खूब मनाओ तुम खुशी(कुंडलिया रूप)
खूब मनाओ तुम खुशी, इतना रख लो ध्यान,
चमड़ी जिनकी खा रहे, उनमें भी है जान।
उनमें भी है जान, मगर तुम खून पी रहे,
पीकर खून निरीह का, खुशियां क्यों ढूंढ रहे।
कहे ‘कलम’ यह बात, आज तो इन्हें न काटो,
नए साल की खुशियां, तुम इनमें भी बांटो।
काका हाथरसी के स्टाइल में जीवों पर दया भाव दिखाती हुई कवि सतीश जी की बेहद मार्मिक रचना
नववर्ष की बहुत बहुत बधाई, शुभकामनाएं
नव वर्ष की बहुत बहुत बधाई। HAPPY New Year
मुझे आपकी रचना पढ़कर कबीरदास याद आ गये..
सही कहा यह बहुत पीड़ादायक है
बेजुबानों की हत्या करके खुशियां मनाना
बकरी पाती खात है
ताकी काढ़ी खाल |
जे नर बकरी खात हैं
तिनको कौन हवाल ||
क्षुधा मिटाने की खातिर,
निर्दोषों को है मारा,
कैसा है शैतान वो मानव,
जीवों ने लगाया है नारा
क्षुधा मिटाने की खातिर
कुदरत ने फल, फूल बनाए हैं
फिर जीवों को क्यूं मारा जाए
वो भी तो कुदरत से आए हैं
Very nice sir
अतिसुंदर भाव