घर में डाॅन
मीच के आँखें रोते -रोते
खोज रहा हूँ होकर मौन।
मुझको रुलानेवाला जग में
छुपकर बैठा आखिर कौन?
नजर भला वो आए कैसे
घर में बैठा बनकर डाॅन ।।
मीच के आँखें रोते -रोते
खोज रहा हूँ होकर मौन।
मुझको रुलानेवाला जग में
छुपकर बैठा आखिर कौन?
नजर भला वो आए कैसे
घर में बैठा बनकर डाॅन ।।
Please confirm you want to block this member.
You will no longer be able to:
Please note: This action will also remove this member from your connections and send a report to the site admin. Please allow a few minutes for this process to complete.
जीवन के कठोर अनुभव और सच्चाई से लबरेज है यह कविता, बार बार पढ़ने और सोचने पर मजबूर कर रही है, आपकी लेखनी विलक्षण है, जन-भाषा का सुंदर प्रयोग है, बहुत सुंदर कविता।
बहुत बहुत आभार सहित धन्यवाद
Nice
धन्यवाद
बहुत सुंदर कविता है भाई जी। हृदय स्पर्शी रचना।
शुक्रिया बहिन
बहुत ही भावपूर्ण, सुन्दर अभिव्यक्ति
Bahut khoob
बहुत सुंदर प्रस्तुति