Categories: शेर-ओ-शायरी
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दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34
जो तुम चिर प्रतीक्षित सहचर मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष तुम्हे होगा निश्चय ही प्रियकर बात बताता हूँ। तुमसे पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…
मैं समंदर हूँ
मैं समंदर हूँ ऊपर से हाहाकार पर भीतर अपनी मौज़ों में मस्त हूँ मैं समंदर हूँ दूर से देखोगे तो मुझमें उतर चढ़ाव पाओगे पर…
घर और खँडहर
घर और खँडहर ईटों और रिश्तों मैँ गुंध कर मकान पथरों का हो जाता घर ज्यों बालू , सीमेंट और पानी…
प्यासा समंदर और मैं
मैं प्यासा था, समंदर में, दो अंजुली प्यास, खो आया । बड़ा आरोप लगा मुझ पर, मैं अपना आप खो आया ।। समंदर नें, उदासी…
मन्दिर के भीतर
मुझे मिले नहीं भगवान हाय, मन्दिर के भीतर। मैं बना रहा नादान हाय, मन्दिर के भीतर।। मातु-पिता सच्चे ईश्वर हैं क्यों न तू पहचान करे।…
वाह वाह
धन्यवाद जी
Sundar
धन्यवाद
वाह
धन्यवाद मैम
सुन्दर
वाह वाक्ष
धन्यवाद सर
वाह वाह
धन्यवाद