धरती की व्याकुलता
व्याकुल धरती बुला रही है
फिर से झाँसी की रानी को।
बहुत हुआ अब नहीं सहेंगे
शैतानों की मनमानी को।।
गली गली में गुंडे बैठे
हर नुक्कड़ अपराधी है।
जाति धर्म की राजनीति में
बँट गई दुनिया आधी है।।
करूँ भरोसा किस पर बोलो
देख पड़ोसी की शैतानी को।
व्याकुल धरती बुला रही है,,,,,,,,,।।
अरमानों से बांध रही थी
राखी जिस कलाई पर।
रक्षक तेरा बन नहीं पाया
लानत है उस भाई पर।।
उस बेचारे का दोष भला क्या
कैसे कोसूँ निहत्थै की जवानी को।
व्याकुल धरती बुला रही है,,,,,,,,,, ।।
जननी अब बेटी न जनना
फूलन देवी पैदा कर ।
राजबाला वर्मा हंटरवाली
किरण बेदी पैदा कर।।
बेलन चिमटा कलछी खचरचन
बाहर निकलो लेकर हाथ मथानी को।
व्याकुल धरती बुला रही है,,,,,,,,,,,,,,।।
कोई तुम्हारा भाई नहीं है
न कोई रिश्तेदार यहाँ ।
केवल अपराधी है वह
जो करे अनाचार यहाँ।।
“विनयचंद “हर पुरुष वर्ग भी
खड़ा मिलेगा अगवानी को।।
Good
Thanks
Good
Thanks
वेलकम
बहुत सुन्दर
Nice
Dev ji vote me
Nice
Bahut sundar
सुन्दर रचना
Superb
bahut khoob… achha likha bahut .. take it up