इल्जामों के खंजर
जाने क्यों कुछ अल्फाज
सिसकते रहते हैं
हम तुम्हारी यादों में
महकते रहते हैं
यूं तो हमारी मोहब्बत की
पूजा करता है जमाना
पर जब भी हम एक होना चाहते हैं तो
लोग बेबुनियाद इल्जामों के खंजर भोंकते रहते हैं।
जाने क्यों कुछ अल्फाज
सिसकते रहते हैं
हम तुम्हारी यादों में
महकते रहते हैं
यूं तो हमारी मोहब्बत की
पूजा करता है जमाना
पर जब भी हम एक होना चाहते हैं तो
लोग बेबुनियाद इल्जामों के खंजर भोंकते रहते हैं।
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बहुत ख़ूब, हृदय के भावों को व्यक्त करती हुई बहुत सुन्दर रचना
Dhanyawaad
अतिसुंदर अभिव्यक्ति
Dhanyawaad
प्रज्ञा जी आपकी लेखनी बहुत स्तरीय गति से आगे बढ़ी है। इस लेखनी में सरलता है प्रवाह है और भाव पाठक के लिए सहज ग्राह्य हैं।