आज जाने की ज़िद ना करो
सोचो कभी तुमसे मुलाकात हुई तो
आमने सामने तुम और मै
इतने अभिमान कितने शर्म
सोचो कभी तुमसे मुलाकात हुई तो
और तुम किसी और के
हम उस पुराने वकत के गुलाम बने हुए है
सोचो कभी तुमसे मुलाकात हुई तो
कितनी बातें कितने छूने के बहाने
दिल मै तूफान सा मचा हुआ होगा
सोचो कभी वोह पहचानी सुगंध तेरी
सोचो कभी वोह पायल की झंकार
वोह बारिशे क्या धो सकती है झूठे अभिमान को
सोचो कभी वोह झूठा गुस्सा
वोह मनाना वो घूमना और मुड़ के देखना
वोह वक्त क्या भूलना सहज है
सोचो कभी सोचो कभी
जिंदगी बस वोह आस की
मोहताज हो गई हो
क्या फिर से हम नहीं कह सकते आज जाने की ज़िद ना करो
यही रह जाओ मेरे पास इतनी देरी हुई आने की
ओर ना जा दूर
बहुत खूब
Thanks
बहुत खूब
Thanks
सोचने को मजबूर करती बहुत ही सुंदर प्रस्तुती
Thanks