कुछ ना हाथ आया..
आरक्षण…
September 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
क्या है आरक्षण और
क्यों है आरक्षण ?
क्यों हमें जाति के नाम पर
अलग करते हो ?
जब देखो तब हम युवाओं
का बँटवारा करते रहते हो..
सवर्ण के हों इतने नंबर
तब ही आगे बढ़ पाएगा,
उससे कम नंबर वाला
कुर्सी पर इठलाएगा..
सोंचो कभी बीमार पड़ो तो
किससे इलाज करवाओगे !
जो हो मेरिट वाला या आरक्षण
वाले से चीर-फाड़ करवाओगे ?
तब तो तुम देखोगे नेताजी!
जो हो सबसे पढ़ा-लिखा
उसी डॉक्टर से इलाज करवाओगे,
यदि हुई गम्भीर बीमारी तो
एम्स में भर्ती हो जाओगे..
लेकिन आम जनता का जीवन
तुम अयोग्य डॉक्टर को सौंप दोगे,
बोलो आखिर कब तक तुम
आरक्षण के नाम पर राजनीति करोगे ?
बहुत पढ़ा है प्रज्ञा ने बुद्धी
के बारे में,
बिने, स्पीयरमैन, थार्नडाइक भी
ना बता सके आरक्षित बुद्धी के बारे में..
यदि बुद्धी जातिगत होती तो
अबुल कलाम देश का नाम
ना रौशन करता,
विकास दुबे इतना बड़ा
अत्याचारी ना बनता..
यदि बुद्धी सिर्फ सवर्ण को मिलती
तो रावण ऐसे कुकृत्य ना करता,
राम नाम की नैया खेकर
कोई केवट भवसागर पार
ना करता..
बुद्धी प्रकृति प्रदत्त है कोई
जातिगत विशेषता नहीं है भाई,
जैसे सबके लहू का रंग है एक
हो चाहे हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख
इसाई…!!
लॉकडाउन
September 9, 2020 in शेर-ओ-शायरी
कोरोना में लगा हुआ
लॉकडाउन तो हट गया
मेरी जिंदगी तो
लॉकडाउन में ही बसर करती है..
खुशबू नहीं रही
September 9, 2020 in शेर-ओ-शायरी
मुझे मिटाकर कहता है वो
तुम पहले जैसी नहीं रही,
फकत शक्ल ही बची है
खुशबू नहीं रही…
बनूँ मैं जानकी तेरी..!!
September 9, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
तू मेरी नज्म़ बन जाए
मैं तेरी नज्म़ बन जाऊं
तू मेरा राग बन जाए मैं
तेरा राग बन जाऊं
कुछ इस तरह जुड़ जाएं
अलग ना कर सके कोई
तू मेरी रूह बन जाए
मैं तेरी रूह बन जाऊं
ना शबरी हूँ ना अहिल्या हूँ
ना शूर्पनखा-सी हूँ कामुक
बनूँ मैं जानकी तेरी
तू मेरा राम हो जाए…!!
कितनी पी लेते हो !!
September 9, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
कितनी पी लेते हो जो
होश नहीं रहता है
जमाना तुम्हें शराबी
कहके हँसता है…
इतना धुत हो जाते हो कि
कुछ भी याद नहीं रहता है!
किसे क्या कहते हो
कुछ होश तुम्हें रहता है…
पीटते बच्चों को हो
नशे में तुम
दुःखी करते हो अपनी
पत्नी को तुम…
छोंड़ते कहाँ हो तुम
पुरखों तक को
हो गली के गीदड़
बनते शेर हो तुम…
लाज आती ना तुमको
करनी पर अपनी
ताव देते हो तुम
मूँछों पर अपनी…
कहाँ की है यह
मर्दानगी बताओ
नालियों में गिरते चलते हो
अब ना और छुपाओ…
सब रहता है याद तुम्हें
नशे का सिर्फ बहाना
ये नाटक जाकर तुम
कहीं और दिखाना…
ना जाने कितने घर नशे में
बर्बाद हो गए
ना जाने कितने लोग
मौत की नींद सो गए…
छोंड़ दो आज से तुम ये
दारू पीना
सीख लो बीवी बच्चों की
खातिर जीना…
गीत, गज़लें लिख रही हूँ..
September 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
गीत, गज़लें लिख रही हूँ
कुछ अलग ही दिख रही हूँ
होंठों पर हैं लफ्ज अटके
मन ही मन में पिस रही हूँ
आ गई अब शाम, दिन की
दोपहर ही लग रही हूँ
गुनगुनी-सी देह है और
ठण्डी-ठण्डी रात है
नींद है भटकी हुई सी
सिमटी-सिमटी लग रही हूँ
कुछ अलग ही दिख रही हूँ..
भाईदूज की मिठाई..!!
September 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
अपने भाई दूज की तुमको
खिला मिठाई
आँखों में थी हया
ग्लास पानी का लाई…
तुम तिरछी नज़रों से
मुझको यूँ देख रहे थे
मन ही मन में कितने
लड्डू फूट रहे थे…
ना तुम बोले ना हम बोले
दोनों में यूँ लाज भरी थी
कुछ मजबूरी भी थी
क्योंकि घरवाले भी देख रहे थे…
मैं बोली इसी लायक हो तुम
भाई दूज की खाओ मिठाई
तुमने कितनी तैश में
मुझको प्लेट घुमाई…
तब तक पीछे से आ
धमकीं मेरी भौजाई
तुम फिर से खाने लगे
लड्डू और मिठाई…
मैं रोंक सकी ना खुद को
हँसी जोर से आई
हालातों ने कुछ ऐसी
प्रेम की वाट’ लगाई…
मुझको सो जाने दो जीवन !!
September 7, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
मुझको सो जाने दो जीवन
रात हुई अब बहुत घनी
नैनों से ओझल हैं सपनें
साँसों से भी ठनी-ठनी
आसमान बाँहें फैलाकर
मेरे स्वागत को आतुर है
धरती पर बस बोझ बनी हूँ
मिट्टी में मिल जाने दो
रो-रोकर धो दिए दाग हैं
मैंने सूखे अश्कों के
ओ तकिये ! मेरे आँसू पोंछो
तन्हाई मुझको जाने दो !!
मुझको सो जाने दो जीवन
मिट्टी में मिल जाने दो ||
निराली दुनिया..
September 7, 2020 in शेर-ओ-शायरी
बहुत निराली है ये दुनिया प्रज्ञा !
यादों की बात तो करती है पर
याद नहीं करती…
जब से अलग लिखनें लगे..
September 7, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
जब से अलग लिखने लगे
हम सस्ते में बिकने लगे
मौजें अलग होने लगीं
पंख भी गिरने लगे
बहरूपिया मन मोहकर
बन बैठा है मेरा पिया
हिय को अलग ना कर सके
सपनें जुदा होने लगे
स्पर्श जब उनका मिला
एक पुष्प-सा मन में खिला
ना रह गए हम पहले से
बस कुछ अलग दिखने लगे
कल्पना की चाबियां
खो गईं हमसे अभी
पैर भी टिकते नहीं
अब हाथ भी हिलने लगे
यहीं तक सफर था अपना
जा रही हूँ लौटकर
पहले दुःखता था हृदय
अब छाले भी दुःखने लगे !!
पीर का उपहार !!
September 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
आपको लगता है क्या
मैं चाँद हूँ या चाँदनी
रात के झुरमुट में बैठी
हूँ मैं कोई अप्सरा
गीत हूँ या हृदय की
टूटी-फूटी रागिनी…
आपको लगता है क्या..
अमरत्व का वरदान हूँ या
करुणत्व की उत्श्रृंखला
हूँ सरोवर प्रेम का या
पीर का उपहार हूँ !!
जो सोया है अंधकार में…!!
September 1, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
जो सोया है अन्धकार में
जागेगा नवल प्रभात
उठ-उठकर देखेगा किरणें
सूर्योदय सम होगा ललाट
रजत-चाँदनी में स्वप्न को
नित पुष्पित कर देखेगा
नारी सम्मोहन छोंड़ कवि
अब प्रगतिवाद में चमकेगा
बहुत हुआ प्रज्ञा! अब जीवन
किसलय सम पुष्पित होगा
तेरे अन्तस में सुन्दरतम्
उच्छवास होगा
तेरे मन-मण्डप में दुल्हन
सरिस सजेगी कविता
पाकर तेरे भाव सौष्ठव
बन बैठेगी वनिता ||
क्या लिखूँ खत में तुमको..!!
August 31, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
क्या लिखूं कुछ भी समझ आता नहीं
कोई भी अल्फाज दिल को अब भाता नहीं..
लिख तो चुकी हूँ हजार दफा खत तुमको
आज क्या लिखूँ खत में तुमको
कुछ भी समझ आता नहीं..
सवाल उठता है क्या तुम खत पढ़ते होगे!
मेरे खतों को संभाल के रखते होगे!
ऐसा कुछ भी तुम करते होगे ऐतबार आता नहीं
क्या लिखूं, क्या लिखू? उफ!
कुछ भी समझ आता नहीं…
आज बहुत उदास है दिल ये मेरा
August 31, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
आज बहुत उदास है दिल ये मेरा
जब से तुम मेरे सामने से आकर गए
लगता है कुछ छिन-सा गया है मेरा
भूला तो दिया था मैंने कब का तुझे
पर आज लगा जैसे गलत थी मैं
तुम्हारी धूप पड़ते ही क्यों
धुंधला गया जहान
सांसे क्यों थम गईं
रुक गया क्यों समा
तुम आस-पास मेरे आया ना करो
बड़ी मुश्किल से निकल पाई हूं सदमें से तेरे…
अगर मैं गलत निकली…
August 30, 2020 in शेर-ओ-शायरी
अगर मैं गलत निकली तो
कुछ भी हार जाऊंगी,
लगा लो शर्त मुझसे तुम
यकीनन हार जाओगे..
मेरी सखियां..
August 30, 2020 in शेर-ओ-शायरी
मेरी क्या मजबूरियां हैं
कैसे बताऊं तुम्हें!
मेरी सखियां भी कहती हैं
तुम बात क्यों नहीं करती …
ऐतबार..
August 30, 2020 in शेर-ओ-शायरी
कैसे होगा ऐतबार उन्हें
वफा पर मेरी,
आजकल बहुत झूठ
बोलती हो !
वो कहा करते हैं…
कांटे बिछाते क्यों हो?
August 30, 2020 in शेर-ओ-शायरी
जब तुम्हारे और मेरे रास्ते अलग हैं तो
मेरे रास्तों में आकर कांटे क्यों बिछाते हो?
कोई मोहब्बत नहीं है हमसे अगर
तो एहसान जताते क्यों हो?
चीन
August 30, 2020 in शेर-ओ-शायरी
फौज की तादात बढ़ाने से
कुछ नहीं होगा चीन
जंग जीतने के लिए
शेर-सा जिगरा होना चाहिए..