कौन हो तुम?
मैने बहुत सोचा अब नहीं मिलूंगी तुमसे,
नहीं कहूंगी कुछ भी।
कोई फरमाइश नहीं करूंगी
कन अंखियों से देखूंगी भी नहीं।
पर इस दिल का क्या करू,
तुम्हारी आहट, पदचाप महसूस करते ही,
धड़कने बहकने लग जाती है।
बिना देखे ही जान लेती है
तुम्हारी उपस्थिति।
हैरान हूं मै!
आखिर कैसे संभव है?
इस लेखनी को है स्याही का नशा
और मुझे तुम्हारे आने की तलब।
जैसे पलाश के फूल और आम की बौर की सुगंध खीच लेती है बरबस अपनी ओर अचानक!
परमल हो क्या ?
या गगनचुंबी इमारत या व्योम में
अंतर्ध्यान शिव!
और मैं ज्योत्सना सी निर्वाक, निर्बोध, निर्निमेष तकती रह जाती हूं तुम्हे!
हे पीड़ाहर्ता!
क्या बला हो तुम?
निमिषा सिंघल
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Kanchan Dwivedi - March 18, 2020, 9:35 pm
वाह
NIMISHA SINGHAL - March 19, 2020, 12:15 am
💞💞
Pt, vinay shastri 'vinaychand' - March 19, 2020, 4:57 pm
Nice
Dhruv kumar - March 19, 2020, 10:46 pm
Nyc
महेश गुप्ता जौनपुरी - March 21, 2020, 10:22 am
वाह बहुत सुंदर
Pragya Shukla - April 4, 2020, 3:29 pm
अति सुन्दर रचना
Priya Choudhary - April 9, 2020, 11:49 am
Nice