चाँद अलसाया हुआ था !!
चाँद ने गोद में जाकर
हिमालय की
बिछाया बिस्तर सोने के लिए
तभी एक टिमटिमाता तारा
आकर रोने लगा
कहने लगा ऐ चाँद !
आज कोई तेरा इन्तजार कर रहा है
भूखा प्यासा रहकर
उपवास कर रहा है
तू नहीं गया गर तो वह
छत पर ही बैठा रह जाएगा
किसी की रातों का चाँद
तेरे इन्तजार में मर जाएगा
चाँद अलसाया हुआ था !!
थोड़ा इतराया हुआ था
पर जब देखा उसने जमीं पर
हजारों चाँदनी
अपनी छत पर ही खड़ी हैं
तब उसे कुछ होश आया
आज तो करवाचौथ की
घड़ी है
भागा सरपट चाँद फिर
नंगे ही पैरों आ गया
तारा भी फिर खुश हुआ
प्रज्ञा’ ने जब पूरा व्रत किया ||
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Geeta kumari - November 5, 2020, 1:29 pm
यथार्थ चित्रण प्रस्तुत किया है
Pragya Shukla - November 5, 2020, 2:05 pm
सुंदर समीक्षा के लिए धन्यवाद
Pt, vinay shastri 'vinaychand' - November 5, 2020, 2:37 pm
अतिसुंदर भाव
Pragya Shukla - November 5, 2020, 2:39 pm
धन्यवाद
vivek singhal - November 5, 2020, 11:40 pm
वाह !
चाँद अलसाया हुआ है …
अति उत्तम एवं प्यारी कविता
अनेक भाव स्वयं में समेटे रचना
करवाचौथ के दिन चाँद के देरी से प्रकट होने की घटना पर आपकी कल्पना की दाद देनी पड़ेगी कि आपने उस घटना को कितनी सफाई से कविता का विषय बना लिया और हमें इतनी अच्छी कविता पढ़ने को मिली…
Pragya Shukla - November 6, 2020, 2:54 pm
Tq
Dhruv kumar - November 8, 2020, 9:47 am
Good