जीवन के लिए आवश्यक (जागरूकता)
आओ कथा सुनाएं तुम्हें पारिस्थितिकी पारितंत्र की,
खतरे में आज है स्थिति अपने मानव तंत्र की।
दिन-रात खनन हो रहा है चहुंओर हरियाली का,
आधुनिक मशीनें बन गई कारण जीवन की खुशहाली का,
है आवश्यकता फिर से पृथ्वी को हरा-भरा करने के इस मंत्र की,
खतरे में आज है स्थिति अपने मानव तंत्र की।
क्यों फैल रही हैं बीमारियां क्या कभी किसी ने सोचा है,
हम ही कारण बने हैं इसके जो पृथ्वी मां के आंचल को यूं नोचा है,
करो खुलासा इन सबका मत चलो कोई चालें षड्यंत्र की,
खतरे में आज है स्थिति अपने मानव तंत्र की।
चारों तरफ लाशों के ढेर लगे हर आंख से बहता पानी है,
है जीवन की कड़वी सच्चाई मत मानो इसे सिर्फएक कहानी है,
कोई रोग होने ना पाए अब कोई रोने ना पाए,करो व्यवस्था ऐसे यंत्र की,
खतरे में आज है स्थिति अपने मानव तंत्र की।
लाखों लोग इन दिनों कर रहे अपने जीवन से संघर्ष,
घर परिवार के भी लोग ना करते एक दूजे को स्पर्श,
दो गज दूरी मास्क जरूरी यह सोच होनी चाहिए खुद व्यक्ति स्वतंत्र की,
खतरे में आज है स्थिति अपने मानव तंत्र की।
क्या हुआ जो जिस वातावरण में अब तक जीते आए वह हवा भी अब जहरीली हुई,
कहीं इसका कारण हम सब ही हैं जो क्षीण अब हरियाली हुई,
करो ऐसी व्यवस्था आज अपने पारिस्थितिकी पारितंत्र की,
हो जिससे सुरक्षा अपने मानव तंत्र की।।
है आवश्यकता फिर से पृथ्वी को हरा-भरा करने के इस मंत्र की,
खतरे में आज है स्थिति अपने मानव तंत्र की।
_________ समसामयिक यथार्थ चित्रण प्रस्तुत करते हुए बहुत सुंदर रचना, उत्तम अभिव्यक्ति
Bhut sundae kavita ka line h very beautiful poem.
अति उत्तम
Bhut Sundar Kavita 👌👌
बहुत सुन्दर रचना
Bahut Sundar Rachna
अतिसुंदर, आप ऐसे ही लिखती रहें
पारिस्थितिकी तंत्र पर बहुत ही अच्छी रचना
अतिसुंदर
आप सभी का सादर अभिनन्दन