अब समझ आया कि..
‘कुछ घुला था दर्द मुझमे, कुछ थे आँसू आ मिले,
अब समझ आया कि क्यूँ मेरा लहू गाढ़ा हुआ..
वो पनप सकता था क्या अपनी ज़मीं को छोड़कर,
जो दरख्तों की तरह था, जड़ से उखाड़ा हुआ..
बरसों तक मेरे ही अंदर, इक तज़ुर्बा दफ्न था,
मुद्दत्तों इस कब्र में इक शख्स था गाड़ा हुआ..
कुछ घुला था दर्द मुझमे, कुछ थे आँसू आ मिले,
अब समझ आया कि क्यूँ मेरा लहू गाढ़ा हुआ..’
– प्रयाग
मायने :
ज़मीं – ज़मीन
दरख़्तों की तरह – पेड़ों की तरह
Very nice😊
Thanks For Compliment
nice thought
Thank You Pragya Ji
बहुत बढ़िया,लाजवाब👏
धन्यवाद जी
सुंदर
शुक्रिया
बेहतरीन
आभार आपका