घुट-घुट आँसू पीना है..
मुझको तो बस तन्हाई में ही जीना है
सिसक-सिसक कर रहना है
घुट-घुट आँसू पीना है
कोई ना समझा मेरी पीर को
तो तुम क्या समझोगे !
नहीं किया कभी प्यार किसी ने
तो तुम क्या मुझको दिल दोगे !
अब तो आदत हो चली पीर की
अब तो पीर में ही जीना है…
कोई ना समझा मेरी पीर को
घुट-घुट आँसू पीना है…
दिन हो मेरा रोते-रोते
रात कटे करवटें बदलते
मेरे नैना बरसें हर पल
इनका ना कोई महीना है
कोई ना समझा मेरी पीर को
घुट-घुट आँसू पीना है…
Very good
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एक विरहणी के दर्द का यथार्थ चित्रण प्रस्तुत करती हुई कवयित्री प्रज्ञा जी की हृदय स्पर्शी रचना ।अकेले पन के दर्द को बयां करती हुई मार्मिक अभिव्यक्ति
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VERY VERY NICE
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बहुत खूब
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