अब भी
अब भी ऐसे ख्याल आते हैं
बिछुड़े गम गीत बन के आते हैं,
जो फिसल कर गिरे थे हाथों से
दाने मडुवे के गिरा जाते हैं।
जिनसे उम्मीद न थी वे ही मिले
स्वप्न के घोर वन में साथ हमें
एक दूजे को बस निहारा था,
उस जगह पर यही सहारा था।
जब पलक तक नहीं झुका पाये
प्यार से प्यार को लुभा पाये
आँख खोली नहीं, नहीं देखा,
अश्रु बूंदों को वो सुखा आये।
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