इतने हैं तेरे रूप के मैं सबको गिना नहीं पाउँगा,

इतने हैं तेरे रूप के मैं सबको गिना नहीं पाउँगा,

खोल कर रख दी पल्लू की हर एक गाँठ तुमने,

मैं तुम्हारे प्रेम का किस्सा सबको सुना नहीं पाउँगा,

डर कर छिप जाता था अक्सर तेरे पीछे,,
आज इस भीड़ में भी मैं तुझको भुला नहीं पाउँगा।।
राही (अंजाना)

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