” इक जिद्द अधूरी रह गयी “
थे क़रीब इक दूजे के ….
लेकिन फिर भी दरम्यां हमारे , दुरी रह गयी ….
इबादत करते हुए , इक भी दर ना छोड़ा ख़ुदा का …
फिर भी कोई मज़बूरी रह गयी..
कह देते थे , महफ़िल – ए – यारों में ….
” वो हैं मेरी ” …
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बस यही इक जिद्द अधूरी रह गयी …..
पंकजोम ” प्रेम “
Nice
Sukkriyaaa veeree.
nice dear
Sukkriyaaa dear….
lajwab bhai 🙂
Dil se dhnyawad ji…
बहुत खूब
भावपूर्ण