आज की नारी
मैं आज की नारी हूँ
न अबला न बेचारी हूँ
कोई विशिष्ठ स्थान
न मिले चलता है
फिर भी आत्म सम्मान बना रहा ये
कामना दिल रखता है
न ही खेला कभी women कार्ड
मुश्किलें आयी हो चाहे हज़ार
फिर भी कोई मेरी आवाज़ में आवाज़
मिलाये तो अच्छा लगता है
हूँ अपने आप में सक्षम
चाँद तारे खुद हासिल कर लूं
रखूँ इतनी दम
फिर भी कोई हाथ बँटाये तो
अच्छा लगता है
हो तेज़ धूप या घनी छाँव
डरना कैसा जब घर से
निकाल लिए पांव
फिर भी कोई साथ चले तो
अच्छा लगता है
जीवन कैसा बिन परीक्षा
जहाँ लोगो ने
न की हो मेरी समीक्षा
फिर भी कोई विश्वास करे
तो अच्छा लगता है
गलत सही जो भी चुना
अपना रास्ता आप बुना
फिर भी कोई कदमो की
निगहबानी करे
तो अच्छा लगता है
अपने अधिकार भलिभाँति
जानती हूँ
क्या अच्छा क्या बुरा
पहचानती हूँ
फिर भी कोई परवाह करे तो
अच्छा लगता है
नहीं लगता मुझे अंधेरों से डर
हार जीत सबका दारोमदार
मुझ पर
फिर भी एक कान्धा हो सर रखने
तो अच्छा लगता है
मैं शौपिंग करूँ तुम बिल भरो
लड़कियों थोड़ी शर्म करो
फिर भी कोई ये अधिकार मांगे तो
अच्छा लगता है
औरत होना पहचान है मेरी
और बाजुए भी
मज़बूत है मेरी
फिर भी कोई बढ़ कर दरवाज़ा
खोले तो अच्छा लगता है
बस इतना ही है अरमान
खुद बना लूँगी मैं रोटी
कपडा और मकान
सिर्फ थोडा सम्मान मिले तो
अच्छा लगता है ..
अर्चना की रचना “सिर्फ लफ्ज़ नहीं एहसास”
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Dhruv kumar - May 7, 2020, 11:21 am
Nyc
Pt, vinay shastri 'vinaychand' - May 7, 2020, 4:37 pm
Nice
महेश गुप्ता जौनपुरी - May 7, 2020, 5:18 pm
वाह बहुत सुंदर रचना
Abhishek kumar - May 8, 2020, 1:33 pm
Good