कविता- कौन जानता था |

कविता- कौन जानता था |
कर्मवीर होंगे बेचैन अपने घर कौन जानता था |
राह निहारेंगे कब ताला खुलेगा कौन जानता था |
आयेगा ऐसा भी एकदिन देखेगी दुनिया दुर्दिन |
इसान खुली हवा को तरसेगा कौन जानता था |
बाग बगीचा माल बाजार सिनेमा सब सुने पड़े |
कोई किसी से नहीं मिलेगा कौन जानता था |
मिलना गले तो दूर हाथ भी मिला सकते नहीं |
महफ़िलों खूब सन्नाटा पसरेगा कौन जानता था |
नुक्कड़ पर चाय की चुस्की पंचायत नहीं लगेगी |
बारात बाजा बैंड अब न बजेगा कौन जानता था |
जो जहा वही पड़ा है कब मिलेंगे सवाल खड़ा है |
ट्रेन प्लेन मोटर अब ना चलेगा कौन जानता था |
मामी मौसा मौसी नाना नानी फोन पर मिलते |
हर रिस्ता मोबाइल पर मिलेगा कौन जानता था |
ईस जाने कब लॉक डाउन हटेगा बाजार खुलेगा |
बिछड़े अब मिलेंगे कोरोना मरेगा कौन जानता था |

श्याम कुँवर भारती (राजभर )
कवि/लेखक /समाजसेवी
बोकारो झारखंड ,मोब 9955509286
व्हात्सप्प्स -8210525557

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