कौन हो तुम?

मैने बहुत सोचा अब नहीं मिलूंगी तुमसे,
नहीं कहूंगी कुछ भी।
कोई फरमाइश नहीं करूंगी
कन अंखियों से देखूंगी भी नहीं।
पर इस दिल का क्या करू,
तुम्हारी आहट, पदचाप महसूस करते ही,
धड़कने बहकने लग जाती है।
बिना देखे ही जान लेती है
तुम्हारी उपस्थिति।
हैरान हूं मै!
आखिर कैसे संभव है?
इस लेखनी को है स्याही का नशा
और मुझे तुम्हारे आने की तलब।
जैसे पलाश के फूल और आम की बौर की सुगंध खीच लेती है बरबस अपनी ओर अचानक!
परमल हो क्या ?
या गगनचुंबी इमारत या व्योम में
अंतर्ध्यान शिव!

और मैं ज्योत्सना सी निर्वाक, निर्बोध, निर्निमेष तकती रह जाती हूं तुम्हे!
हे पीड़ाहर्ता!
क्या बला हो तुम?

निमिषा सिंघल

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

Responses

New Report

Close