“खामोशी “

ज़माना पुछता हैं चेहरे में गज़ब की कशीश- ए-खामोशी हैं_

कैसे कहे_? हरसू से नूर का तिरगी से भी वास्ता हैं मैं नियूश सा सुनता हूँ दिल हर वक़्त उसका शोर मचाता हैं_

-PRAGYA-

Related Articles

“खामोशी “

ज़माना पुछता हैं चेहरे में गज़ब की कशीश- ए-खामोशी हैं_ कैसे कहे_? हरसू से नूर का तिरगी से भी वास्ता हैं मैं नियूश सा सुनता…

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

Responses

New Report

Close