गाडी के दो पहिए
मैं स्त्री हूँ , और सबका
सम्मान रखना जानती हूँ
कहना तो नहीं चाहती
पर फिर भी कहना चाहती हूँ
किसी को ठेस लगे इस कविता से
तो पहले ही माफ़ी चाहती हूँ
सवाल पूछा है और आपसे
जवाब चाहती हूँ
क्या कोई पुरुष, पुरुष होने का सही
अर्थ समझ पाया है
या वो शारीरिक क्षमता को ही
अपनी पुरुषता समझता आया है??
हमेशा क्यों स्त्रियों से ही
चुप रहने को कहा जाता है
जब कोई पुरुष अपनी सीमा लाँघ
किसी स्त्री पर हाथ उठता है
कोई कमी मुझ में होगी
यही सोच वो सब सेह जाती है
ये बंधन है सात जन्मो का
ये सोच वो रिश्ता निभा जाती है
उनके कर्त्वयों का जो
एक रात अपने पत्नी पुत्र को
छोड़ सत्य की खोज में निकल जाता है
हो पुरुष तो पुरषोत्तम बन के दिखाओ
किसी स्त्री का मान सम्मान
न यूं ठुकराओ
ये देह दिया उस ईश्वर ने
इसके दम पर न इठलाओ
वो औरत है कमज़ोर नहीं
प्रेम विवश वो सब सेह जाती है
तुम्हारे लाख तिरस्कार सेह कर भी
वो तुम्हारे दरवाज़े तक ही सिमित रह जाती है
ये सहना और चुप रहना सदियों से चला आया है
क्योंकि उन्हें अर्थी पर ही तुम्हारा घर छोड़ना
सिखाया जाता है
जब उस ईश्वर ने हम दोनों को बनाया
हमे एक दूसरे का पूरक बनाया
जो मुझमे कम है तुमको दिया
जो तुम में कम है मुझमे दिया
ताकि हम दोनों सामानांतर चल पाए
और एक दूसरे के जीवन साथ बन पाए
न तुम मेरे बिन पुरे ,मैं भी तुम बिन अधूरी हूँ
जितने तुम मुझको ज़रूरी, उतनी ही तुमको ज़रूरी हूँ
इस बात को हम दोनों क्यों नहीं समझ पाते हैं?
गाडी के दो पहिए क्यों संग नहीं चल पाते हैं?
तुम्हे याद न हो तो बता दूँ
भगवान शंकर को यूं ही नहीं अर्धनारीश्वर कहा जाता है
सब एक जैसे नहीं होते, कुछ विरले भी होते हैं
जो स्त्री के मान सम्मान को, अपना मान समझते हैं
जो एक स्त्री में माँ बहन पत्नी और बेटी का रूप देखते हैं
और उसके स्त्री होने का आदर करते हैं
उसके सुख दुःख को समझते हैं
कितना अच्छा होता जो सब सोचते
इनके जैसे
बंद हो जाते कोर्ट कचेहरी
और मुकदद्मों के झमेले
जहा कोई इंसान पहुंच जाये तो बस चक्कर लगाता रह जाता है
मैं ये नहीं कहती सब पुरषों की ही गलती है
कुछ महिलाओं ने भी आफत मची रखी है
जो अपने स्त्री होने का पुरज़ोर फायदा उठाती हैं
जहाँ हो सुख शांति वहां भी आग लगा जाती हैं
अपने पक्ष में बने कानून का उल्टा फायदा उठाती है
ऐसी स्त्रियों के कारन उस स्त्री का नुकसान हो जाता है
जो सच में कष्ट उठाती है और
अपने साथ हुए अत्याचार और प्रताड़ना को सिद्ध नहीं कर पाती है
नारी तुम सबला हो ,
शांति ,समृद्धि और ममता का प्रतीक हो
कृपया कर “बवाल” मत बनो
अपने स्त्री होने का मान बनाये रखो
उसे तिरस्कृत मत करो
तुम्हारी विमूढ़ता से किसी का घर सम्मान बर्बाद हो जाता है
मैं स्त्री हूँ , और सबका
सम्मान रखना जानती हूँ
किसी को ठेस लगी हो इस कविता से
तो माफ़ी चाहती हूँ
Sunder or sateek
थत
जय जयकार
Wah
Good
सुन्दर
ap sab ka bahut bahut aabhar es rachna ko pasand karne k liye…
ओके
वाह
Good