उर्मिला और लक्ष्मण:- हे उर्मिल
मेरी मनसा थी यहाँ
बोना प्रेम के बीज
पर उग आया है यहाँ
काँटा बन कर विष
काँटा बन कर विष
उगा है यहाँ पर जबसे
ना आए हैं साजन हे सखि !
यहाँ तभी से
बोली सखि हे उर्मिल !
ना तू आपा खोना
आएगे लक्ष्मण तू ना
सुध अपनी खोना
जब आएगे वह तो
कंटक भी खिल जाएगे
हे उर्मिल ! साजन तेरे
जल्दी घर आएगे…
बहुत खूब, अति उत्तम
धन्यवाद
Nice line
Tq
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
Thanks