क्यों गरीबी की चादर में पैरों को फैलाना पड़ता है

क्यों गरीबी की चादर में पैरों को फैलाना पड़ता है,
क्यों चन्द ख़्वाबों को इस दिल में दबाना पड़ता है,
खेल-खिलौने गुड़िया गुड्डे और वो रेलगाड़ी छोड़कर,
क्यों रात दिन इस बचपन को रिक्शा चलाना पड़ता है।।
राही (अंजाना)
वाह खूब
वाह