जब सोचा इक दफ़ा जिन्द्गी के बारे मे

जब सोचा इक दफ़ा जिन्द्गी के बारे मे

किस कदर बसर हुई जिंदगी मेरी

क्यों भटकता रहा जिंदगीभर मुसाफ़िर बनकर

ज्वालामुखी सा जलता रहा

कभी लावे सा पिघलता रहा

 आसमां को छुने की आरजू में

पतगं सा हर बार कटता रहा

हाथों की लकीरों से लडता था कभी में

अब उन लकीरों मे ही ढ़लता रहा

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

चलो पतंग उड़ाएं

चलो पतंग उड़ाएं लूट लें, काट लें पतंग उनकी सभी रंगीनियां अपनी बनायें चलो पतंग उड़ाएं चलो पतंग उड़ाएं। उनके चेहरे की खुशियों को चुराकर…

Responses

New Report

Close